संयुक्त अरब अमीरात में जन्में और पले-बढ़े मोहम्मद पिछले कई वर्षों से अपने ही देश की नागरिकता पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, पर आज तक उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी है।
34 वर्षीय मोहम्मद, फारस की खाड़ी के इस देश की नागरिकता पाने के लिए काफी समय से सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगा रहे हैं।दुबई में रहने वाले मोहम्मद अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि खुद उनके देश में ही उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। वह कहते हैं कि दुबई लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है और आज भी वह इन बुनियादी सवालों के जवाब ढूंढ़ने में लगे हुए हैं।
मोहम्मद का परिवार करीब 50 साल पहले ईरान से यूएई आया था। मोहम्मद कहते हैं कि नागरिकता के बिना अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी पाना भी संभव नहीं है। वह कहते हैं कि किसी के पास इस तरह की जिंदगी के होने से तो बेहतर हैं कि जिंदगी हो ही न। यह कहानी केवल एक मोहम्मद की नहीं है, यूएई में ऐसे करीब एक लाख लोग हैं जो सालों से इस देश में रह रहे हैं फिर भी इस देश की नागरिकता हासिल करने के लिए उनकी लड़ाई जारी है।
दूसरे देशों से आए इन रहवासियों को बिदून कह कर पुकारा जाता है और उनके परिवार में जन्में लोगों को जन्म का प्रमाणपत्र तक नहीं दिया जाता है। साथ ही पासपोर्ट के लिए भी ये संबंधित कार्यालयों का चक्कर लगा कर थक चुके हैं। उन्हें इस कदर हाशिये पर ढकेला जा रहा है कि न तो उनके पास शिक्षा के समुचित विकल्प हैं और न ही वे स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा पा रहे हैं।
उनकी मुश्किलों को दूर करने के लिए समय समय पर आश्वासन तो जरूर मिलता रहा है पर परणिाम फिर वही ढाक के तीन पात। राष्ट्रपति शेख खलीफा अल-नाहयान ने अक्टूबर 2006 में इस मसले को सुलझाने की घोषणा की थी, पर तब से लेकर अब तक केवल 1,294 लोगों को ही नागरिकता दी गई है।
रिफ्यूजीस इंटरनेशनल में वरिष्ठ अधिवक्ता लिंच कहते हैं, ”अगर कोई देश अपने देश में लोगों की मुश्किलों को दूर करने में खुद दिलचस्पी नहीं दिखा रहा हो तो ऐसे में नुकसान खुद उसका ही है। आप आगे इन लोगों से देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए क्या अपेक्षा करेंगे।
उन्होंने कहा कि जब तक आप किसी व्यक्ति को शिक्षा और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों से लैस नहीं करवाएंगे तो उनसे समाज के लिए कुछ कर गुजरने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। एक ओर तो यूएई की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल की रिकार्ड कीमतों की वजह से उफान पर है और दूसरी ओर लाखों लोग अब भी बुनियादी जरूरतों के अभाव में बेहाल जिंदगी जीने के लिए विवश हैं।