प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
उत्तर प्रदेश में छुट्टा गोवंशों को रखने के लिए बनी गौशालाएं अब आय का जरिया बनेंगी। प्रदेश के विभिन्न जिलों में चल रही गौशालाओं में पंचगव्य से स्किन केयर उत्पाद बनेंगे और गोबर से बनने वाली बॉयोगैस से गाड़ियां फर्राटा भरेंगी। अयोध्या, गोरखपुर, वाराणसी, चित्रकूट, कानपुर, आगरा, बरेली, झांसी से इसकी शुरुआत होने जा रही है।
प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षी योजना ‘गो सेवा से समृद्धि’ अब अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और ग्रामीण जीवनशैली को एक नई दिशा देने जा रही है। पहली बार पंचगव्य से सौंदर्य उत्पाद, जैविक कीटनाशक और बायोगैस जैसे नवाचारों का समावेश करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है।
इसके अंतर्गत प्रदेशभर में अनेक परियोजनाएं प्रारंभ की जा रही हैं, जो पारंपरिक आस्था को आधुनिक तकनीक से जोड़ते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आय के नए अवसर प्रदान करेंगी। पंचगव्य से स्किन केयर बनाने, बायोगैस से वाहन चलाने और जैविक उत्पादों से हरित खेती की परिकल्पना साकार की जा रही है। प्राथमिक स्तर पर अयोध्या, गोरखपुर, वाराणसी, चित्रकूट, कानपुर, आगरा, बरेली, झांसी से इसकी शुरुआत होने जा रही है।
प्रदेश के आठ जिलों में विभिन्न नवाचारों पर आधारित परियोजनाएं प्रारंभ की जा रही हैं। ये परियोजनाएं गोवंश संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीण नवाचार को नई पहचान दिलाएंगी। इनमें गोरखपुर में ड्यूल फीड बायोगैस संयंत्र की, आगरा में पंचगव्य आधारित स्किन केयर यूनिट, अयोध्या में जैविक कीटनाशक निर्माण इकाई, बरेली में बायो फेंसिंग एवं सोलर शेड परियोजना, चित्रकूट में बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए चारा बैंक, कानपुर में ‘अर्बन काऊ एडॉप्शन’ मॉडल, वाराणसी में गंगा बेसिन कार्बन ऑफसेट प्रोजेक्ट और झांसी में कैक्टस आधारित मिक्स्ड बायोगैस अनुसंधान केंद्र स्थापित किया जाएगा।
प्रदेश की 75 चयनित गोशालाओं में प्रति वर्ष 25 लाख रुपए की स्व-अर्जन क्षमता विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। यह नवाचार किसानों और पशुपालकों के लिए एक स्थायी आर्थिक मॉडल प्रस्तुत करेगा। इससे गोशालाएं सिर्फ संरक्षण केंद्र नहीं, बल्कि उत्पादन और शोध केंद्र के रूप में कार्य करेंगी। गो सेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्ता ने बताया कि गो आधारित उत्पादों से किसानों और ग्रामीणों को कम लागत में अधिक लाभ मिलेगा। पंचगव्य, बायोगैस, जैविक कीटनाशक और बायो फेंसिंग से गांवों में नई आर्थिक ऊर्जा का संचार होगा।
उन्होंने कहा कि गांवों में बायोगैस संयंत्र, पंचगव्य आधारित उत्पादों और जैविक खाद-कीटनाशकों के संयंत्र स्थापित कर स्वच्छ ऊर्जा, कृषि सुधार और रोजगार का नया रास्ता खोला जाएगा। बायोगैस के जरिए वाहन चलाए जा सकेंगे। इसकी पूरी कार्ययोजना बनाई जा रही है। इससे एलपीजी की खपत में कमी आएगी और पर्यावरण की भी सुरक्षा होगी।
गो सेवा आयोग के ओएसडी डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि पंचगव्य आधारित उत्पादों के निर्माण से प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आएगा।