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Electoral Bonds ‘असंवैधानिक’: सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला,चुनावी बॉन्ड को बताया सूचना के अधिकार का उल्लंघन

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि गुमनाम चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि काले धन पर अंकुश

Last Updated- February 15, 2024 | 11:48 AM IST
supreme court

आज यानी 15 फरवरी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत की 5 जजों की पीठ ने चुनावी बॉन्ड को ‘असंवैधानिक’ बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज चुनावी बॉन्ड स्कीम (Electoral Bonds Scheme) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया।

अपने फैसले में अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बांड स्कीम को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले हैं।

केंद्र का औचित्य उचित नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि Electoral Bonds के माध्यम से काले धन के मुद्दे से निपटने का केंद्र का औचित्य उचित नहीं है।

चुनावी बांड ब्याज मुक्त वाहक उपकरण हैं जिनका उपयोग अनिवार्य रूप से राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से धन दान करने के लिए किया जाता है। इस योजना की घोषणा पहली बार 2017 के केंद्रीय बजट भाषण में की गई थी जब स्वर्गीय अरुण जेटली वित्त मंत्री थे।

ये पढ़ें- चुनावी बॉन्ड योजना का उद्देश्य काले धन का अंत करना: सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा

कोर्ट ने 2 नवंबर को Electoral Bonds मामले पर अपना फैसला किया था सुरक्षित

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संवैधानिक पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पारदर्शिता कार्यकर्ताओं द्वारा उठाई गई प्राथमिक चिंता यह है कि मतदाता अब यह नहीं जान सकते कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्त पोषित किया है। पहले पार्टियों को 20,000 रुपये से अधिक का योगदान देने वाले सभी दानदाताओं का विवरण प्रकट करना होता था। हालाँकि, केंद्र ने नकद दान के विकल्प के रूप में और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के तरीके के रूप में बांड को पेश किया है।

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Electoral Bonds योजना की संवैधानिकता को चुनौती देने के अलावा, याचिकाकर्ताओं ने अदालत से सभी राजनीतिक दलों को सार्वजनिक कार्यालय घोषित करने और उन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाने और राजनीतिक दलों को अपनी आय और व्यय का खुलासा करने के लिए बाध्य करने की मांग की है।

First Published - February 15, 2024 | 11:31 AM IST

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