लुधियाना के कपड़ों के सबसे पुराने बाजार चौड़ा बाजार में गुरचरण सिंह तीन दशक से भी ज्यादा समय से शर्ट का कपड़ा बेच रहे हैं। 52 साल के सिंह कहते हैं, ‘पिछले इतवार को धंधा अच्छा नहीं गया। वाहेगुरु चाहेंगे तो आज का दिन अच्छा होगा।’
चौड़ा बाजार की गलियों में पौ फटते ही महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की आवाजाही बढ़ने लगती है। अंग्रेजों के जमाने के घंटाघर के सामने बने इस बाजार का नाम चौड़ी सड़कों के कारण चौड़ा बाजार हो गया। लुधियाना कपड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है और दो सदियों से भी ज्यादा अरसे से यह बाजार यहां कपड़ा कारोबार का अड्डा रहा है।
इस बाजार में सिंह जैसे हजारों विक्रेता हैं, जो परिधान, ऊनी वस्त्र, सूटिंग, होजरी, अंडर-गारमेंट्स, पर्दे, कालीन का कारोबार करते हैं। सतलज नदी के पार फिल्लौर में रहने वाले 64 साल के किसान राजवंत मान बचपन से ही इस बाजार में आते-जाते रहे हैं। अगले महीने उनके पोते की शादी होने वाली है, जिसके लिए वह कपड़े खरीदने आए हैं। मगर मायूसी के साथ वह कहते हैं कि यह बाजार अपनी चमक खोता जा रहा है।
मान ने कहा, ‘पहले पंजाब के तमाम इलाकों से लोग कपड़े खरीदने लुधियाना आते थे। मगर यहां का बाजार उद्योग के नए चलन के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया। इसलिए पुराने बाजारों में युवा कम ही आते हैं। वे मॉल जाकर खरीदारी करना पसंद करते हैं जहां उन्हें ठीकठाक दाम पर नए फैशन के कपड़े मिल जाते हैं।’
लुधियाना पंजाब का 20,000 करोड़ रुपये के कारोबार वाला प्रमुख कपड़ा केंद्र है। यहां ज्यादातर सूक्ष्म और लघु उद्योग हैं। देसी बाजार के लिए 90 फीसदी से ज्यादा परिधान यहीं बनते हैं। मगर पिछले कुछ साल में इसे नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), कोविड महामारी के झटके लगते रहे हैं।
निटवियर ऐंड अपैरल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ लुधियाना के अध्यक्ष सुदर्शन जैन ने कहा कि शहर में ज्यादातर उत्पादन लघु और छोटी इकाइयां करती हैं, जिन्हें साल दर साल झटके लगते आ रहे हैं। बांग्लादेश, चीन और वियतनाम से सस्ता आयात भी इस उद्योग के लिए बड़ी परेशानी बन गया है।
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जैन ने कहा, ‘शहर की लगभग 18,000 सूक्ष्म एवं लघु उत्पादन इकाइयों में से करीब 20 फीसदी कोरोना महामारी में बंद हो गईं। जल्द कदम नहीं उठाया गया तो बड़ी इकाइयां भी कर्ज चुकाने में चूक करने लगेंगी।’ अगस्त में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़ों से पता चला है कि परिधान उत्पादन अगस्त 2011-12 के स्तर से भी नीचे गिर गया है।
आपूर्ति में लगातार रुकावट के कारण इस क्षेत्र का निर्यात भी प्रभावित हुआ है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-सितंबर 2023 में केवल 691.6 करोड़ डॉलर का निर्यात हुआ, जो पिछले साल अप्रैल-सितंबर से 15 फीसदी कम रहा। इस दौरान पंजाब से निर्यात में करीब 18 फीसदी गिरावट आई।
लुधियाना की नाहर स्पिनिंग मिल्स के महाप्रबंधक अश्विनी अग्रवाल ने कहा, ‘रूस-यूक्रेन जंग के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट के कारण यूरोप में मांग पहले ही घट गई है। अब पश्चिम एशिया में भी जंग शुरू होने के कारण हमारा निर्यात बेहद कमजोर रह सकता है। अमेरिकी बाजार में हमें पहले ही कम शुल्क वाले वियतनाम और बांग्लादेश के उत्पादों से नुकसान हो रहा है।’
शहर के कपड़ा उद्योग में संकट से उत्पादन और निर्यातक ही नहीं करीब 10 लाख प्रवासी श्रमिक भी मार झेल रहे हैं। झारखंड से आए 44 साल के नन्हे राम पिछले 18 साल से अपने चचेरे भाइयों के साथ मिलकर रंगाई का काम करने लुधियाना आते रहे हैं। मगर अब सैकड़ों दूसरे प्रवासियों की तरह उन्हें भी नियमित काम नहीं मिल रहा।
केजी एक्सपोर्ट्स के संस्थापक चेयरमैन हरीश दुआ मानते हैं कि वैश्विक बाजार में भारतीय कपड़ा उद्योग चीन एवं अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई पड़ोसियों से इसलिए पिछड़ा क्योंकि वहां सस्ते और कुशल श्रमिक हैं।
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उन्होंने कहा, ‘हालांकि हमारे यहां श्रमिक लगातार आ रहे हैं मगर वे कुशल नहीं हैं। हमें प्रशिक्षण क्लस्टर के साथ अनुसंधान एवं विकास केंद्र भी स्थापित करना चाहिए। वहां उत्पादकों को नए चलन के बारे में प्रशिक्षण देने के साथ ही श्रमिकों को भी नई मशीनें चलाने की जानकारी मिले।’
कपड़ा क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए केंद्र सरकार ने पीएम मित्र (प्रधानमंत्री मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन ऐंड अपैरल) योजना शुरू की है। इसके तहत करीब 70,000 करोड़ रुपये अनुमानित निवेश से एकीकृत कपड़ा मूल्य श्रृंखला स्थापित की जाएगी, जिसमें कताई, बुनाई से लेकर प्रोसेसिंग एवं प्रिंटिंग तक सभी सुविधाएं एक ही जगह मिलेंगी।
इस योजना के लिए सात राज्य चुने गए हैं मगर बदकिस्मती से पंजाब का नाम उनमें नहीं है।