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Dhanteras 2023: पिछले धनतेरस से 22 फीसदी महंगा हुआ सोना, निवेश का कौन सा विकल्प बेहतर

पिछले साल धनतेरस पर सोने की कीमत 50 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के करीब थी जबकि घरेलू बाजार में सोना फिलहाल 61 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के आस-पास है।

Last Updated- November 09, 2023 | 1:02 PM IST
Gold-Silver Price today

Investment in Gold : इस धनतेरस (Dhanteras 2023) पर गोल्ड (gold) में निवेश लोगों के लिए शुभ हो सकता है।  जानकारों की मानें तो सोने की कीमतों में मजबूती आगे भी बरकरार रह सकती है। पिछले धनतेरस के मुकाबले कीमतों में अभी तक तकरीबन 22 फीसदी का इजाफा हुआ है। पिछले साल धनतेरस पर सोने की कीमत 50 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के करीब थी। जबकि घरेलू बाजार में सोना फिलहाल 61 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के आस-पास है।

वहीं, पिछले एक महीने में गोल्ड की कीमतों में तकरीबन 9 फीसदी की तेजी आई है।

इजरायल पर हमास के हमले से ठीक पहले मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर सोने का बेंचमार्क फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट 5 अक्टूबर को 56,075 रुपये प्रति 10 ग्राम तक नीचे चला गया था। हालांकि उसके बाद गोल्ड ने शानदार तेजी दिखाई और 31 अक्टूबर को 61,539 रुपये प्रति 10 ग्राम की ऊंचाई तक पहुंच गया। सोने का बेंचमार्क दिसंबर कॉन्ट्रैक्ट सोमवार यानी 6 अक्टूबर को 0.28 फीसदी की नरमी के साथ 60,849 रुपये प्रति 10 ग्राम दर्ज किया गया।

इसी वर्ष 6 मई को MCX पर सोने की कीमत 61,845 रुपये प्रति 10 ग्राम के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।

जानकारों के मुताबिक गोल्ड में मौजूदा मजबूती की वजह इजरायल और हमास के बीच जारी सैन्य संघर्ष के मद्देनजर निवेश के सुरक्षित विकल्प (safe-haven) के तौर पर येलो मेटल (yellow metal) की मांग में आई तेजी है। इसके अलावा केंद्रीय बैंकों (Central Banks) की तरफ से सोने की लगातार हो रही खरीदारी ने भी कीमतों को एक हद तक सपोर्ट किया है।

यदि आने वाले समय में जियो-पॉलिटिकल टेंशन में कमी भी आती है तो केंद्रीय बैंकों की खरीदारी, मजबूत फिजिकल और इन्वेस्टमेंट बाइंग, अर्थव्यवस्था में धीमी तेजी, उच्च महंगाई दर सोने के लिए सपोर्टिव होंगे। इसके अलावे ज्यादा वैल्यूएशन को लेकर इक्विटी में गिरावट की आशंका, रुपये में नरमी गोल्ड की कीमतों को सपोर्ट कर सकते हैं।

क्वांटम ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी की फंड मैनेजर (alternative investments) गजल जैन कहती हैं, ‘आने वाले समय में सोना बेहतर प्रदर्शन कर सकता है क्योंकि इस बात की संभावना बढ़ गई है कि यूएस फेडरल रिजर्व अब आगे ब्याज दरों में बढ़ोतरी से बाज आएगा। साथ ही यदि अमेरिका की अर्थव्यवस्था में ज्यादा नरमी आती है तो महंगाई दर के लक्ष्य से ऊपर रहने के बावजूद अमेरिकी केंद्रीय बैंक को समय से पहले ब्याज दरों में कटौती करना पड़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो सोने की कीमतों में तेजी का एक दौर शुरू हो सकता है।

बहुत सारे जानकारों का मानना है कि अगले छह महीने में ग्लोबल लेवल पर मंदी और गहरा सकती है जिसके कारण अमेरिका और पश्चिमी देशों में ब्याज दरें गिरने लगेंगी।

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निर्मल बंग के कुणाल शाह के मुताबिक कैलेंडर ईयर 2024 के अंत तक इंटरनेशनल मार्केट में सोना 2,400 डॉलर प्रति औंस जबकि घरेलू बाजार में 70 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम तक ऊपर जा सकता है।

जानकारों के अनुसार मौजूदा परिस्थितियों में आप अपने पोर्टफोलियो में 10-15 फीसदी तक सोना रख सकते हैं। सोना पोर्टफोलियो में डाइवर्सिफिकेशन (diversification) की जरूरत भी पूरा करता है।

भारत में लोगों की दिलचस्पी अभी भी फिजिकल सोने में है, लेकिन नई पीढ़ी के समझदार निवेशक अब यह भी समझने लगे हैं कि फिजिकल गोल्ड के बजाय पेपर गोल्ड में निवेश करना ज्यादा बेहतर है। इसलिए आज बात पेपर गोल्ड में निवेश के विभिन्न विकल्पों यानी सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond), गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) और गोल्ड सेविंग फंड (गोल्ड म्युचुअल फंड/Gold Mutual Fund) की करेंगे, ताकि लोगों को किसी एक विकल्प के चयन में आसानी हो सके।

कहां, कितना निवेश?

सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond) और गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) दोनों में कम से कम 1 ग्राम गोल्ड के बराबर वैल्यू के एक यूनिट में निवेश कर सकते हैं। जबकि गोल्ड म्युचुअल फंड (gold mutual fund) में आप न्यूनतम 1,000 रुपये से एसआईपी (SIP) शुरू कर सकते हैं। गोल्ड म्युचुअल फंड के तहत Gold ETF में निवेश किया जाता है। Gold ETF और गोल्ड फंड में अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। जबकि सॉवरिन बॉन्ड में एक व्यक्ति एक वित्त वर्ष में अधिकतम 4 किलोग्राम सोने की कीमत के बराबर यूनिट में निवेश कर सकता है।

ध्यान रहे गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड फंड और सॉवरिन बॉन्ड के रिडेम्प्शन (redemption) के बाद निवेशकों को फिजिकल गोल्ड नहीं बल्कि सोने के मार्केट वैल्यू के बराबर कीमत भारतीय रुपये में ही मिलेगी।

कब खरीद-बेच सकते हैं?

Gold ETF को आप स्टॉक एक्सचेंज (NSE) पर कैश ट्रेडिंग के लिए निर्धारित समय के दौरान कभी भी खरीद या बेच सकते हैं। वहीं गोल्ड फंड में निवेश करने के लिए आपको फंड हाउस को अप्रोच करना होगा। फंड हाउस को अप्रोच आप या तो सीधे या एग्रीगेटर्स (aggregators), एजेंट वगैरह के जरिए कर सकते हैं। जबकि इसे आप रिडीम अन्य म्युचुअल फंड की तरह उसके नेट एसेट वैल्यू (NAV) पर कभी भी कर सकते हैं। अब बात सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की। यह सब्सक्रिप्शन के लिए हमेशा उपलब्ध नहीं होता। इसे सरकार की तरफ से आरबीआई समय-समय/निश्चित अंतराल पर जारी करती है। सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को कभी भी बेचा नहीं जा सकता है। बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांच साल के बाद बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है, जिसका इस्तेमाल ब्याज भुगतान की तारीख पर किया जा सकता है।

अगर आपने डीमैट फॉर्म में भी सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड लिया है तो आप इसे स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी शॉर्ट कर (बेच) सकते है। लेकिन यहां आपको या तो पर्याप्त खरीदार नहीं मिलेंगे या फिर आपको डिस्काउंट पर बेचना पड़ेगा। दूसरे मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर इंडेक्सेशन का फायदा नहीं मिलेगा।

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क्या डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट जरूरी?

Gold ETF के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट (demat and trading account) का होना जरूरी है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की एक्सचेंज पर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो आपको बॉन्ड को डीमैट फॉर्म में लेना होगा। जिसके लिए डीमैट अकाउंट का होना जरूरी है। गोल्ड फंड के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी नहीं है। मतलब सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ की तरह गोल्ड फंड की ट्रेडिंग नहीं की जा सकती।

क्या ब्याज मिलेगा?

सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में शुरुआती इन्वेस्टमेंट पर 2.5 फीसदी वार्षिक ब्याज मिलता है। यह हर 6 महीने में देय होता है। लेकिन ब्याज की रकम टैक्सेबल है। हालांकि ब्याज पर कोई TDS नहीं कटता है। जबकि गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर आपको कुछ भी ब्याज नहीं मिलता।

कितना खर्च?

गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड मैनेज करने के एवज में फंड हाउस/एसेट मैनेजमेंट कंपनियां निवेशक से चार्ज वसूलते हैं जिसे टोटल एक्सपेंस रेश्यो (Total Expense Ratio) कहते हैं। गोल्ड फंड को एक निश्चित अवधि से पहले रिडीम करने पर एग्जिट लोड (Exit Load) भी चुकाना होता है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में इस तरह का कोई अतिरिक्त एक्सपेंस नहीं है।

क्या लोन मिलेगा?

जरूरत पड़ने पर गोल्ड बॉन्ड के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकता है। लेकिन गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर यह सुविधा नहीं है।

लिक्विडिटी (liquidity) को लेकर बेहतर कौन?

गोल्ड ईटीएफ को स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी खरीदा या बेचा जा सकता है। गोल्ड फंड को भी कभी भी रिडीम किया जा सकता है। मतलब लिक्विडिटी की समस्या यहां नहीं है। लेकिन सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को कभी भी बेचा नहीं जा सकता है। बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांच साल के बाद बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है, जिसका इस्तेमाल ब्याज भुगतान की तारीख पर किया जा सकता है।

अगर आपने डीमैट फॉर्म में भी सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड लिया है तो आप इसे स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी शॉर्ट कर (बेच) सकते है। लेकिन यहां आपको या तो पर्याप्त खरीदार नहीं मिलेंगे या फिर आपको डिस्काउंट पर बेचना पड़ेगा। दूसरे मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर इंडेक्सेशन का फायदा जाता रहेगा। यानी गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड की तुलना में सॉवरिन बॉन्ड में लिक्विडिटी कम है।

टैक्स के मामले में बेहतर कौन?

अगर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को मैच्योरिटी के बाद रिडीम करते हैं तो आपको रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर इस तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं है। गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड पर टैक्स डेट फंड (35 फीसदी से ज्यादा इक्विटी में एक्सपोजर नहीं) की तरह लगता है। मतलब अगर आप इन्हें बेचते हैं तो उससे होने वाली कमाई को आपकी कुल आय में जोड़ दिया जाएगा। इस पर आपको अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स चुकाना होगा।

सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को अगर मैच्योरिटी से पहले यानी 8 साल से पहले रिडीम करते हैं तो फिजिकल गोल्ड की तरह ही टैक्स देना होगा। मतलब अगर आप इन्हें खरीदने के बाद 36 महीने पूरे होने से पहले ही बेचते हैं तो उससे होने वाली कमाई शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन (STCG) मानी जाएगी और इसे आपकी कुल आय में जोड़ दिया जाएगा। जिस पर आपको अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स चुकाना होगा। लेकिन अगर आप 36 महीने पूरे होने के बाद बेचते हैं तो आपको कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) चुकाना होगा। इंडेक्सेशन के तहत परचेज प्राइस को महंगाई (cost inflation index) के हिसाब से बढ़ा दिया जाता है, जिससे कैपिटल गेन कम हो जाता है और टैक्स देनदारी घटती है।

कहने का मतलब सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर टैक्स बेनिफिट तभी है जब आप उसे मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड करते हैं।

सलाह

अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को उसकी मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड कर सकते हैं तो आपके लिए यह बेहतर है। लेकिन अगर आप बेहतर लिक्विडिटी यानी कभी भी खरीदना या बेचना चाहते हैं तो आपको गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड फंड में निवेश करना चाहिए।

First Published - November 6, 2023 | 6:42 PM IST

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