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पंजाब में भगवंत मान सरकार की लैंड पॉलिसी से नाराज किसान फिर सड़क पर, बोले- जबरन हो रहा भूमि अधिग्रहण

पंजाब के किसान नई लैंड पूलिंग नीति का जोरदार विरोध कर रहे हैं और 24 अगस्त को पूरे राज्य में बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।

Last Updated- August 03, 2025 | 10:19 PM IST
farmer protest
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

पंजाब के किसान एक बार फिर सड़कों पर हैं। इस बार उन्होंने केंद्र सरकार नहीं, बल्कि राज्य की भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार की लैंड पूलिंग नीति के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। यह नीति राज्य सरकार ने इसी साल मई में घोषित की थी। विशेषज्ञों के अनुसार सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में शहरीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा 2013 में लाए गए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों को दरकिनार कर इस नीति को लागू किया है।

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जमीन लेने के लिए सामाजिक प्रभाव आकलन, पर्यावरण आकलन के साथ-साथ ग्राम सभा से 70 प्रतिशत सहमति लेने जैसे प्रावधान शहरीकरण के लिए किसानों से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से लंबा करते हैं। इसलिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए नए दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। लैंड पूलिंग नीति पंजाब के लगभग 164 गांवों में लागू है, जिसमें लगभग 65,000 एकड़ भूमि शामिल है। इसमें अधिकांश लगभग 48,000 एकड़ (74 प्रतिशत) औद्योगिक शहर लुधियाना के आसपास अधिग्रहित करने का प्रस्ताव है। वास्तव में, पंजाब के 27 प्रमुख शहरों के आसपास शहरी क्लस्टर विकसित करने के लिए इस तरह भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। आलोचकों का कहना है कि एक बार पूलिंग के लिए दिए जाने के बाद किसान इसके उपयोग को बदलने का अधिकार खो देंगे।

नीति का विवरण

विशेषज्ञों के अनुसार, नीति मोटे तौर पर कहती है कि यदि कोई किसान एक एकड़ कृषि भूमि पूलिंग के लिए देता है, तो उसे बदले में 1000 वर्ग गज विकसित आवासीय प्लॉट और 200 वर्ग गज कमर्शल प्लॉट मिलेंगे। यदि 20 एकड़ या इससे अधिक भूमि वाले बड़े किसान यदि अपनी जमीन पंजाब अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पुडा) को पूलिंग के लिए देने का निर्णय लेते हैं, तो उन्हें एक्सटर्नल डेवलपमेंट चार्ज (ईडीसी) या 1 करोड़ रुपये, जो भी अधिक हो, विकास शुल्क के रूप में देना होगा। हालांकि ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (ग्लाडा) के क्षेत्र में आने वाली भूमि के अधिग्रहण पर किसान को उन्हें वापस किए जाने वाले भूखंडों के आसपास बुनियादी ढांचा विकास के लिए एक्सटर्नल डेवलपमेंट चार्ज या 2 करोड़ रुपये, जो भी अधिक हो, देना होगा।

कितना मिलेगा मुआवजा

जिन किसानों ने तीन वर्ष या विकसित प्लॉट मिलने तक अपनी भूमि पूलिंग के लिए देने का विकल्प चुना था, उन्हें पहले 30,000 रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष की दर से मुआवजा देने का प्रस्ताव दिया गया था। हालांकि, किसानों के विरोध के बाद इसे बढ़ाकर 50,000 रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष कर दिया गया, जो बढ़कर 100,000 रुपये तक हो जाएगा। इसके अलावा, यदि भूमि विकास तय समय के भीतर नहीं हुआ, तो मुआवजा भूखंडों के सौंपे जाने तक हर साल 10 प्रतिशत बढ़ता जाएगा। कई विशेषज्ञों के अनुसार भगवंत मान सरकार की भूमि पूलिंग नीति कुछ-कुछ वैसी ही है, जैसी 2013 में तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार लायी थी। बस, एक महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि पुरानी नीति में किसानों के पास या तो अपनी भूमि को पूलिंग के लिए देने या भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक मुआवजा लेने का विकल्प था। वरिष्ठ पत्रकार हमीर सिंह ने कहा, ‘नई नीति में प्रभावित किसान की आजीविका के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।’

किसान क्यों कर रहे विरोध

नई नीति में तमाम विरोधाभास तो हैं ही, अब किसान राज्य की सरकार पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए वे विरोध के रास्ते पर चल पड़े हैं। पंजाब के प्रमुख शहरों में नियमित रूप से ट्रैक्टर मार्च निकाले जा रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने इस नीति के खिलाफ 24 अगस्त को पूरे राज्य में बड़ा विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है।

उनकी मुख्य शिकायत यह है कि अतीत के अनुभवों से पता चलता है कि दशकों तक कॉलोनियां कभी नहीं बनाई गईं और यहां तक कि ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं, जहां किसानों से अधिग्रहित भूमि कभी विकसित ही नहीं हुई।  एक वरिष्ठ किसान नेता ने सवाल उठाया, ‘पुडा जैसे प्राधिकरण अपने दम पर भूमि विकसित नहीं करेंगे, बल्कि बोली के माध्यम से चयनित किसी कॉलोनाइजर को सौंप देंगे, इस बात की क्या गारंटी है कि कॉलोनाइजर समय पर प्लॉट विकसित करेगा।’ भारत कृषक समाज के अध्यक्ष और पंजाब राज्य किसान और कृषि श्रमिक आयोग के पूर्व अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने कहा कि यह नीति मौलिक रूप से गलत है, क्योंकि पंजाब को अब और कॉलोनाइजेशन की आवश्यकता नहीं है।

मुख्यमंत्री भगवंत मान की मुश्किल

किसानों के प्रमुख वोट बैंक होने के साथ-साथ इस नीति के संभावित राजनीतिक नतीजों ने भगवंत मान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस मामले में वह अकेले पड़ गए हैं। मुख्यमंत्री ने किसानों को समझाने के लिए स्वयं कई गांवों का दौरा किया है। हालांकि आलोचकों ने कहा कि वह ऐसे गांवों में नहीं गए, जहां की भूमि अधिग्रहित की जानी है। विपक्षी दल कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा ने भी इस नीति का कड़ा विरोध किया है। राज्य सरकार किस तरह उलझ गई है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसानों को लुभाने के लिए मई के मध्य में पहली बार अधिसूचित होने के बाद से अब तक इस नीति में कम से कम चार बार संशोधन किया जा चुका है। ताजा संशोधन के अनुसार इसे अब पहले चरण में पटियाला, लुधियाना और मोहाली जैसे बड़े शहरों तक सीमित कर दिया गया है और फिर धीरे-धीरे छोटे शहरों में लागू किया जाएगा।

First Published - August 3, 2025 | 10:19 PM IST

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