सरकार श्रम संहिता नियमों को जल्द मानकीकृत करने की तैयारी कर रही है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय राज्य सरकारों द्वारा चार नई श्रम संहिताओं के तहत बनाए गए नियमों को मानकीकृत करने का काम मार्च तक पूरा कर सकता है। हालांकि इसमें पश्चिम बंगाल शामिल नहीं है, लेकिन इससे नई श्रम संहिताओं के लागू होने का मार्ग प्रशस्त होगा।
एक सरकारी अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘सरकार नई श्रम संहिताओं को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार फिलहाल राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ मिलकर इन नियमों में अपेक्षित एकरूपता लाने के लिए काम कर रही है। इससे मौजूदा श्रम कानूनों को चार संहिताओं के तहत लाया जा सकेगा और इसे मार्च तक पूरा होने की उम्मीद।’ अधिकारी ने बताया कि पश्चिम बंगाल और नगालैंड को छोड़कर अन्य सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अब नई श्रम संहिताओं के तहत नियम बनाए हैं।
अधिकारी ने कहा, ‘पहले पूर्वोत्तर के राज्य ऐसे नियम बनाने में पिछड़ रहे थे। मगर हमने उनका साथ दिया है और मदद की है। नागालैंड ने अब तक नियम नहीं बनाए हैं लेकिन उसने सहमति जताई है और एक-दो महीने में मसौदा नियम प्रकाशित करने की बात कही है। पश्चिम बंगाल को छोड़कर अन्य सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश इससे सहमत हैं। नियमों के मानकीकरण का काम पूरा हो जाने के बाद हम नए कानूनों को सरकार की इच्छा के अनुसार लागू करने के लिए तैयार होंगे।’
साल 2022 में केंद्रीय श्रम मंत्रालय के अंतर्गत स्वायत्त संस्था वीवी गिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान के एक अध्ययन में नई श्रम संहिता के तहत मसौदा नियमों में व्यापक अंतर को उजागर किया गया था। उसमें कहा गया था कि न केवल केंद्र एवं राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों के नियमों बल्कि राज्यों के बीच आपसी नियमों में भी अंतर है।
अध्ययन में कहा गया था, ‘कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नियम पहली नजर में नई श्रम संहिता की मूल भावना के विपरीत दिखते हैं। ऐसे में इन संहिताओं का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा।’
उदाहरण के लिए, वेतन संहिता के तहत केंद्र सरकार के नियमों में रोजाना 12 घंटे का प्रावधान है जबकि असम एवं केरल में उसे रोजाना साढ़े दस घंटे तक सीमित किया गया है। अध्ययन में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में विभिन्न परिस्थितियों के लिए प्रावधान हैं। केंद्रीय नियमों के तहत साल में दो बार महंगाई भत्ते में संशोधन का प्रावधान है। मगर आंध्र प्रदेश में केवल एक बार संशोधन करने का प्रावधान है। उत्तर प्रदेश में ऐसा कोई नियम ही नहीं है।
श्रम अर्थशास्त्री केआर श्याम सुंदर ने कहा कि नए श्रम कानूनों में अस्पष्टता ही इस समस्या की जड़ हैं। नई श्रम संहिताओं को सटीक और स्पष्ट तारीके से तैयार किया गया होता तो उसकी व्याख्या करने के लिए राज्यों के पास कम गुंजाइश होती। उन्होंने कहा, ‘मतभेदों को दूर करने के लिए त्रिपक्षीय सलाहकार का उचित उपयोग न करने से भी ऐसा हुआ है।’