एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि पिछले तीन वर्षो में सिर्फ 0.4 फीसदी काश्तकारों को जमींदारों से तेलंगाना सरकार की बहुचर्चित रैयतु बंधु आय सहायता का हिस्सा प्राप्त हुआ। जबकि, केवल 1 फीसदी को फसल क्षति के लिए मुआवजा मिला। हालांकि, उनमें से 77 फीसदी को अंतिम समय में किसी न किसी तरह का नुकसान उठाना पड़ा। यह अध्ययन जमीनी संगठन रैयतु स्वराज्य वेदिका द्वारा किया गया था जो काश्तकारों की स्थिति और उनकी दुर्दशा के व्यापक अध्ययनों में से एक है। हालांकि आज जारी अध्ययन काफी हद तक तेलंगाना पर केंद्रित है, लेकिन यह भारत में काश्तकारों की स्थिति पर प्रकाश डालता है।
2018-19 के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के देशभर के कृषि परिवारों की स्थिति का आकलन सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण भारत में कुल अनुमानित 10.19 करोड़ खेतों में से 17.3 फीसदी पट्टे पर थे। यह रिपोर्ट तेलंगाना के 20 जिलों के 34 गांवों में फैले 7,744 से अधिक किसानों के घर-घर जाकर व्यापक सर्वेक्षण के बाद तैयार की गई है। सर्वेक्षण किए गए 7,744 किसानों में से लगभग 2,753 किसान पट्टे पर ली गई भूमि पर काश्तकार थे। रिपोर्ट में पाया गया कि तेलंगाना में काश्तकारों की अनुमानित संख्या लगभग 22 लााख है जो एनएसएसओ द्वारा अपनी पिछली रिपोर्ट में अनुमानित संख्या से दोगुनी है।
अध्ययन से पता चला है कि राज्य के एक काश्तकार के लिए खेती के कारण औसत ऋण लगभग 2.7 लाख रुपये है। इसमें से लगभग 75 फीसदी निजी उधारदाताओं से 24 से 60 फीसदी की उच्च ब्याज दर पर ली गई है। यह भी पाया गया कि केवल 5 फीसदी काश्तकारों को राज्य सरकार के 2011 लाइसेंस्ड कल्टीवेटर्स एक्ट के तहत ऋण पात्रता कार्ड प्राप्त हुआ था और लगभग 44 फीसदी एमएसपी पर अपनी फसल बेच सकते थे। काश्तकारों की सामाजिक संरचना में पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल लोगों की एक बड़ी संख्या लगभग 61 फीसदी पिछड़ी जातियों की थी। जबकि दूसरे स्थान पर 22.9 फीसदी के साथ अनुसूचित जाति के किसान थे। अनुसूचित जनजाति 9.7 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर थी, उसके बाद अन्य जातियों और अल्पसंख्यकों का स्थान था।