अपनी 150वीं वर्षगांठ मनाने वाले भारतीय मौसम विभाग ने 2047 तक 3 दिन के लिए शून्य त्रुटि और 5 दिन के लिए 90 प्रतिशत शुद्धता के साथ मौसम पूर्वानुमान जारी करने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को मौसम संबंधी विजन डॉक्यूमेंट जारी किया। इससे पता चलता है कि मौसम विभाग सभी ब्लॉक और पंचायत स्तर पर गंभीर मौसमी घटनाओं के बारे में सटीक जानकारी देने की दिशा में काम कर रहा है।
मौसम पूर्वानुमान में मौजूदा अंतर को रेखांकित करने वाले विजन डॉक्यूमेंट में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ शामिल करने की बात कही गई है। साथ ही इसमें सभी तरह की गंभीर मौसमी घटनाओं के बारे में समय पर सटीक चेतावनी मिलने के बाद आपदा प्रबंधकों, आम जनता समेत सभी हितधारकों द्वारा उचित कार्रवाई सुनिश्चित कर शून्य मौतों का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है। इसके लिए अगले 2 साल, 10 साल और 22 साल के लिए लक्ष्य तय किए गए हैं।
जिसमें अंतिम लक्षित वर्ष 2047 तक पूरा होगा। विभाग ने साल 2047 तक सात दिन वाले गंभीर मौसमी पूर्वानुमान में 80 प्रतिशत एवं 10 दिन के लिए 70 प्रतिशत शुद्धता हासिल करने का लक्ष्य रखा है। गंभीर मौसमी घटनाओं में भारी वर्षा, तेज हवाएं और बाढ़ आदि शामिल होते हैं।
मौसम विभाग ने 2047 तक बेहतर रडार और उपग्रहों के माध्यम से मौसम संबंधी अवलोकन प्रणालियां स्थापित कर हर गांव और घर तक सभी प्रकार की गंभीर मौसमी घटनाओं का 100 प्रतिशत पता लगाने का लक्ष्य भी रखा है। मौसम विभाग के 150 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘हर हर मौसम, हर घर मौसम’ शीर्षक से विजन डॉक्यूमेंट जारी किया। प्रधानमंत्री मोदी ने वैज्ञानिकों से भूकंप के लिए चेतावनी प्रणाली विकसित करने की दिशा में काम करने का आग्रह किया। मोदी ने कहा, ‘भूकंप के लिए चेतावनी प्रणाली विकसित करने की जरूरत है और वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं को इस दिशा में काम करना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि मौसम के उन्नत पूर्वानुमानों ने चक्रवात के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान को काफी कम किया है। उन्होंने संस्थान की सराहना करते हुए इसे भारत की वैज्ञानिक यात्रा का प्रतीक बताया। मोदी ने इस बात का जिक्र किया कि किस तरह उन्नत मौसम पूर्वानुमान से चक्रवातों के दौरान होने वाली मौतों और आर्थिक नुकसान में में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ा और आर्थिक लचीलापन बना है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मौसम विज्ञान किसी भी देश की आपदा प्रबंधन क्षमता के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण समर्थन प्रदान करता है। प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए, हमें मौसम विज्ञान की दक्षता को अधिकतम करने की आवश्यकता है।’ उन्होंने याद किया कि कैसे 1998 में गुजरात के कांडला में चक्रवात और 1999 के ओडिशा सुपर चक्रवात ने हजारों लोगों की जान ले ली थी। उन्होंने कहा, ‘लेकिन बेहतर पूर्वानुमान के कारण जानमाल का नुकसान अब कम से कम है।’
इस अवसर पर मोदी ने देश को प्रत्येक मौसम और जलवायु का सामना करने के लिए ‘स्मार्ट राष्ट्र’ बनाने के मकसद से ‘मिशन मौसम’ की शुरुआत की। उन्होंने कहा, ‘मिशन मौसम टिकाऊ भविष्य और भविष्य की तैयारियों को लेकर भारत की प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है।’
‘मिशन मौसम’ का लक्ष्य अत्याधुनिक मौसम निगरानी तकनीक और सिस्टम विकसित करके, उच्च-रिज़ॉल्यूशन वायुमंडलीय अवलोकन, अगली पीढ़ी के रडार और उपग्रहों एवं उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटरों का इस्तेमाल करते हुए उच्च स्तपरीय क्षमता को हासिल करना है। यह मौसम और जलवायु प्रक्रियाओं की समझ को बेहतर बनाने, वायु गुणवत्ता डेटा प्रदान करने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा जो लंबे समय में मौसम प्रबंधन और हस्तक्षेप की रणनीति बनाने में सहायता प्रदान करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मौसम विज्ञान प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण भारत की आपदा प्रबंधन क्षमताओं में काफी सुधार हुआ है जो न केवल देश के लिए बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी फायदेमंद साबित हुई है। मोदी ने कहा, ‘आज, हमारी बाढ़ मार्गदर्शन प्रणाली नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका सहित पड़ोसी देशों को भी सूचनाएं दे रही है।’ राष्ट्रीय राजधानी स्थित भारत मंडपम में आयोजित समारोह में शिरकत करते हुए प्रधानमंत्री ने मौसम विभाग के 150वें स्थापना दिवस पर स्मारक सिक्का भी जारी किया।
पेरिस समझौता गंभीर खतरे में है: डब्ल्यूएमओ प्रमुख
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने मंगलवार को कहा कि पेरिस समझौता गंभीर खतरे में है और दुनिया को 2025 को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने एवं नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने की रफ्तार तेज करने के वास्ते निर्णायक जलवायु कार्रवाई के वर्ष के रूप में चिह्नित करना चाहिए। पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिस पर 2016 में हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि के दायरे में जलवायु परिवर्तन को सीमित करना, अनुकूलन और वित्त शामिल हैं।