उच्चतम न्यायालय ने आबकारी नीति में कथित घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धनशोधन के मामलों में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को शुक्रवार को जमानत दे दी। अदालत ने सीबीआई और ईडी दोनों ही मामलों में मुकदमे की सुनवाई शुरू होने में देर को जमानत का आधार बनाया। सिसोदिया 17 महीने बाद जेल से रिहा हुए हैं।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘अपील मंजूर की जाती है।’ दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला खारिज किया जाता है। सिसोदिया को ईडी और सीबीआई मामलों में जमानत दी जाती है।’
अधीनस्थ न्यायालयों की आलोचना करते हुए शीर्ष न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन के पीठ ने अपने निर्णय में कहा, ‘मामले की सुनवाई शुरू हुए बिना लंबे समय तक जेल में रखे जाने से वह शीघ्र सुनवाई के अधिकार से वंचित हुए हैं। अब समय आ गया है कि निचली अदालतें और उच्च न्यायालय इस सिद्धांत को स्वीकार करें कि जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है। न्यायाधीशों ने कहा कि मुकदमे के शीघ्र पूरा होने की संभावना के तहत सिसोदिया को असीमित समय तक जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार का हनन होगा।
दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया को दिल्ली आबकारी नीति में कथित घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार व धनशोधन मामलों में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) दोनों ने गिरफ्तार किया था। दोनों मामलों में शीर्ष अदालत की तरफ से जमानत मिलने पर 10 लाख रुपये के जमानती बॉन्ड और इतनी ही धनराशि के दो निजी मुचलके भरने के बाद वह रिहा हुए।
न्यायाधीशों ने जमानत की शर्तें तय करते हुए कहा कि उन्हें अपना पासपोर्ट विशेष अधीनस्थ न्यायालय में जमा कराना होगा। इसके अलावा वह न तो किसी गवाह को प्रभावित करने का प्रयास करेंगे और न ही सबूतों से छेड़छाड़ करेंगे। साथ ही उन्हें प्रत्येक सोमवार और गुरुवार को पूर्वाह्न 10 से 11 बजे के बीच जांच अधिकारी के समक्ष पेश होना होगा।
पीठ ने कहा, ‘इस अदालत का मानना है कि शीघ्र सुनवाई का अधिकार और स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र अधिकार हैं। इन अधिकारों से इनकार करते समय, निचली अदालतों के साथ-साथ उच्च न्यायालय को भी इस बात को उचित महत्व देना चाहिए था।’
पीठ ने पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि समय के साथ न्यायालय ने पाया कि निचली अदालतें और उच्च न्यायालय कानून के एक बहुत ही स्थापित सिद्धांत को भूल गए हैं कि सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जानी चाहिए।
मनीष सिसोदिया अभी मंत्री नहीं बनाए जा सकते। इसमें तकनीकी पेंच यह है कि आबकारी नीति मामले में ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जेल में बंद हैं। जब तक केजरीवाल जेल में रहेंगे तब तक न तो कोई मंत्री बनाया जा सकता है और न ही उपमुख्यमंत्री।
आप के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने 17 महीने तक सलाखों के पीछे रहने के बाद शुक्रवार को तिहाड़ जेल से बाहर आने पर कहा कि संविधान और लोकतंत्र की शक्ति के कारण उन्हें जमानत मिली तथा यही शक्ति दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की रिहाई सुनिश्चित करेगी। मरून रंग की कमीज पहने सिसोदिया जैसे ही तिहाड़ जेल से बाहर आए पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने ‘केजरीवाल, केजरीवाल’ के नारों से उनका स्वागत किया। कार्यकर्ताओं ने उन पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाईं।
(साथ में एजेंसियां)