महाराष्ट्र में पिछले साल शुरू की गई मुफ्त की योजनाएं अब राज्य के खजाने पर भारी पड़ने लगी है। राज्य के खर्चों को पूरा करने के लिए सरकार मुफ्त की योजनाओं में कटौती करें या फिर जनता के ऊपर बोझ बढ़ाएं। क्योंकि राज्य का राजकोषीय घाटा 2 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच चुका है। कोष पर बढ़ते भार की मुख्य वजह लाडकी बहिन योजना को माना जा रहा है जिसके चलते दूसरी योजनाएं प्रभावित हो रही है।
लाडकी बहिन योजना को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार ने पिछले साल अगस्त में शुरू किया था जिसके तहत पात्र महिलाओं को प्रतिमाह 1,500 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। महाराष्ट्र के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे ने कहा कि लाडकी बहिन योजना से राज्य के कोष पर भार पड़ रहा है और इसके कारण कृषि ऋण माफी योजना प्रभावित हो रही है। लाडकी बहिन योजना से राज्य पर सालाना लगभग 46,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आने का अनुमान है।
कोकाटे ने कहा कि लाडकी बहिन योजना के कारण अतिरिक्त खर्च जुड़ने से राज्य के अधिशेष बनाने की क्षमता प्रभावित हुई। यह अधिशेष किसानों के ऋण माफ करने के लिए इस्तेमाल किया जाता। लाडकी बहिन योजना के कारण जुड़े अतिरिक्त खर्च ने कृषि ऋण माफी के लिए धन अलग रखने की हमारी क्षमता को प्रभावित किया है। हम वित्तीय स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं और एक बार राज्य की आमदनी बढ़ने के बाद, हम अगले चार से छह माह में ऋण माफी योजना पर आगे का कदम उठाएंगे।
चुनाव के दौरान लाडली बहिन योजना के तहत मासिक भुगतान 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये करने का वादा किया गया था। ढाई करोड़ से ज्यादा महिलाएं योजना से जुड़ी हैं। अगर सरकार 2,100 रुपये महीना देती है, तो सालाना 63,000 करोड़ रुपये चाहिए। इसके अलावा, नमो शेतकरी महा सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को सालाना 12,000 रुपये मिलते हैं। इस योजना का खर्च भी करीब 13 हजार करोड़ रुपये के पार जाएगा। सरकार ने किसानों से योजना के तहत 12,000 की बजाय 15,000 रुपये सालाना देने का वादा कर रखा है।
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सरकारी खजाने पर बढ़ते बोझ ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। इसके लिए अब वह कोई रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं। महाराष्ट्र की महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने पिछले सप्ताह कहा था कि राज्य सरकार ने लाडकी बहिन योजना के फर्जी लाभार्थियों के बारे में शिकायतों पर कार्रवाई करने का फैसला किया है और उनके सत्यापन के लिए आयकर तथा परिवहन विभागों से जानकारी मांगी है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार केवल फर्जी लाभार्थियों से संबंधित शिकायतों पर ही कार्रवाई करेगी।
हाल में भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (कैग) ने महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति नाजुक होने और राज्य का राजकोषीय घाटा 2 लाख करोड़ रुपये के पार होने पर चिंता जताई है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2025-26 तक महाराष्ट्र को बाजार कर्ज के 94,845.35 करोड़ रुपये चुकाने होंगे और 83,453.17 करोड़ रुपये ब्याज देना होगा। अगले 5 साल में मूलधन और ब्याज पुनर्भुगतान के लिए औसत वार्षिक व्यय लगभग 60,201.70 करोड़ रुपये होगा।
राज्य का साल दर साल कर्ज बढ़ता जा रहा है। नियामनुसार राज्य सरकार कुल आय की तुलना में 23 से 24 प्रतिशत तक ही कर्ज ले सकती है और महाराष्ट्र का कर्ज 18 फीसदी तक पहुंच चुका है, यानी नया कर्ज लेने की बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं है। जीएसडीपी के अनुपात में राजकोषीय देनदारियों में वृद्धि का रुझान देखने को मिला है, जो 2018-19 में 17.27 फीसदी से बढ़कर 2022-23 में 18.73 फीसदी हो गई है। 2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार, कुल ऋण जीएसडीपी का 18.35 प्रतिशत है।