कर्नाटक ने पिछले पांच वर्षों में दो दलों, जनता दल (सेक्युलर) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकाल के तहत आर्थिक मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया। मई 2018 में चुनाव के बाद से राज्य में चार मुख्यमंत्री हुए हैं जिनमें से तीन भाजपा के और एक जद (एस) के मुख्यमंत्री रहे हैं। शुरुआत में भाजपा के बी एस येदियुरप्पा का कार्यकाल महज छह दिनों तक का ही रहा और उनके बाद जद (एस) नेता एच डी कुमारस्वामी 14 महीने से अधिक समय तक सत्ता में रहे जिसके बाद फिर से येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री का पद मिल गया। हालांकि येदियुरप्पा ने 28 जुलाई, 2021 को इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद से ही भाजपा के बसवराज बोम्मई राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
हाल के दिनों में कर्नाटक की अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय औसत की तुलना में थोड़ी अधिक बढ़ी है और जब वर्ष 2020-21 में कोविड-19 की पहली लहर के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कमी आई तब भी राज्य में इस मोर्चे पर कमी की यह दर अखिल भारतीय आंकड़ों की तुलना में बहुत कम थी।
जब वर्ष 2020-21 से पहले राष्ट्रीय आर्थिक वृद्धि दर धीमी हो गई तब भी राज्य ने पिछले वर्ष की अपनी वृद्धि दर को बनाए रखा। राष्ट्रीय स्तर पर जीडीपी वृद्धि, वर्ष 2018-19 के 6.5 प्रतिशत से कम होकर वर्ष 2019-20 में 3.9 प्रतिशत हो गई हालांकि राज्य की अर्थव्यवस्था दोनों वर्षों में 6.2 प्रतिशत तक बढ़ी।
कर्नाटक की प्रति व्यक्ति आमदनी दिल्ली और सिक्किम से काफी कम रही है लेकिन पांच साल में प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह चार शीर्ष रैंकिंग वाले राज्यों में शामिल था। वर्ष 2021-22 में इसकी प्रति व्यक्ति आमदनी 278,786 रुपये थी जो देश में तीसरी सबसे अधिक वार्षिक आमदनी थी। दिलचस्प बात यह है कि यह 148,424 के राष्ट्रीय औसत से 87 प्रतिशत अधिक थी।
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हालांकि, यह सिक्किम की 472,543 रुपये (41 फीसदी) और दिल्ली की 401,982 रुपये (31 प्रतिशत) की वार्षिक आमदनी की तुलना में कम थी। कर्नाटक वर्ष 2021-22 में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने वाले राज्य में शामिल हो गया और इसने महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया। कर्नाटक ने उस साल 22.07 अरब डॉलर का एफडीआई हासिल किया जो भारत को मिले कुल एफडीआई (58.77 अरब डॉलर) का 37.5 प्रतिशत था।
वहीं महाराष्ट्र 15.4 अरब डॉलर के साथ पीछे था। हालांकि, कर्नाटक 2022-23 के पहले नौ महीनों में इस रफ्तार को नहीं बनाए रख सका। महाराष्ट्र फिर से एफडीआई के मामले में शीर्ष रैंकिंग वाले राज्य के रूप में उभरा, जिसने 10.8 अरब डॉलर एफडीआई हासिल किए और इसके बाद कर्नाटक 8.8 अरब डॉलर के साथ कर्नाटक का स्थान रहा।
कर्नाटक की बेरोजगारी दर, राष्ट्रीय औसत से कम रही है। यह दर वर्ष 2021-22 में 3.2 प्रतिशत रही जबकि इसी वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर यह 4.1 प्रतिशत थी। वर्ष 2018-19 से यह रुझान समान ही रहा है। हालांकि, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस), जिससे डेटा संकलित किया जाता है, उसमें छिपी हुई बेरोजगारी की बात सामने नहीं आई।
राज्य की खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति दर भी राष्ट्रीय औसत से काफी बराबर है लेकिन हाल के महीनों में खुदरा कीमत वाली मुद्रास्फीति राष्ट्रीय औसत की तुलना में थोड़ी कम थी। राष्ट्रीय मुद्रास्फीति दर 6.7 प्रतिशत के स्तर पर वर्ष 2022-23 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 6 प्रतिशत के अधिकतम सीमा स्तर से ऊपर थी लेकिन यह राज्य में 5.5 प्रतिशत से थोड़ी कम थी।
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अर्थव्यवस्था की पृष्ठभूमि के लिहाज से देखा जाए तो 10 मई को होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनावों के अपने प्रचार अभियान के दौरान राजनीतिक दलों ने जो वादे किए हैं उनमें से कई रियायतें काफी हद तक किफायती हैं। राज्य इन योजनाओं को लागू करने के लिए वित्तीय रूप से मजबूत है, लेकिन इसने खर्च को लेकर जो प्रतिबद्धता जताई है उसमें तेजी आ रही और इसकी वजह से घोषित की गई कई मुफ्त योजनाओं की गुंजाइश सीमित हो रही है।
भारतीय जनता पार्टी ने राज्य की जनता से वादा किया है कि गरीबी रेखा से नीचे के हर घर को हर दिन आधा लीटर दूध, हर महीने पांच किलो अनाज और हर साल तीन रसोई गैस सिलिंडर दिए जाएंगे, वहीं कांग्रेस ने कम आमदनी वाले परिवारों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली, 10 किलो चावल देने की घोषणा की है। इसके अलावा पार्टी ने बेरोजगार स्नातकों के लिए 3,000 रुपये का मासिक भत्ता और डिप्लोमाधारकों (बेरोजगार) को दो साल की अवधि तक 1,500 रुपये देने का वादा भी किया है।
जद (एस) ने रैयतु बंधु कार्यक्रम के तहत बीज और उर्वरक खरीदने के लिए किसानों को 10 एकड़ तक की जमीन के लिए 10,000 रुपये प्रति एकड़ तक की सहायता देने की घोषणा की है। वहीं आम आदमी पार्टी (आप) ने घरेलू उपयोगकर्ताओं के लिए 300 यूनिट मुफ्त बिजली, छात्रों के लिए मुफ्त सिटी बस परिवहन, मोहल्ला क्लीनिक और एक पढ़े-लिखे उम्मीदवार को नौकरी मिलने तक 3,000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया है।
कर्नाटक का अपना कर राजस्व (ओटीआर) हाल के वर्षों में अपनी राजस्व प्राप्तियों का 70 प्रतिशत से अधिक था और चालू वित्त वर्ष में इसके लगभग 73 प्रतिशत होने का अनुमान है। राज्य में राजस्व का ज्यादा घाटा नहीं है। वास्तव में चालू वित्त वर्ष में इसके पास 0.02 प्रतिशत का छोटा राजस्व अधिशेष होने का अनुमान है।
हालांकि, इसकी प्रतिबद्ध देनदारियों मसलन, वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और प्रशासनिक व्यय के वित्त वर्ष 2024 तक 60 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है जो पिछले वर्ष में 55 प्रतिशत और वर्ष 2021-22 में 45 प्रतिशत तक था। राज्य अगले वित्त वर्ष से सातवां वेतनमान लागू करेगा।
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वर्ष 2023-24 के बजट के साथ पेश किए गए राजकोषीय घाटा कम करने से जुड़े पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए 7वें वेतनमान पर अमल करने से आने वाले वर्षों में कर्नाटक सरकार के वेतन और पेंशन देनदारियों में भारी वृद्धि होगी। सातवें वेतनमान को लागू करने के अतिरिक्त वित्तीय प्रभाव की बात करें तो अमल किए जाने वाले पहले वर्ष के दौरान इसका दायरा 12,000 करोड़ रुपये से 18,000 करोड़ रुपये के बीच होगा।
बजट दस्तावेजों के अनुसार, यदि सब्सिडी, वित्तीय सहायता और स्थानीय निकायों को किए जाने वाले हस्तांतरण जैसे अन्य जरूरी खर्चों को जोड़ा जाए तो इस मद के तहत कुल खर्च वर्ष 2023-24 में राजस्व प्राप्तियों का 92 प्रतिशत होने का अनुमान है।
इस प्रकार, राज्य की राजस्व प्राप्तियों को देखा जाए तो राजनीतिक दलों द्वारा घोषित विभिन्न मुफ्त योजनाओं का वहन करना मुश्किल होगा और अगर इसका खर्च उठाया भी जाता है तब राजस्व घाटा और फिर राजकोषीय घाटे का दायरा बढ़ेगा। वर्तमान में राजकोषीय घाटा, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के तीन प्रतिशत से नीचे है। राज्य को अपने पूंजीगत खर्च को कम करना होगा, जो 2023-24 में 58,328 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो 2.25 लाख करोड़ रुपये के कुल खर्च के एक-चौथाई से थोड़ा अधिक है।