महंगाई के साथ-साथ श्रम लागत बढ़ने से परेशान विकसित देश श्रमिकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। भारत इस मौके को भुनाने की जुगत में है। वह वहां अपने श्रमिक भेजने के लिए विभिन्न यूरोपीय देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों पर नजर गड़ाए हुए है। इस तरह का एक समझौता इस साल के शुरू में इजरायल के साथ किया जा चुका है, जबकि यूनान ने कृषि क्षेत्र में काम करने के लिए 10,000 श्रमिक भेजने के लिए भारत से संपर्क किया है। इसी प्रकार इटली ने भी अपने कस्बों में
म्यूनिसिपल स्टाफ के रूप में काम करने को कामगारों की मांग की है। मई में इजरायल के साथ 42,000 श्रमिक भेजने के लिए हुए समझौते को और विस्तार दिया जा रहा है। इजरायल बिल्डर एसोसिएशन (आईबीए) ने पिछले सप्ताह कहा था कि भारत से लगभग 10,000 निर्माण श्रमिकों को लाया जाएगा। अब उम्मीद है कि यह संख्या अगले कुछ महीनों में बढ़कर 30,000 हो जाएगी। सूत्रों ने बताया कि नए श्रमिकों की भर्ती के लिए आईबीए सीईओ इगल स्लोविक दिल्ली और चेन्नई में 10 से 15 दिन की भर्ती प्रक्रिया 27 दिसंबर से शुरू कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि चयन प्रक्रिया तीसरे पक्ष के जरिए संपन्न कराई जाएगी। हालांकि राज्य सरकार इसमें शामिल रहेगी। बीते अक्टूबर में इजरायल-हमास युद्ध शुरू होने से पहले वहां 18,000 भारतीय मौजूद थे। इनमें अधिकांश केरल से थे, जो वहां बुजुर्गों की देखभाल के लिए रखे गए थे। युद्ध लंबा खिंचता देख फिलिस्तीनियों से खाली हुए पद भरने के लिए इजरायल को फौरी तौर पर 90,000 विदेशी कामगारों की जरूरत है। हालांकि पिछले सप्ताह विदेश मंत्रालय ने संसद में कहा था कि फिलिस्तीनियों की जगह भारतीय निर्माण श्रमिकों की संभावित भर्ती के बारे में इजरायल के साथ कोई चर्चा नहीं हुई है।
हालांकि पिछले महीने ही हरियाणा सरकार ने इजरायल में बढ़ई, सरिया मोड़ने, टाइल लगाने और प्लास्टर करने जैसे कामों के लिए 10,000 कुशल श्रमिकों की भर्ती का नोटिस निकाला था। इसमें कहा गया था कि पहला वीजा और वर्क परमिट एक साल के लिए वैध होगा, जिसे एक साल और बढ़ाया जा सकता है। इसे अधिकतम 63 महीनों के लिए विस्तार दिया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन के पुराने रिकार्ड वाले हरियाणा, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्य यह मौका भुनाने के लिए उत्सुक हैं, लेकिन सरकार अन्य राज्यों को भी इसका फायदा देना चाहती है। इसके लिए उसने प्रवासी कौशल विकास योजना (पीकेवीवाई) के जरिए कौशल विकास मंत्रालय को सक्रिय कर दिया है। कौशल विकास मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि विदेश भेजे जाने वाले श्रमिकों के लिए अंतरराष्ट्रीय कौशल केंद्रों (एसआईआईसी) में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। बजट 2023-24 में सरकार ने विदेश में चुनिंदा क्षेत्रों में काम करने के लिए जाने के इच्छुक लोगों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों में 30 कौशल केंद्र खोलने की घोषणा की थी।
संबंधित देश की जरूरत के हिसाब से प्रशिक्षण, पुन: प्रशिक्षण, इमिग्रेशन और नौकरी के बाद किसी भी स्तर पर मदद उपलब्ध कराने के लिए वाराणसी और भुवनेश्वर में दो कौशल केंद्र खोले गए हैं। मंत्रालय ने संसद में जानकारी दी है कि अप्रैल 2022 से दिसंबर 2023 के बीच अंतरराष्ट्रीय कौशल केंद्रों द्वारा प्रशिक्षित 25,300 उम्मीदवारों को विदेशों में नौकरी मिल चुकी है।
नई दिल्ली में इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में सेंटर फॉर माइग्रेशन, मोबिलिटी ऐंड डायसपोरा स्टडीज की प्रमुख सुरभि सिंह द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट से पता चला है कि सरकार ने जनवरी 2015 से मार्च 2023 के बीच भारतीय श्रमिक उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न देशों के साथ 17 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1985 से 2014 के बीच ऐसे केवल 5 समझौते ही किए गए थे।
पिछले हफ्ते एक विवादास्पद कदम उठाते हुए यूनानी संसद ने कानून में संशोधन का प्रस्ताव पारित किया है, जिसके तहत पहले से देश में रह रहे अवैध प्रवासी चुनिंदा क्षेत्रों में नौकरी करने के लिए तीन साल का रिहायशी और कार्य परमिट हासिल कर सकते हैं।
एक राजनयिक सूत्र ने बताया कि यह आसान विकल्प नहीं है, लेकिन यूरोप में वाकई श्रमिकों की भारी कमी है। इन हालात से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि भारत जैसे देशों से निश्चित अवधि के लिए वैध कामगारों को लाने के द्विपक्षीय समझौते किए जाएं।
ग्रीक मीडिया की खबरों के मुताबिक इस तरह का समझौता पिछले साल मिस्र के साथ किया गया था और इस समय वहां की सरकार वियतनाम और फिलिपींस से श्रमिक लाने पर विचार कर रही है। यूनान इस समय लगभग 7000 कृषि कामगारों की कमी से जूझ रहा है। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि यूनान में 12,300 भारतीय रहते हैं। एथेंस में भारतीय दूतावास के अनुसार इनमें से अधिकांश पंजाब से हैं, जो कृषि, उद्योग और निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं।
इसी साल अगस्त में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन के दौरे पर यूनान गए थे। इस दौरान दोनों नेता मोबिलिटी ऐंड माइग्रेशन पार्टनरशिप एग्रीमेंट (एमएमपीए) को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने पर सहमत हुए थे, ताकि दोनों देशों के बीच श्रम बल की मुक्त आवाजाही को आसान बनाया जा सके।
बीते नवंबर में ही भारत ने इटली के साथ माइग्रेशन ऐंड मोबिलिटी पार्टनरशिप समझौता किया है। इटली में 1.57 लाख अप्रवासी भारतीय रहते हैं। यूरोप में ब्रिटेन के बाद इटली भारतीयों का दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां अधिकांश भारतीय खेती और डेयरी फार्म क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसी तरह का समझौता वर्ष 2018 में फ्रांस के साथ भी किया गया था।