आम लोगों को न्यायिक प्रणाली के जरिए इंसाफ दिलाने के मामले में उत्तर के मुकाबले दक्षिणी राज्यों की स्थिति बेहतर है। न्याय प्रदान करने की राज्यों की क्षमता आंकने के लिए हर साल तैयार होने वाली इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की रैंकिंग में कर्नाटक पहले स्थान पर है जबकि आंध्र प्रदेश दूसरे और तेलंगाना तीसरे नंबर पर है। रिपोर्ट में पुलिसिंग, न्यायपालिका, जेलों और कानूनी सहायता में क्षमता के आधार पर राज्यों को रैंक प्रदान की जाती है।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2025 में कर्नाटक ने पिछले साल की तरह अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा है जबकि आंध्र प्रदेश पिछले साल पांचवें स्थान से उठकर इस बार दूसरे स्थान पर आया है। तेलंगाना ने अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार किया है और वर्ष 2019 में 11वें स्थान से इस बार वह तीसरे स्थान पर रहा। केरल और तमिलनाडु जैसे ऐतिहासिक रूप से मजबूत प्रदर्शन करने वाले राज्यों में मामूली उतार-चढ़ाव आया, लेकिन वे शीर्ष पांच में बने रहे। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे मध्य-स्तरीय राज्यों ने भी न्याय दिलाने के मामले में लगातार सुधार किया है। कभी शीर्ष स्थान पर आने वाला महाराष्ट्र अब काफी नीचे खिसक गया है जबकि गुजरात और पंजाब के प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव का प्रचलन बना हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, राजस्थान, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने मामूली बदलावों के साथ मोटे तौर पर अपनी पहले जैसी स्थिति बनाए रखी है। इस सूची में उत्तर प्रदेश नीचे से एक पायदान ऊपर आया है तो पश्चिम बंगाल उसकी जगह पहुंच कर सूची में सबसे नीचे आ गया है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में छोटे राज्यों में सिक्किम पहले की तरह शीर्ष पर रहा। हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा सूची में मध्यम प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शुमार हैं तो मेघालय, मिजोरम और गोवा क्रमशः पांचवें, छठे और सातवें स्थान पर खिसक गए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में प्रति 10 लाख आबादी पर केवल 15 न्यायाधीश हैं, जो विधि आयोग की प्रति 10 लाख आबादी पर 50 न्यायाधीशों की सिफारिश से अभी बहुत दूर है। रिपोर्ट कहती है, ‘देश में 1.4 अरब लोगों के लिए केवल 21,285 न्यायाधीश हैं। यह 1987 के विधि आयोग की प्रति 10 लाख आबादी पर 50 न्यायाधीशों की सिफारिश से काफी कम है।’ रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राष्ट्रीय स्तर पर जिला न्यायालयों में औसत कार्य का भार प्रति न्यायाधीश 2,200 मामले हैं जबकि इलाहाबाद और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में प्रति न्यायाधीश मामलों की संख्या 15,000 है।’
मामले लंबित रहने की स्थिति को रेखांकित करते हुए रिपोर्ट कहती है, ‘कर्नाटक, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा को छोड़कर सभी उच्च न्यायालयों में हर दो में से एक मामला तीन साल से अधिक समय से लंबित है। अंडमान और निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, गोवा, झारखंड, महाराष्ट्र, मेघालय, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में जिला न्यायालयों में सभी मामलों में से 40 प्रतिशत से अधिक मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर पांच में से एक मामला पांच साल से अधिक समय से लंबित है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की कुल हिस्सेदारी 2017 में 30 प्रतिशत से बढ़कर अब वर्ष 2025 में 38.3 प्रतिशत हो गई है। उच्च न्यायालयों में यह 11.4 प्रतिशत से बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई है। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में जिला न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की हिस्सेदारी अधिक है। यह अलग बात है कि वर्तमान में 25 उच्च न्यायालयों में केवल एक महिला मुख्य न्यायाधीश हैं।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि पुलिस बल में 20.3 लाख कर्मियों में से वरिष्ठ पदों पर 1,000 से भी कम महिलाएं हैं। खास यह कि किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने पुलिस में महिलाओं के लिए अपने आरक्षित कोटे को पूरा नहीं किया है।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक भीड़भाड़ वाली जेलें हैं। दिल्ली की जेलों में 91 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं। तमिलनाडु ने बजट आवंटन में वृद्धि और इसके 100 प्रतिशत उपयोग के साथ जेलों के प्रबंधन में अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा है।