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भारत ने परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा बढ़ाई, भू-राजनीतिक तनावों के बीच सतर्कता तेज

परमाणु प्रतिष्ठानों के लिए संभावित खतरे कई तरीके के हो सकते हैं। इनमें कमांडो जैसे जमीनी हमले भी शामिल हैं। इसके जरिये महत्त्वपूर्ण उपकरणों को डिसैबल किया जा सकता है।

Last Updated- June 25, 2025 | 11:40 PM IST
Nuclear Energy

भारत वैश्विक भू-राजनीतिक संघर्षों के बीच अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा बढ़ा रहा है। इन प्रतिष्ठानों में परमाणु बिजली संयंत्र, फ्यूल फैब्रिकेशन फैसिलिटी, असैन्य अनुसंधान रिएक्टर एवं सैन्य अड्डे शामिल हैं। दो वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, यह निर्णय ऑपरेशन सिंदूर और इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच बढ़ते तनाव के बाद लिया गया है। इन संघर्षों के मद्देनजर संभावित परमाणु खतरों के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं।

कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को किए गए आतंकी हमले के बाद भारत ने 7 मई को जवाबी कार्रवाई के तौर पर ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया गया था। पहलगाम हमले में 26 लोगों की बर्बर हत्या कर दी गई थी। परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने वाला एक अन्य कारक 13 जून को शुरू हुआ इजरायल-ईरान संघर्ष है। मौजूदा स्थिति में तनाव कम होने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है, खासकर ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी बमबारी के बाद। पिछले सप्ताह दिल्ली में एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई जिसमें परमाणु ऊर्जा विभाग सहित प्रमुख मंत्रालयों और आरऐंडएडब्ल्यू एवं इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) जैसी सुरक्षा एजेंसियों ने भाग लिया।

एक अधिकारी ने बताया कि इस बैठक का उद्देश्य सभी परमाणु प्रतिष्ठानों में सुरक्षा प्रोटोकॉल को बढ़ाना था। उन्होंने कहा, ‘ऑपरेशन सिंदूर के बाद हमें अपने परमाणु ठिकानों के बारे में काफी सतर्क रहना चाहिए। ईरान के परमाणु ठिकानों पर इजरायल द्वरा किए गए हमले से खतरे की गंभीरता का पता चलता है। यह एक दीर्घकालिक चिंता है। इसलिए सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए बेहद सावधानीपूर्वक धीरे-धीरे योजना बनाने की आवश्यकता है।’

परमाणु प्रतिष्ठान विभिन्न ऐप्लिकेशन के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। इनमें चिकित्सा आइसोटोप उत्पादन, औद्योगिक, वैज्ञानिक अनुसंधान, कृषि उन्नति, जल संसाधन प्रबंधन और कम कार्बन उत्सर्जन के साथ बिजली उत्पादन शामिल हैं। इन सब से जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों से निपटने में मदद मिलती है।

फिलहाल भारत 22 परमाणु रिएक्टरों का संचालन करता है, जिनकी कुल क्षमता 6,780 मेगावॉट इलेक्ट्रिकल है। इसमें 18 प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (पीएचडब्ल्यूआर) और 4 लाइट वाटर रिएक्टर (एलडब्ल्यूआर) शामिल हैं। अधिकारी ने कहा, ‘परमाणु ठिकानों पर हमले से आंतरिक और बाहरी दोनों लिहाज से गंभीर खतरा पैदा होता है। इसे ध्यान में रखते हुए हालिया उच्चस्तरीय बैठक में सुरक्षा प्रोटोकॉल को और बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसमें आरऐंडएडब्लयू और आईबी जैसी एजेंसियों से राय ली गई। ये एजेंसियां स्थिति पर करीबी नजर रखेंगी।’ मगर सरकार की ओर से सुरक्षा उपायों पर अधिक विवरण नहीं दिया गया। इस बारे में जानकारी के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रवक्ता एवं सचिव और प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए सवालों के खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया।

परमाणु प्रतिष्ठानों के लिए संभावित खतरे कई तरीके के हो सकते हैं। इनमें कमांडो जैसे जमीनी हमले भी शामिल हैं। इसके जरिये महत्त्वपूर्ण उपकरणों को डिसैबल किया जा सकता है जिससे रिएक्टर कोर के पिघलने का खतना पैदा हो सकता है। बाहरी खतरों में रिएक्टर परिसरों पर हवाई अथवा साइबर हमले शामिल हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में 9/11 आयोग ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को 11 सितंबर, 2001 के हमलों के लिए संभावित लक्ष्यों के रूप में पहचाना था।

कोर पिघलने ईंधन भंडार को नुकसान पहुंचाने से व्यापक तौर पर रेडिएशन का खतरा पैदा हो सकता है। इजरायल अपने अस्तित्व के लिए खतरे के तौर पर ईरान को देखता है और उस पर नरसंहार का इरादा रखने का आरोप लगाता है।
उधर ईरान का आरोप है कि इजरायल गाजा में नरसंहार कर रहा है। ऐसे में इजरायल ने ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए उस पर प्रतिबंध लगाने और सैन्य कार्रवाई करने की वकालत की है। इजरायल ने 13 जून को ईरान के परमाणु एवं सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हुए व्यापक तौर पर हमला किया था। उससे पहले इजरायल की सेना ने तेहरान के निवासियों को वहां से निकलने की सलाह दी थी। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ऑपरेशन राइजिंग लायन का उद्देश्य इजराइल के अस्तित्व के लिए ईरानी खतरे को खत्म करना है।

इसके जवाब में ईरान ने इजरायल की ओर 100 मिसाइलें दागीं और तेल अवीव, हाइफा एवं जेरूसलम सहित कई शहरों पर हमला किया। इस ऑपरेशन को ट्रू प्रॉमिस 3 नाम दिया गया। इजरायल के हमलों में कथित तौर पर इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के कमांडर होसैन सलामी के साथ-साथ कई परमाणु वैज्ञानिक और ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन के पूर्व प्रमुख सहित ईरान के सैन्य नेतृत्व मारे गए।

विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर इजरायल के हमलों से सीमित रेडिएशन का खतरा पैदा हो गया है। मगर बुशहर परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर किसी भी हमले से परमाणु आपदा पैदा हो सकती है। ईरान की परमाणु क्षमताओं को खत्म करने के लिए इजरायल पूरी तरह प्रतिबद्ध है, मगर वह वैश्विक तेल उत्पादन के लिहाज से इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में परमाणु तबाही को रोकना भी चाहता है।

First Published - June 25, 2025 | 11:37 PM IST

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