विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत को यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकनिज्म (सीबीएएम) को लेकर ‘गहरी आपत्तियां’ हैं और उसे यह स्वीकार नहीं है कि दुनिया का एक हिस्सा बाकी सभी के लिए मानक तय करे। बेल्जियम और फ्रांस की यात्रा पर गए जयशंकर ने यूरोपीय समाचार वेबसाइट ‘यूरेक्टिव’ को दिए साक्षात्कार में चीन के साथ भारत के रिश्तों को लेकर भी बात की और यूरोप तथा भारत के मुक्त व्यापार समझौते के महत्व के बारे में भी बातचीत की। उन्होंने सुझाव दिया कि 1.4 अरब की आबादी वाला देश भारत कुशल श्रमिक मुहैया कराता है और चीन की तुलना में वह अधिक भरोसेमंद आर्थिक साझेदार है।
जयशंकर ने कहा, ‘भारत में हाल ही में मेरी मुलाकात कई यूरोपीय कंपनियों से हुई जिन्होंने अपनी आपूर्ति शृंखला का जोखिम कम करने के लिए वहां संयंत्र लगाए हैं। कई कंपनियां इस बात को लेकर बहुत अधिक सतर्क हैं कि उन्हें अपना डेटा कहां रखना है। वे केवल किफायत पर ध्यान देने के बजाय अपना डेटा अधिक सुरक्षित और भरोसे की जगह पर रखना चाहेंगी। क्या आप वाकई अपना डेटा ऐसे कारकों के हाथ में देना चाहेंगे जिनके साथ आप सहज महसूस न करें।’
जब उनसे यूरोपीय संघ द्वारा ग्रीन डील के माध्यम से वैश्विक मानक तय करने और सीबीएएम जैसे एजेंडा तय करने वाले मानकों के बारे में बात की गई तो जयशंकर ने कहा कि भारत इसके कुछ हिस्सों से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हम इसके कुछ हिस्सों के विरुद्ध हैं। हमे सीबीएएम से गहरी आपत्तियां हैं और हमने इस बारे में खुलकर बात की है। हम इस बात के खिलाफ हैं कि दुनिया का एक हिस्सा बाकी सभी लोगों के लिए मानक तय करे।’
सीबीएएम यूरोपीय संघ की योजना के अंतर्गत एक कर है जो भारत और चीन जैसे देशों से वस्तुओं के आयात के दौरान उत्सर्जित होने वाले कार्बन पर लगाया जाएगा। फरवरी में यूरोपीय संघ ने यह स्वीकार किया था कि भारत के मन में सीबीएएम को लागू करने को लेकर कुछ चिंताएं हैं और वह उन्हें हल करने का इच्छुक है। उभरते और कम विकसित देशों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में इस कदम के विरुद्ध आवाज बुलंद की और कहा कि ऐसे टैरिफ उनके देशों में आजीविका और आर्थिक वृद्धि को नुकसान पहुंचाएंगे।
भारत द्वारा रूस के विरुद्ध पश्चिम के प्रतिबंधों में शामिल नहीं होने के प्रश्न पर जयशंकर ने कहा, ‘हम नहीं मानते कि मतभेदों को जंग के जरिये दूर किया जा सकता है। हम नहीं मानते कि जंग के मैदान से हल निकलेगा। क्या हल होगा यह बताना भी हमारा काम नहीं है। मेरा कहना यह है कि हम निर्णय देते हुए नहीं दिखना चाहते लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम इसमें शामिल नहीं हैं।’
उन्होंने कहा कि भारत के यूक्रेन और रूस दोनों से मजबूत रिश्ते हैं। उन्होंने कहा, ‘परंतु हर देश, स्वाभाविक तौर पर अपने अनुभवों, इतिहास और हितों पर विचार करता है। भारत लंबे समय से पीड़ित रहा है। आज़ादी के तुरंत बाद हमारी सीमाओं पर अतिक्रमण हुआ जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठिए भेजे। उसे सबसे अधिक समर्थन पश्चिम के देशों का हासिल था। अगर वही देश अब कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के बारे में बातचीत करते हैं तो मुझे लगता है कि मेरा उनसे यह कहना सही है कि वे अपने अतीत पर नजर डालें।’
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर भरोसा कर सकता है और क्या भारत को लगता है कि वह अपनी बातों के पक्के व्यक्ति हैं, जयशंकर ने जवाब दिया, ‘मैं दुनिया को जैसा पाता हूं वैसे ही देखता हूं। हमारा लक्ष्य है हर उस रिश्ते को आगे बढ़ाना जो हमारे हित में हों और अमेरिका के साथ रिश्ता हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यहां किसी व्यक्ति विशेष की कोई बात ही नहीं है।’ बुधवार को जयशंकर ने यूरोपीय संसद की अध्यक्ष रॉबर्टा मेत्सोला से भी मुलाकात की। उन्होंने एक्स पर लिखा कि मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा आगे बढ़ने के साथ ही हम आपसी प्रतिबद्धताओं को हकीकत में बदलने और यूरोप तथा भारत की रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं।