देश में अप्रैल मध्य में ऊर्जा की सर्वाधिक मांग का आकड़ा अपने उच्चतम स्तर को पार कर गया है। तापमान बढ़ने के कारण ऊर्जा की मांग 200 गीगावाट के आंकड़े को लांघ चुकी है। अप्रैल में ऊर्जा की मांग साल 2018 के बाद से अब तक 100 फीसदी से अधिक बढ़ चुकी है। यह बीते साल कोविड महामारी के बाद के स्तर 192 गीगावाट के स्तर से भी ज्यादा हुई।
देश में गर्मी बढ़नी शुरू हो गई है और बिजली की मांग में भी खासा इजाफा आया है। ऐसे में बिजली का आपूर्ति का मुख्य दारोमदार कोयला पर आधारित ऊर्जा पर आ गया है। ऊर्जा संयंत्र के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 14 और 15 अप्रैल की रात में कोयला आधारित ऊर्जा का 163 गीगावाट इस्तेमाल किया गया – यह भारत के इतिहास में कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता का सर्वाधिक उपयोग हुआ। लिहाजा इतनी बिजली के उत्पादन के लिए 24 लाख टन कोयले की खपत हुई थी।
क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक इस रिकार्ड ने आने वाली गर्मी के लिए ऊर्जा व कोयले की खपत की दशा व दिशा तय कर दी है। हालांकि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय का अनुमान है कि बिजली की मांग 230 गीगावाट के स्तर को छूएगी और कोयले की मांग 22 करोड़ टन से अधिक होगी। राज्य संचालित ऊर्जा इकाइयों के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक देश में कोयले का संतोषजनक भंडार है। मार्च के अंतिम दो हफ्तों में मौसम अच्छा रहने के कारण इकाइयों को कोयले का भंडारण बढ़ाने में मदद मिली थी।
वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक तापीय इकाइयों में हालिया दैनिक (औसतन) भंडार 3.7 करोड़ टन (दोनों घरेलू और आयातित को मिलाकर) है। लिहाजा ऊर्जा इकाइयों के पास 14 दिन के कोयले का भंडार है। देश के सबसे बड़े बिजली उत्पादक NTPC के पास अभी 15 दिन के कोयले का भंडार है। NTPC शीघ्र ही गैस आधारित ऊर्जा से 4.5 गीगावाट उत्पादन के करीब पहुंच जाएगा। NTPC राज्य संचालित गेल से विशेष समझौते के तहत गैस प्राप्त करेगा। इस समझौते के तहत गेल लिमिटिल गैस की अग्रिम आपूर्ति करेगी और इसका इस्तेमाल नहीं होने की स्थिति में भी इसका पूरा भुगतान किया जाएगा। इस विशेष योजना के लिए ऊर्जा मंत्रालय ‘पॉवर सिस्टम डवलपमेंट फंड’ से भुगतान करेगा।