चांदनी चौक के मारवाड़ी कटरा बाजार में कुछ दिन पहले भीषण आग ने लगभग 150 दुकानों को खाक कर दिया। पुरानी दिल्ली के ‘दिल’ में तंग गलियों में कपड़े का यह बहुत ही बड़ा और व्यस्त बाजार है। शुरुआत में दमकल की 14 गाडि़यां भेजी गईं, लेकिन आग इतना विकराल रूप ले चुकी थी कि कुछ और गाडि़यों को मौके पर भेजना पड़ा। घंटों कड़ी मशक्कत के बाद अग्निशमन कर्मियों ने आग पर काबू पाया।
कपड़ा व्यापारी महेश कपूर स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं कि उनकी दुकान मुख्य सड़क पर है, जहां दमकल की गाडि़यां आकर रुकीं और दमकल कर्मियों ने सबसे पहले वहीं से आग बुझाना शुरू किया, जिससे उनकी दुकान जलने से बच गई।
कपूर ने बताया, ‘अंदर की गलियों में बाजार की जितनी दुकानें थीं, एक नहीं बची। सभी जल गईं क्योंकि दमकल की गाडि़यां इन संकरी गलियों में नहीं घुस सकीं।’
बताया जा रहा है कि यह आग किताबों की एक दुकान में शॉर्ट सर्किट से लगी थी। बाद में जांच-पड़ताल के बाद इसका बिजली कनेक्शन काट दिया गया। दमकल विभाग ने इस अग्निकांड में किसी जनहानि से इनकार किया है, लेकिन दुकानों में बहुत ही कीमती कपड़े जल कर राख हो गए। यहां के लहंगा-चुनरी, साड़ी,सलवार-सूट आदि बहुत ही मशहूर हैं।
घटना स्थल पर मौजूद अधिकारियों ने बताया कि गलियों में लटकते बिजली के अनगिनत तार, कपड़ों से भरी दुकानें और आग से बचाव का कोई इंतजाम नहीं होना यहां दुर्घटना को दावत देते हैं। अब तो हालात 2022 के मुकाबले कुछ सुधरे हैं।
दो साल पहले चांदनी चौक के भगीरथ पैलेस (बिजली सामान का थोक बाजार) में भीषण आग लगने से लगभग 200 दुकानें पूरी तरह जल गई थीं। यहां तंग गलियों में बड़े इलाके में फैली इस मार्केट की कई दुकानों में ज्वलनशील सामग्री रखी होती है। यहां पानी की भी कमी है और ऊपर से पुरानी इमारतें जर्जर हालत में हैं। इससे आग पर काबू पाना किसी चुनौती से कम नहीं। यही कारण रहा कि यहां आग बुझाने में पांच दिन लग गए थे।
अब दुकानदार भविष्य की ओर देख रहे हैं। हरिओम गोयल एक टक अपनी जली हुई दुकान को देखे जा रहे हैं। आग से उनका लगभग 40 से 50 लाख रुपये का कपड़ा और अन्य सामान जल गया। गोयल ने बताया, ‘हमारी दुकान में चार अग्निशमन यंत्र लगे थे, लेकिन आग इतना भयंकर रूप ले चुकी थी कि वे नाकाफी साबित हुए।’
दिल्ली दमकल सेवा के निदेशक अतुल गर्ग आग की बढ़ती घटनाओं के लिए मुख्य वजह भीषण गर्मी को मान रहे हैं। गर्ग ने कहा, ‘बढ़ते तापमान के कारण आग की घटनाएं अधिक होती हैं। ऊपर से यहां बिजली के तारों का घना जाल, जहां खंभों के पास आए दिन शॉर्ट सर्किट या विस्फोट होता है। हमारे आकलन के मुताबिक आग लगने की लगभग 70 फीसदी घटनाएं इन्हीं कमजोर और एक-दूसरे से लिपटे बिजली के तारों की वजह से होती हैं।’
इसी प्रकार की घटना जून के शुरू में दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के शाहीनबाग इलाके के 40 फुटा रोड पर हुई थी, जिसमें तीन रेस्तरां, दो दुकानें और फ्लैट जल गए थे। दमकल विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष आग लगने की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है। मई में विभाग को आग लगने की 5,218 घटनाओं की सूचना मिलीं, जो पिछले साल के मुकाबले 56.2 फीसदी अधिक हैं।
इस साल गर्मी का सीजन शुरू होने के बाद से बाजारों और औद्योगिक क्षेत्रों में आग लगने की कई बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं।
उदाहरण के लिए बीते रविवार को ही पुरानी दिल्ली से लगभग 25 किलोमीटर दूर मुंडका औद्योगिक क्षेत्र में एलईडी बनाने वाली फैक्टरी में आग लग गई थी। आग इतना विकराल रूप ले चुकी थी कि दमकल की लगभग 100 गाडि़यों को मौके पर बुलाना पड़ा।
अधिकारियों के अनुसार यह फैक्टरी बिना अग्निशमन मंजूरी (फायर एनओसी) के चल रही थी। यही नहीं, पूरी फैक्टरी में आग से बचाव के इंतजाम भी नहीं किए गए थे। इसके अलावा जून के शुरू में नरेला औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्टरी में लगी आग से जल कर तीन लोगों की मौत हो गई।
गर्ग कहते हैं, ‘व्यापारी हों या फैक्टरियां, कोई भी इमारत का इलेक्ट्रिक ऑडिट जैसे सबसे जरूरी नियमों का पालन नहीं कर रहा है। दिल्ली में लगभग 40,000 फैक्टरियां चल रही हैं, लेकिन केवल 1000-1200 फैक्टरियों के पास ही दमकल विभाग से जारी अग्निशमन मंजूरी (एनओसी) है। किसी भी फैक्टरी को शुरू करने से पहले एनओसी लेना एक बेहद जरूरी नियम है, लेकिन लोग इसका पालन नहीं कर रहे हैं। यह लापरवाही इतने व्यापक स्तर पर है कि हम हर व्यक्ति को दंडित नहीं कर सकते।’
इस मामले में पूरी दिल्ली की हालत लगभग एक जैसी ही है। पिछले महीने पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार में बच्चों के अस्पताल में आग लगने से सात नवजात की जान चली गई थी। जांच में खुलासा हुआ कि इस अस्पताल का लाइसेंस एक्सपायर हो चुका था, लेकिन फिर भी यह धड़ल्ले से चल रहा था।
इस अस्पताल में आग लगने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर सभी इमारतों में अग्निशमन यंत्र और फायर अलार्म जैसे आग से बचाव के इंतजामों को अनिवार्य करने की गुहार लगाई गई।
इस महीने की शुरुआत में उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए आग से बचाव के दिशा-निर्देश बनाने का आदेश पारित किया था। अदालत ने सरकार से इस संबंध में आठ सप्ताह के भीतर कार्य योजना रिपोर्ट (एटीआर) भी तलब की थी।
राजधानी दिल्ली में हालात कितने बदतर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां 1,225 अस्पताल हैं, लेकिन निजी और सरकारी कुल मिलाकर 193 के पास ही दमकल विभाग से जारी की गई वैध अग्नि सुरक्षा मंजूरी (एफएससी) है।
दिल्ली अग्निसेवा रूल बुक के नियमों के अनुसार आग से बचाव और जरूरी सुरक्षा यंत्रों से लैस इमारत को फिट घोषित किए जाने के बाद ही अग्नि सुरक्षा मंजूरी का प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है।
गर्ग ने कहा, ‘हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि प्रत्येक वर्ष सरकार से मंजूरीशुदा इलेक्ट्रिशियन से कारोबारी इमारतों और फैक्टरियों का इलेक्ट्रिक ऑडिट किया जाना चाहिए। इसकी रिपोर्ट दमकल विभाग को सौंपी जानी चाहिए। जब तक यह ऑडिट पूरा न हो जाए, किसी भी इमारत या फैक्टरी को फायर एनओसी नहीं मिलनी चाहिए।’