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Credit risk funds: क्रेडिट रिस्क फंड्स में हाई रिटर्न के पीछे की क्या है हकीकत? जानिए किसे करना चाहिए निवेश

Credit risk funds पिछले एक साल में सबसे बेहतर परफॉर्म करने वाली डेट फंड कैटेगरी बनकर उभरे हैं। इस दौरान इनका औसत रिटर्न 10.5% रहा

Last Updated- September 09, 2025 | 4:43 PM IST
Credit Risk Fund
Photo: Freepik

Credit risk funds: क्रेडिट रिस्क फंड्स पिछले एक साल में सबसे बेहतर परफॉर्म करने वाली डेट फंड कैटेगरी बनकर उभरे हैं। इस दौरान इनका औसत रिटर्न 10.5% रहा है। बीते साल में डीएसपी ने 22.9%, एचएसबीसी ने 21.6% और आदित्य बिड़ला सन लाइफ म्युचुअल फंड ने 17.1% का बेहद ऊंचा रिटर्न दिया है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि निवेशक इन आंकड़ों के झांसे में न आएं और निवेश का फैसला हमेशा अपनी जोखिम उठाने की क्षमता (Risk Appetite) के आधार पर ही लें।

हाई रिटर्न टिकाऊ नहीं हो सकते

हाल ही में बेहतर प्रदर्शन का अधिकांश हिस्सा कुछ ऐसे कारकों से उपजा है जो एक बार ही होते हैं। प्राइमइन्वेस्टर.इन की को-फाउंडर विद्या बाला कहती हैं, “ये ज्यादातर पहले के क्रेडिट डिफॉल्ट और राइट-ऑफ के बाद हुए राइट-बैक के कारण हैं। ये रिटर्न असली, बेहतर रिस्क एडजेस्टेड परफॉर्मेंस के बजाय ज्यादातर अकाउंटिंग रिकवरी हैं।”

फंड मैनेजर भी इस बात से सहमत हैं। एसबीआई म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर लोकेश माल्या कहते हैं, “हाई रिटर्न IL&FS ग्रुप के डेट इंस्ट्रूमेंट्स, जैसे कि चेनानी नाशरी, IL&FS फाइनेंशियल सर्विसेज और अन्य स्पेशल पर्पस व्हीकल से मिली रिकवरी से प्रेरित थे।”

कुछ खास स्कीम्स द्वारा कमाए गए रिटर्न ने कैटेगरी के औसत को बढ़ा दिया है। कॉर्पोरेट लेखक और ट्रेनर जॉयदीप सेन कहते हैं, “इन खास स्कीम्स के हाई रिटर्न का संभावित कारण पहले के डिफॉल्ट हुए बॉन्ड से मिली रिकवरी और क्रेडिट रेटिंग अपग्रेड होगा, जिससे वैल्यूएशन में सुधार हुआ।”

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हाई रिटर्न की संभावना

ये फंड रिटर्न बढ़ा सकते हैं। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एसेट मैनेजमेंट कंपनी के सीनियर फंड मैनेजर – फिक्स्ड इनकम, अखिल कक्कड़ कहते हैं, “ये क्रेडिट स्प्रेड को कैप्चर करके ज्यादा यील्ड की संभावना प्रदान करते हैं।”

ये फंड ज्यादा जोखिम लेने के लिए निवेशकों को कंपनसेट कर देते हैं। कोटक म्युचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम हेड अभिषेक बिसेन कहते हैं, “अगर भविष्य में कम रेटिंग वाले बॉन्ड की रेटिंग अपग्रेड होती है, तो निवेशकों को फायदा हो सकता है।”

निवेशक अपने डेट पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन लाने के लिए भी इन्हें शामिल कर सकते हैं।

क्रेडिट और लिक्विडिटी रिस्क

जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, इनमें क्रेडिट रिस्क ज्यादा होता है। बिसेन कहते हैं, “कम रेटिंग वाली सिक्योरिटीज में ज्यादा निवेश से डिफॉल्ट होने की संभावना बढ़ जाती है।”

जब किसी बॉन्ड की रेटिंग घट जाती है, तो उसकी लिक्विडिटी (नकदी) कम हो जाती है। बिसेन कहते हैं, “फंड मैनेजरों को कम रेटिंग वाले बॉन्ड भारी छूट पर बेचने पड़ सकते हैं, जिससे नुकसान होता है।”

संकट के दौरान, इन कम रेटिंग वाले बॉन्ड से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, जैसा कि अप्रैल 2020 के फ्रैंकलिन टेम्पलटन संकट के दौरान देखा गया था। सेन कहते हैं, “ऐसा संकट सरकारी सिक्योरिटीज (G-Sec) के बाजार में नहीं होगा और अच्छी क्वालिटी (AAA-रेटेड) वाले कॉर्पोरेट या पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (PSU) बॉन्ड में भी इसकी बहुत कम संभावना है।”

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सिर्फ अनुभवी निवेशकों को करना चाहिए निवेश?

अनुभवी निवेशक जो बाजार के उतार-चढ़ाव को झेल सकते हैं, वे इन फंडों में निवेश कर सकते हैं। कक्कड़ कहते हैं, “ज्यादा मुनाफा चाहने वाले निवेशक जो क्रेडिट मार्केट को समझते हैं और कभी-कभी होने वाले उतार-चढ़ाव से परेशान नहीं होते, वे इनमें निवेश कर सकते हैं।”

कंजर्वेटिव या पहली बार म्युचुअल फंड में निवेश करने वाले निवेशकों को इनसे दूर रहना चाहिए। बिसेन सलाह देते हैं कि इन फंडों पर केवल वही लोग विचार करें जिनकी निवेश की समय-सीमा मध्यम अवधि की हो।

निवेश से पहले क्या-क्या चेक करें?

निवेशकों को इन फंड्स में तभी निवेश करना चाहिए जब वे ज्यादा नेट यील्ड (पोर्टफोलियो यील्ड टू मैच्योरिटी माइनस एक्सपेंस रेश्यो) प्रदान करते हों। सेन कहते हैं, “इन फंड्स में निवेश करना तभी सही है जब बेहतर क्वालिटी वाले फंडों—जैसे कॉर्पोरेट बॉन्ड फंड या बैंकिंग और पीएसयू फंड—की तुलना में इनकी नेट यील्ड ज्यादा हो, लगभग एक फीसदी ज्यादा। यदि यह केवल 10-20 बेसिस पॉइंट ही है, तो इन फंड्स में अतिरिक्त क्रेडिट रिस्क लेना सही नहीं है।”

कक्कड़ मजबूत क्रेडिट ट्रैक रिकॉर्ड वाले मैनेजरों को चुनने, डायवर्स पोर्टफोलियो का चयन करने और समय-समय पर पोर्टफोलियो की क्रेडिट क्वालिटी की जांच करने की सलाह देते हैं।

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क्रेडिट रिस्क फंड किसी भी निवेशक के डेट एलोकेशन का एक छोटा हिस्सा ही होना चाहिए। सेन कहते हैं, “इन फंड्स में आवंटन फिक्स्ड-इनकम पोर्टफोलियो के 5-10 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए।” कक्कड़ कहते हैं कि इन फंड्स के लिए सुझाई गई होल्डिंग पीरियड कम से कम तीन से पांच साल होनी चाहिए।

First Published - September 9, 2025 | 4:38 PM IST

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