Consumption Funds: जीएसटी दरों में बड़ी कटौती से खपत में तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है। चार की जगह अब केवल दो टैक्स स्लैब रह जाएंगे और कई सामान सस्ते हो जाएंगे। जानकारों का कहना है कि इस कदम से उन कंजम्पशन फंड्स को सहारा मिलेगा, जिन्होंने बीते एक साल में (-1.4%) तक का फ्लैट रिटर्न दिया है। ये फंड्स FMCG, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटो, रिटेल और होटल जैसे सेक्टर्स में निवेश करते हैं।
ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, फुटवियर और कपड़ा जैसी डिस्क्रिशनरी कैटेगरीज को जीएसटी कटौती से सबसे ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद है। मिरे असेट के रिसर्च एनालिस्ट और फंड मैनेजर सिद्धांत छाबड़िया का कहना है, “ये ऐसे सेगमेंट हैं, जहां महंगे माहौल में उपभोक्ता खरीदारी टालते हैं। कीमतों में कमी से मांग बढ़ सकती है और वॉल्यूम रिकवरी तेज हो सकती है।”
इसके अलावा, यह कटौती अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर से ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर की ओर शिफ्ट को भी तेजी दे सकती है। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्युचुअल फंड की फंड मैनेजर प्रियंका खंडेलवाल कहती हैं, “कंजम्पशन फंड्स को फायदा हो सकता है क्योंकि कंपनियों की वॉल्यूम ग्रोथ बेहतर होगी और साथ ही डिस्पोजेबल इनकम बढ़ने से डिस्क्रिशनरी खर्च भी बढ़ सकता है।”
इनकम टैक्स में कटौती से लोगों के पास लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय आएगी। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से एक फीसदी ब्याज दर में कटौती भी खपत को बढ़ावा देगी। साथ ही, आठवें वेतन आयोग का भुगतान भी खपत को सहारा देने वाला बड़ा कारक माना जा रहा है।
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पिछले कुछ वर्षों में इस सेक्टर को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। छाबड़िया के मुताबिक, “उच्च महंगाई ने उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता घटाई, डिस्क्रिशनरी डिमांड को टाल दिया और कमजोर ऑपरेटिंग लेवरेज के कारण मार्जिन पर दबाव डाला। इन वजहों से कमाई पर असर पड़ा और नतीजतन स्टॉक्स का प्रदर्शन कमजोर रहा।”
कमाई की रफ्तार सुस्त रही है, लेकिन कई कंजम्पशन स्टॉक्स के वैल्यूएशन में पहले से ही ग्रोथ की उम्मीदें शामिल हैं। खंडेलवाल का कहना है, “उम्मीद और हकीकत के बीच इस अंतर ने स्टॉक प्राइस पर दबाव डाला है।”
हालांकि, भू-राजनीतिक जोखिम इक्विटी मार्केट के साथ-साथ कंजम्पशन स्टॉक्स पर भी असर डाल सकते हैं। फंड मैनेजर्स का मानना है कि वॉल्यूम बढ़ने और ऑपरेटिंग लेवरेज सुधरने से मार्जिन मजबूत होंगे, जिससे मीडियम से लॉन्ग टर्म में कंजम्पशन सेक्टर का आउटलुक पॉजिटिव दिखता है।
कंजम्पशन फंड्स लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए बेहतर माने जाते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो पांच साल या उससे ज्यादा समय तक निवेश करना चाहते हैं। अरुणएसेट इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के को-फाउंडर और पार्टनर अंकित पटेल कहते हैं, “चूंकि ये थीमैटिक प्रोडक्ट्स हैं, इनमें डाइवर्सिफिकेशन की कमी होती है। जब ग्रोथ धीमी पड़ती है या महंगाई और ब्याज दरें बढ़ती हैं, तब ये पिछड़ सकते हैं। इसलिए ये रिटायर लोगों, सावधानी से बचत करने वाले या अल्पकालिक जरूरत वाले निवेशकों के लिए सही विकल्प नहीं हैं।”
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थीमैटिक फंड्स में सही समय पर एंट्री और एग्जिट बेहद जरूरी है। सैंक्टम वेल्थ के हेड ऑफ इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स आलेख यादव का कहना है, “बिना प्रोफेशनल गाइडेंस के खुदरा निवेशकों के लिए यह करना मुश्किल हो सकता है।” इन फंड्स की चक्रीय प्रकृति और सीमित फोकस को देखते हुए, इन्हें वही निवेशक अपनाएं जो आर्थिक माहौल को लगातार ट्रैक कर सकें।
एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि इक्विटी पोर्टफोलियो में कंजम्पशन फंड्स की हिस्सेदारी 5-10 फीसदी तक ही रखी जाए। आक्रामक निवेशकों के लिए यह सीमा 12-15 फीसदी तक हो सकती है। पटेल कहते हैं, “क्योंकि डाइवर्सिफाइड फंड्स में पहले से ही कई कंजम्पशन स्टॉक्स शामिल होते हैं, इसलिए इन्हें कोर पोर्टफोलियो नहीं बल्कि सप्लिमेंट की तरह देखें। इनकी चक्रीय प्रकृति को देखते हुए, ब्रॉडबेस्ड फंड्स के मुकाबले इसमें एंट्री और एग्जिट का समय ज्यादा मायने रखता है।”
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निवेशकों को फंड चुनते समय उसके परफॉर्मेंस को अलग-अलग मार्केट साइकिल्स में परखना चाहिए। साथ ही, पोर्टफोलियो की संरचना, फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड और खर्च अनुपात (Expense Ratio) भी देखना जरूरी है। पटेल कहते हैं, “ध्यान रखें कि फंड का साइज और लिक्विडिटी पर्याप्त हो और वह किसी भरोसेमंद फंड हाउस से आता हो।”
यादव का कहना है, “निवेशकों को ऐसे फंड्स चुनने चाहिए जिनका लंबी अवधि का मजबूत रिकॉर्ड हो, जिनके मैनेजर्स अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रखते हों और जिनका परफॉर्मेंस बुल और बियर मार्केट दोनों में टेस्ट हुआ हो। साथ ही, यह भी जरूरी है कि फंड अपने कंजम्पशन थीम पर ही टिका रहे और उसे किसी डाइवर्सिफाइड फंड की तरह मैनेज न किया जाए।”