भारत में चल रहे लोक सभा चुनावों और तपती गर्मी के बीच नई चुनौती डीपफेक वीडियो बन गई है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से जुड़े एक डीपफेक वीडियो की जांच के संबंध में दिल्ली पुलिस के साथ सहयोग करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की है। इस वीडियो में कथित तौर पर शाह को यह कहते हुए दिखाया गया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आरक्षण विरोधी है।
साथ ही दिल्ली उच्च न्यायालय में गुरुवार को चुनावों के दौरान डीपफेक वीडियो के प्रसार से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने वाला है। हालांकि, आंकड़ों की सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन चुनाव के दौरान डीपफेक में कथित रूप से काफी वृद्धि हुई है।
ग्रांट थॉर्टन भारत में साइबर और आईटी रिस्क पार्टनर अक्षय गार्केल ने कहा, ‘एआई और मशीन लर्निंग में प्रगति ने डिजिटल टूल में दक्ष किसी भी व्यक्ति के लिए डीपफेक सामग्री तैयार करना काफी सरल बना दिया है।’ उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत द्वेष से राजनीतिक छल तक विभिन्न तरह की नकली सामग्री तैयार करने में काफी इजाफा हुआ है।
शॉर्ट हिल्स एआई के सह-संस्थापक पवन प्रभात ने तथाकथित विश्वसनीय डीपफेक में सोरा, ईएमओ और वासा-1 जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियों की भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने कहा, ‘इस साल यह उछाल इसलिए भी है क्योंकि भारत और अमेरिका जैसे प्रमुख लोकतंत्रों के साथ-साथ अन्य देशों में भी चुनाव होने वाले हैं।’
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा इस साल की शुरुआत में एआई के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश जारी करने के बाद भी भारत में 90 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के बीच मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए एआई टूल के दुरुपयोग के प्रति चिंताएं बनी हैं।
मौजूदा भारतीय कानून डीपफेक के खिलाफ कुछ उपाय पेश करते हैं। इसमें आईटी नियम 2021 के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसार को रोकने वाले प्रावधान भी शामिल हैं। इंडस लॉ में पार्टनर रंजना अधिकारी कहती हैं, ‘नियम 3 (1) बी (5) और 3 (1) (बी) (6) मध्यस्थों (सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) पर अपने उपयोगकर्ताओं को गलत जानकारी अथवा ऐसी सामग्री का प्रसार नहीं करने के लिए सूचित करना का दायित्व होता है।’
अधिनियम के नियम 3 (2) (बी) में कहा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को शिकायत मिलने के 24 घंटे के भीतर ऐसी सामग्री को हटाना होगा जिसमें किसी व्यक्ति की तस्वीरों को आर्टिफिशल तरीके से बिगाड़ा गया अथवा छेड़छाड़ किया गया हो।
मगर कानून के जानकार इसके सामाजिक प्रभाव को व्यापक तरीके के दर्शाने के लिए डीपफेक निर्माण परिवेश को लक्षित कर खास कानून बनाने की वकालत करते हैं। गार्केल का कहना है, ‘डीपफेक निर्माण परिवेश को ध्यान में रखकर कानून बनाने से पीड़ितों को कानूनी सहायता मिलेगी और इससे उन्हें लाभ मिलेगा। इससे इस मुद्दे से निपटने में भी बड़े पैमाने पर सहायता मिलेगी।’
डेलॉयट इंडिया में पार्टनर संतोष जिनुगु ने कहा, ‘इस प्रौद्योगिकी के संभावित खतरे और दुरुपयोग से व्यक्तियों, व्यवसायों और सामाजिक अखंडता की सुरक्षा के लिए भारत में डीपफेक के लिए नियम बनाना बहुत जरूरी है।’
विशेषज्ञों ने यह भी सुझाया कि इस मुद्दे से निपटने के लिए सरकारी एजेंसियों, प्रौद्योगिकी फर्मों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सार्वजनिक जागरूकता और सहयोग बढ़ाने की जरूरत है।
कुछ ने स्वयं सत्यापन और संयम को भी जरूरी बताया। प्रभात ने कहा कि इन वीडियो को पूरी तरह से खत्म करना काफी मुश्किल है, लेकिन हम इसके प्रति सावधान रह सकते हैं कि हम क्या मानते हैं। बड़े और विश्वसनीय स्रोतों से मिली खबरों पर ही भरोसा करना सबसे अच्छा है।