‘चाय की शैंपेन’ के नाम से मशहूर दार्जिलिंग में मार्च और अप्रैल से सीजन में तोड़ी जाने वाली चाय (फर्स्ट फ्लश) के उत्पादन पर लगभग चार महीने से चले आ रहे सूखे का असर पड़ रहा है। फर्स्ट फ्लश की अहमियत यह है कि दार्जिलिंग में कुल फसल का लगभग 15-20 प्रतिशत हिस्सा इसी का होता है और साल भर की कमाई में इसकी हिस्सेदारी 35-40 प्रतिशत होती है। इसका लगभग 60-65 प्रतिशत निर्यात किया जाता है। लेकिन शुष्क मौसम नाजुक और फूलों वाली दुनिया की बेहतरीन चाय की फसल का नुकसान कर रहा है।
पिछली अच्छी बारिश अक्टूबर की शुरुआत में हुई थी और फरवरी के अंत तक बारिश में लगभग एक इंच तक की कमी रही। दार्जिलिंग परामर्श केंद्र के टी रिसर्च एसोसिएशन के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एस. सन्निग्रही ने कहा, ‘अगर 15 मार्च तक बारिश नहीं होती है, तो फर्स्ट फ्लश में 40-50 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है।
अगर अगले कुछ दिनों में बारिश होती है, तब भी कमी की भरपाई होने की संभावना नहीं है। सन्निग्रही ने कहा, ‘किसी भी बारिश के बाद की स्थिति एक पखवाड़े के बाद ही महसूस की जाएगी। ऐसे में फसल का नुकसान होगा। अगर फर्स्ट फ्लश प्रभावित होगी तो यह सेकंड फ्लश पर भी भारी पड़ेगा।’
इंडियन टी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के चेयरमैन अंशुमन कनोडि़या ने कहा कि विभिन्न देशों में आयातकों द्वारा सीजन की पहली चाय पत्तियों को आयातक जल्द ही विभिन्न देशों में हवाईजहाज से भेजते हैं ताकि इसे जल्द से जल्द टेबल पर पेश किया जा सके। समुद्री मार्ग से भेजने की तैयारी आमतौर पर अप्रैल में शुरू होती है।
कनोडि़या ने कहा कि अभी तक फसल और गुणवत्ता के हिसाब से फर्स्ट फ्लश में चुनौती दिखाई दे रही है, ऐसे में इस पर फैसला करना मुश्किल है। उन्होंने कहा, ‘निचले इलाके के बागान पहले से ही प्रभावित हैं। लेकिन हम उस स्थिति तक नहीं पहुंचे हैं जहां इसे जिले के कुछ हिस्सों में बचाया नहीं जा सके।’
दार्जिलिंग के लिए अनियमित वर्षा कोई नई बात नहीं है लेकिन इसने पिछले साल दो दशकों में सबसे कम बारिश दर्ज की है। लेकिन अभी चाय उगाने वाले क्षेत्रों के बीच, यह मौसम के लिहाज से मुश्किल वाली जगह है। उत्तरी बंगाल के दार्जिलिंग से करीब 100 किलोमीटर दूर डुआर्स में स्थिति बेहतर है, जबकि ऊपरी असम भी इस समय अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में है।
अमलगमेटेड प्लांटेशंस प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक विक्रम सिंह गुलिया ने कहा, ‘डुआर्स और असम में फरवरी के महीने में कुछ बारिश हुई थी जो मार्च के मध्य तक शुरुआती फसल में मदद करेगी। हालांकि, अगर मार्च और अप्रैल में अधिक बारिश नहीं होती है तब मार्च के अंत से मई तक की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।’
भारतीय चाय संघ (आईटीए) के महासचिव अरिजित राहा ने भी कहा कि बारिश में देरी से सूखे जैसे हालात पैदा हो सकते हैं, जिसके लंबे समय तक बने रहने पर उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों में फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
उत्तर भारत में मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और असम शामिल है जिनका कुल चाय उत्पादन में लगभग 83 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। ऊपरी असम में फसल की स्थिति काफी बेहतर मानी जा रही है। एम के शाह एक्सपोर्ट्स के चेयरमैन हिमांशु शाह ने कहा, ‘ऊपरी असम में स्थिति बहुत अच्छी है। 2023 में अब तक बारिश पिछले साल की तुलना में अधिक थी। उन्होंने कहा, ‘नॉर्थ बैंक, गोलाघाट, जोरहाट में थोड़ी कमी है। लेकिन अब तक फसल को लेकर कोई चिंता नहीं है।’
हालांकि, उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अगर अलनीनो का असर होता है और बारिश कम होती है तब चीजें बदल सकती हैं। शुष्क मौसम की स्थिति ने दक्षिण भारत में उत्पादन पर असर डाला है। यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन (यूपीएएसआई) के सचिव संजित आर नायर ने कहा, मुन्नार जैसे दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में, फरवरी के महीने में लगभग 550-600 हेक्टेयर ठंड से प्रभावित हुआ।
उन्होंने कहा, ‘इसीलिए, हम फसल में 20-25 प्रतिशत की गिरावट की आशंका जता रहे हैं। शुष्क मौसम के कारण नीलगिरि क्षेत्र में भी 20-22 प्रतिशत कम फसल देखने को मिलेगी। कुल मिलाकर, पहली तिमाही में दक्षिण भारत में पिछले साल की तुलना में कम फसल होगी।’