देश में तेंदुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की गुरुवार को आई ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में देशभर में करीब 13,874 तेंदुए हैं। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार शिवालिक पहाड़ियों और उत्तर भारत के कई इलाकें में इनकी संख्या में गिरावट आई है। मंत्रालय ने कहा कि ताजा गणना में तेंदुओं की संख्या 12,616 से 15,132 के बीच पाई गई है, जबकि इससे पहले 2018 में किए गए सर्वे में यह आंकड़ा 12,172 से 13,535 के बीच था।
यह रिपोर्ट राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एवं वन्यजीव संस्थान द्वारा किए गए पांचवें चक्र की गणना पर आधारित है। यह सर्वेक्षण चार बड़े टाइगर रिजर्व में 18 बाघ राज्यों में तेंदुओं की रिहायश वाले लगभग 70 फीसदी क्षेत्र में किया गया।
भारतीय तेंदुआ जिसका वैज्ञानिक नाम पैंथेरा पार्डस फुस्का है, अमूमन भारत, नेपाल, भूटान समेत पाकिस्तान के कुछ इलाकों में पाया जाता है। हालांकि, मेंग्रोव वन वाले क्षेत्रों और रेगिस्तान में यह नहीं दिखाई देता।
ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि विभिन्न राज्यों में इनकी संख्या अलग-अलग तरह से घटी या बढ़ी है। तमिलनाडु में तेंदुओं की संख्या में जहां खासी वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं राजस्थान में संख्या स्थिर है। अलबत्ता यहां थोड़ी कमी ही आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में तेंदुओं की संख्या लगातार देश में सबसे अधिक बनी हुई है, जहां 3,907 तेंदुए पाए गए हैं। यहां वर्ष 2018 में 3,421 तेंदुए थे। महाराष्ट्र में 2018 में 1,690 तेंदुए थे, जो 2022 में बढ़कर 1,985 हो गए।
कर्नाटक में इनकी संख्या 1,783 से बढ़कर 1,879 और तमिलनाडु में 868 से बढ़कर 1,070 हो पहुंच गई। वहीं, अरुणाचल प्रदेश में इनकी संख्या में सबसे कम वृद्धि हुई, जहां 2018 में 11 तेंदुए थे, वर्ष 2022 में यह संख्या 42 तक ही पहुंची।
रिपोर्ट कहती है कि वन्य जीव (सुरक्षा) अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 में दर्ज होने और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) रेड लिस्ट द्वारा अतिसंवेदनशील घोषित किए जाने के बावजूद तेंदुओं पर खतरा मंडरा रहा है। इनकी रिहायश के इलाके लगातार कम होने, मानव-वन्यजीव संघर्ष, शिकार और अवैध व्यापार के कारण इन्हें जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
शिवालिक पहाड़ियों और मैदानी इलाकों में तेंदुए की संख्या 2018 में 1,253 थी जो 2022 में घटकर 1,109 हो गई। बयान में कहा गया है कि शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानी इलाकों में तेंदुओं की संख्या में प्रति वर्ष 3.4 फीसदी की दर से गिरावट हुई है।