एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग पर हरियाणा में किसानों के प्रदर्शन के बीच एक संसदीय समिति ने भी मजबूत एवं कानूनी रूप से बाध्यकारी एमएसपी लागू करने की सिफारिश की है। समिति का तर्क है कि इससे किसानों की वित्तीय स्थिति मजबूत होगी, बाजार की अनिश्चितता से उन्हें छुटकारा मिलेगा और अंतत: ऋण का बोझ घटेगा, जिससे देश में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं रोकने में मदद मिलेगी। समिति ने कहा है कि पीएम किसान निधि की राशि 6,000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये सालाना की जानी चाहिए।
कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली स्थायी संसदीय समिति ने मंगलवार को संसद में पेश वर्ष 2024-25 की अनुदान मांगों पर रिपोर्ट में यह भी कहा कि कृषि कामगारों की भूमिका को महत्त्व देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का नाम बदल कर कृषि, किसान एवं खेतिहर मजदूर कल्याण विभाग किया जाना चाहिए। किसानों को मिलने वाले मौसमी प्रोत्साहनों का दायरा बटाईदार किसानों और कृषि मजदूरों तक बढ़ाया जाए।
समिति की यह रिपोर्ट ऐसे समय संसद के पटल पर रखी गई है जब हरियाणा-पंजाब के शंभू एवं खनौरी सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान राज्य सरकार के साथ बातचीत का प्रस्ताव ठुकराकर केवल केंद्र के साथ वार्ता की मांग पर अड़े हैं। इस साल फरवरी से सीमाओं पर जमे किसानों का कहना है कि जितनी तेजी से महंगाई बढ़ी है, उस हिसाब से गेहूं की एमएसपी नहीं बढ़ी है।
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि विभाग दो हेक्टेयर तक जमीन वाले छोटे किसानों को केंद्र की प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय) स्वास्थ्य बीमा योजना की तर्ज पर अनिवार्य फसल बीमा उपलब्ध कराने की संभावना तलाशे। समिति ने राष्ट्रीय न्यूनतम जीवनयापन मजदूरी आयोग बनाने और ऋण माफी योजना लाने की भी मांग की है।
समिति ने कहा कि यद्यपि वर्ष 2021-22 से 2024-25 तक कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को अन्य विभागों के मुकाबले अधिक आवंटन किया गया है, लेकिन कुल केंद्रीय योजना अनुदान में विभाग की प्रतिशत हिस्सेदारी वर्ष 2020-21 के 3.53 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 2024-25 में 2.54 प्रतिशत रह गई। समिति ने सरकार से कृषि के लिए आवंटन बढ़ाने का अनुरोध भी किया है ताकि उत्पादकता में सुधार हो सके।
समिति ने कहा है कि ‘अन्य सामान्य आर्थिक सेवाओं पर पूंजी परिव्यय’के तहत 2023-24 में बजट (अनुमानित) 10.41 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे जिसे संशोधित अनुमान (आरई) 2023-24 में घटाकर 9.96 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इसमें से भी वर्ष 2023-24 में वास्तविक खर्च सिर्फ3.389 करोड़ रुपये ही रहा। इसलिए समिति ने सुझाव दिया है कि पूंजीगत कार्यों के लिए धन का सही इस्तेमाल करने को उचित योजना बनाई जानी चाहिए।