भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने चंद्रयान मिशन (Moon mission) के साथ चंद्रमा पर खोज के मामले में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में एक है। भारत अपने तीसरे मून मिशन की लॉन्चिंग की दहलीज पर खड़ा है। 14 जुलाई 2023 की दोपहर 2:35 बजे चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की लॉन्चिंग होगी। चंद्रयान-3 को ISRO एलवीएम-3 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजेगा। लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से होगी।
तीनों मून मिशन को पूरा करने में ISRO के साढ़े 16 हजार वैज्ञानिक और इंजीनियरों का योगदान मिला है। चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग हासिल कर और रोवर को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक चला कर ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन सकता है।
चंद्रयान मिशन के तहत किए गए महत्वाकांक्षी प्रयासों का उद्देश्य चंद्रमा के रहस्यों को उजागर करना, इसकी सतह का अध्ययन करना, पानी की खोज करना और भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त करना है। इस लेख में, हम ISRO के चंद्रयान मिशनों का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करेंगे, उनके उद्देश्यों, प्रमुख उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डालेंगे।
चंद्रमा पृथ्वी से निकटतम ब्रह्मांडीय पिंड (cosmic body) है जिस पर अंतरिक्ष खोज के प्रयास किए जा सकते हैं। यह गंभीर अंतरिक्ष अभियानों के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करने के लिए एक आशाजनक ट्रायल बेड भी है। चंद्रयान मिशन का उद्देश्य चंद्रमा के बारे में हमारी समझ को बढ़ाना, प्रौद्योगिकी की प्रगति को प्रोत्साहित करना, वैश्विक गठबंधनों को बढ़ावा देना और खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करना है।
भारत का पहला मून मिशन चंद्रयान-1, 22 अक्टूबर 2008 को SDSC SHAR, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। अंतरिक्ष यान चंद्रमा की रासायनिक, खनिज विज्ञान (mineralogical) और फोटो-भूगर्भिक मानचित्रण (photo-geologic mapping) के लिए चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। अंतरिक्ष यान भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरणों को अपने साथ ले गया था।
यह चंद्रमा की परिक्रमा करने और उसकी सतह का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों का एक समूह ले गया। उल्लेखनीय उपकरणों में से एक NASA द्वारा प्रदान किया गया मून मिनरलॉजी मैपर (M3) था, जिसने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं (water molecules) की मौजूदगी का पता लगाया था। चंद्रयान-1 ने मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) भी जारी किया, जो जानबूझकर चंद्रमा पर उसके रेजोलिथ की संरचना का अध्ययन करने के लिए दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
सभी प्रमुख मिशन उद्देश्यों के सफल समापन के बाद, मई 2009 के दौरान कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया। उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक परिक्रमाएं कीं और 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार टूट जाने पर मिशन समाप्त हो गया।
चंद्रयान-1 की सफलता ने न केवल भारत की तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन किया, बल्कि चंद्रमा के भूविज्ञान और खनिज विज्ञान के बारे में हमारी समझ में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भारत का दूसरा मून मिशन (Chandrayaan-2) 22 जुलाई 2019 को लॉन्च किया गया। यह ISRO के लिए एक ऐतिहासिक मिशन था। एक ऑर्बिटर (orbiter), विक्रम (Vikram) नामक एक लैंडर और प्रज्ञान (Pragyan) नामक एक रोवर को शामिल करते हुए, इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर, विशेष रूप से दक्षिणी ध्रुव (south pole) के पास, सॉफ्ट लैंडिंग करना था। इस मिशन का उद्देश्य चंद्रमा की सतह का अध्ययन करना, बर्फ की खोज करना और वैज्ञानिक प्रयोग करना था।
20 अगस्त, 2019 को चंद्रयान-2 चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हुआ था। मिशन के तहत लैंडर ‘विक्रम’ 2 सितंबर 2019 को ऑर्बिटर से अलग हो गया था। 7 सितंबर 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर लैंडर ‘विक्रम’ की सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की गई थी। जब लैंडर ‘विक्रम’ चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर था तो ISRO से उसका संपर्क टूट गया था।
हालांकि चंद्रयान -2 के ऑर्बिटर ने चंद्रमा की परिक्रमा करना और मूल्यवान डेटा एकत्र करना जारी रखा। कैमरे, स्पेक्ट्रोमीटर और एक सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) सहित उन्नत उपकरणों से लैस, ऑर्बिटर ने चंद्रमा की सतह की हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरें और मैपिंग प्रदान की। इन आंकड़ों ने चंद्रमा की स्थलाकृति, खनिज संरचना और ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ की उपस्थिति के बारे में हमारी समझ को काफी हद तक बढ़ा दिया है।
हालांकि अपने दूसरे मून मिशन में देश को 100 फीसदी सफलता नहीं मिली। फिर भी इस मिशन की आंशिक सफलता से भारत ने अंतरिक्ष में एक लंबी छंलाग लगाई हैं। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर मिशन ने लैंडिंग प्रयास के दौरान आने वाली चुनौतियों के बावजूद जटिल चंद्र मिशन शुरू करने और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक डेटा एकत्र करने की भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया।
चंद्रयान-2 की लैंडिंग के दौरान मिले झटके के बाद ISRO ने चंद्रयान-3 को शुरू किया। यह मिशन पिछले मिशन की कमियों को दूर करने और चंद्रमा की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए डिजाइन किया गया है।
इसमें लैंडर और रोवर कॉन्फ़िगरेशन शामिल है। इसे LVM3 द्वारा SDSC SHAR, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर कॉन्फ़िगरेशन को 100 किमी चंद्र कक्षा तक ले जाएगा।
चंद्रयान-3 मिशन के उद्देश्यों में 3 प्रमुख बातें शामिल हैं:
ISRO को चंद्रयान-3 के शुरुआती बजट के लिए 600 करोड़ रुपये की उम्मीद थी। लेकिन ये मिशन 615 करोड़ रुपये में पूरा हो जाएगा।
साल 2019 में लॉन्च किए गए चंद्रयान-2 का खर्च हॉलीवुड फिल्म अवतार (Avatar) और एवेंजर्स एंडगेम (Avengers Endgame) से भी कम था। विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग और उसके बाद विफलता के बावजूद, ISRO चंद्रमा की सतह तक पहुंच गया था। चंद्रयान-2 के पूरे मिशन की लागत 978 करोड़ रुपये थी। जिसमें मिशन की लागत 603 करोड़ और लॉन्चिंग लागत 375 करोड़ रुपये थी। बता दें कि एवेंजर्स एंडगेम 2,443 करोड़ रुपये में बनी थी। जबकि अवतार को बनाने में 3,282 करोड़ हुए खर्च हुए थे।
चंद्रयान-1 को 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किया गया था। इस मिशन ने 28 अगस्त 2009 तक काम किया। इसने चंद्रमा पर पानी की खोज की। यह इसरो का बजट अंतरिक्ष यान था। इस मिशन में कुल 386 करोड़ रुपये खर्च हुए यानी करीब 76 मिलियन डॉलर। जबकि, उस वक्त चीन के चांग-ई 1 मून मिशन की लागत 180 मिलियन डॉलर यानी चंद्रयान-1 से करीब ढाई गुना ज्यादा थी।
ISRO के चंद्रयान मिशन ने चंद्र विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। उन्होंने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की पहचान करने में मदद की है, जिसका भविष्य के मानव मिशनों और चंद्र संसाधनों के संभावित उपयोग पर प्रभाव पड़ता है। मिशनों ने चंद्रमा के भूविज्ञान, खनिज विज्ञान और सतह की विशेषताओं पर मूल्यवान डेटा भी प्रदान किया है, जिससे पृथ्वी के करीबी इस उपग्रह के बारे में हमारी समझ काफी बढ़ी है।
इसके अलावा, चंद्रयान मिशन की सफलता ने वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में भारत की स्थिति को मजबूत किया है। ISRO के प्रयासों ने टेक्निकल स्किल, कम खर्च और जटिल स्पेस मिशन को सफलतापूर्वक पूरा करने की क्षमता का प्रदर्शन किया है।