facebookmetapixel
नोवो इंसुलिन पेन बाजार से जल्द होगा बाहर, भारतीय दवा फर्मों के सामने 600-800 करोड़ रुपये का मौकात्योहारी सीजन में प्रीमियम फोन पर 38-45% की भारी छूट, iPhone से लेकर Samsung के फोन खरीदने का बेहतरीन मौकागौतम अदाणी ने शेयरधारकों को आश्वस्त किया, संचालन मानकों को और मजबूत करने का वादासंयुक्त राष्ट्र महासभा में ट्रंप का भाषण: विवादित दावे, निराशा और वैश्विक राजनीति पर सवालइनोवेशन के लिए सार्वजनिक खरीद व्यवस्था में बदलाव की राह, सिंगल-वेंडर शर्त बनी चुनौतीवित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुरू किया जीएसटी अपील पंचाट, 4.8 लाख लंबित मामलों का होगा निपटाराRBI रिपोर्ट: अर्थव्यवस्था ने दिखाई मजबूती, दूसरी छमाही में अच्छी वृद्धि के संकेतBFSI सेक्टर में IPOs की होड़, 15 कंपनियां ₹58,000 करोड़ जुटाने की तैयारी में जुटीआर्टिफिशल इंटेलिजेंस का दबदबा चरम पर: मार्केट कैप, रिटर्न, कैपेक्स ने टेक बबल के रिकॉर्ड तोड़ेभरोसा बढ़ने से नकदी बाजार की गतिविधियां फिर शुरू होंगी: प्रणव हरिदासन

प्रदूषण से ओपीडी में बढ़े 50 फीसदी मरीज, अधिकांश मरीज श्वसन की तकलीफों से परेशान

उत्तर भारत के कई शहरों में बुधवार शाम 4 बजे हवा की गुणवत्ता का सूचकांक यानी एक्यूआई 419 रहा जिसे गंभीर माना जाता है।

Last Updated- November 20, 2024 | 10:31 PM IST
50% increase in patients in OPD due to pollution, most of the patients are suffering from respiratory problems प्रदूषण से ओपीडी में बढ़े 50 फीसदी मरीज, अधिकांश मरीज श्वसन की तकलीफों से परेशान

पिछले लगभग 20 दिनों में उत्तर भारत के प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ ही अस्पतालों के ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या में 40 से 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। इनमें से अधिकांश मरीज श्वसन की तकलीफों की वजह से अस्पताल पहुंचे जिनमें खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण शामिल थे।

इस बारे में फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के पल्मोनोलॉजी (फेफड़ों संबंधी) विभाग के अतिरिक्त निदेशक मयंक सक्सेना कहते हैं कि पिछले महीने की तुलना में उन्होंने ओपीडी में आने वाले मरीजों और दाखिल होने वाले मरीजों की तादाद में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी देखी है। उन्होंने कहा, ‘इसकी वजह बीते 15-20 दिनों में एक्यूआई के खतरनाक स्तर पर पहुंचने को माना जा सकता है।’

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक उत्तर भारत के कई शहरों में बुधवार शाम 4 बजे हवा की गुणवत्ता का सूचकांक यानी एक्यूआई 419 रहा जिसे गंभीर माना जाता है। दिल्ली का एक्यूआई 460 रहा जबकि गाजियाबाद, गुरुग्राम और नोएडा जैसे पड़ोसी शहर भी 350 के ऊपर रहे। इस स्तर की खराब हवा के संपर्क में लंबे समय तक रहने से सांस की तकलीफ हो सकती है।

गुरुग्राम के सी के बिरला अस्पताल के पल्मोनोलॉजी विभाग के चिकित्सक कुलदीप कुमार ग्रोवर ने कहा, ‘मंगलवार को मैंने पाया शाम तीन बजे तक ही मरीजों की तादाद में औसत से लगभग 21 फीसदी का इजाफा हो चुका था। पहले इस समय तक नौ से 10 मरीज आते थे।’

इन मरीजों में से अधिकांश ऐसे थे जिन्हें पहले से सांस की तकलीफ नहीं थी लेकिन इस समय वे खांसी, गले में खुजली और नाक बहने जैसी दिक्कतों से जूझ रहे हैं।
सक्सेना ने कहा, ‘कुछ मरीजों में दम घुटने, सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण हैं जो एक्यूट ब्रॉन्काइटिस के लक्षण हैं, जहां मरीजों को भर्ती करने और नेबुलाइजेशन तथा इंट्रावेनस एंटीबायोटिक्स जैसी दवाएं देने की जरूरत पड़ती है।’

राजधानी क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में भी ऐसे मरीज बढ़ रहे हैं। राम मनोहर लोहिया अस्पताल के विशेष प्रदूषण ओपीडी में मरीज बढ़ रहे हैं। वहां सेवारत एक डॉक्टर ने कहा कि हर सप्ताह ऐसे मरीज बढ़ रहे हैं जो आंखों में पानी आने, खुजली, छाती में तनाव और खांसी की शिकायत कर रहे हैं।

प्रदूषण का असर किसी खास आयु वर्ग तक सीमित नहीं है लेकिन अस्थमा और कॉमन ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी बीमारियों के शिकार लोगों को प्रदूषण संबंधी समस्याओं के शिकार होने की आशंका अधिक होती है।

इसी विषय पर बात करते हुए फरीदाबाद के अमृता अस्पताल के पल्मनरी मेडिसन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अर्जुन खन्ना ने कहा, ‘अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों को ज्यादा तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है और प्रदूषण इसकी प्रमुख वजह है।’ उन्होंने कहा कि इनमें से कई मरीज इमरजेंसी विभाग में आ रहे हैं। उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही है और तत्काल इलाज की जरूरत पड़ रही है।

मंगलवार को मुंबई में भी इस मौसम में पहली बार एक्यूआई 120 से ऊपर निकल गया जो खतरनाक स्तर है। मुंबई के नानावटी मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के पल्मनोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. सलिल बेंद्रे के अनुसार शहर के अस्पतालों में करीब 20 फीसदी मरीज बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा, ‘सांस की बीमारियों के कारण दाखिल होने वाले मरीजों की संख्या 10 फीसदी बढ़ी है जबकि निरंतर कफ के कारण आईवी दवाओं और नेबुलाइजेशन की जरूरत पड़ रही है।’

इसके अलावा मरीजों को माइग्रेन, सरदर्द और आंखों तथा त्वचा की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। परेल के ग्लेनीगल्स अस्पताल के पल्मोनोलार्जी विभाग के निदेशक समीर गरडे के मुताबिक, ‘मरीज कान में दर्द, सूजन आदि की शिकायत कर रहे हैं जो ठंड के महीनों में आम है।’

सक्सेना ने कहा कि किसी भी मनुष्य के शरीर में प्रदूषक तत्त्वों का प्रवेश संक्रमण की वजह बन सकता है फिर चाहे वह नाक से हो, आंख से, मुंह से या त्वचा से। उन्होंने कहा कि उनके अस्पताल में भी आंखों में जलन, आंख-नाक से पानी, त्वचा में खुजली, गले में सूजन, कफ और सांस लेने में तकलीफ के मरीज आ रहे हैं।

First Published - November 20, 2024 | 10:31 PM IST

संबंधित पोस्ट