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विदेश में हुए देसी कंपनियों के डिविडेंड पर भी शिकंजे के आसार

Last Updated- December 05, 2022 | 4:21 PM IST

डिविडेंड (लाभांश) अगर किसी और देश में हो और उसे भारत से बाहर ही निवेश कर दें…तो भी भारतीय कंपनियां अब इस पर टैक्स देने से बच नहीं पाएंगी! ऐसा ही कुछ मंसूबा है, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का, जो इस बार बजट में कंट्रोल्ड फॉरेन कंपनीज (सीएफसी) नियम लागू कर सकते हैं। इसके लागू होने के बाद किसी दूसरे न्यायिक क्षेत्र में हुए डिविडेंड पर भारतीय नियमों के तहत टैक्स वसूले जाने को कानून की शक्ल मिल जाएगी।
इनकमटैक्स विभाग इस प्रावधान को अंतिम रूप देने के लिए अरसे से मेहनत कर रहा है। इसके लिए उसने बाकायदा उन विकसित देशों के नियम-कानूनों और उनकी व्यावहारिकता का भी अध्ययन किया है, जहां यह लागू है। टैक्स का जाल और बड़ा करने के इरादे से सरकार सीएफसी पर गंभीरता से विचार कर रही है।
सीएफसी को समझने के लिए मिसाल के तौर पर किसी भारतीय कंपनी की मिसाल लेते हैं, जो भारत में ही स्थित अपनी किसी इकाई से डिविडेंड हासिल करती है। टैक्स नियम कहते हैं कि इस डिविडेंड पर उसे 17 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ेगा, जिसमें सरचार्ज और शिक्षा अधिभार भी शामिल है। जबकि किसी विदेशी कंपनी को भारत में इसी पर 33.6 फीसदी का टैक्स चुकाना पड़ता है, जो कि कॉरपोरेशन टैक्स दर के हिसाब से लिया जाता है। डिविडेंड पर टैक्स की मार से अभी तक वह कंपनियां बच जाती थीं, जो कि किसी विदेशी न्यायिक क्षेत्र में स्थित अपनी इकाई से डिविडेंड हासिल करके उसे वहीं खपा देती थीं।
प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स के डिप्टी टैक्स लीडर श्यामल मुखर्जी कहते हैं- अब, जबकि ज्यादा से ज्यादा भारतीय कंपनियां विदेशी बाजारों की ओर जा रही हैं, बिलकुल सही मौका है सीएफसी को देश में लागू करने का।
हालात यह हैं कि भारत से विदेशी मुल्कों में बड़े पैमाने पर निवेश तो किया जा रहा है लेकिन उस निवेश का फायदा भारत तक नहीं पहुंच पा रहा है। इसकी वजह है, टैक्स का मौजूदा ढांचा, जो कि इस मसले पर गौर नहीं करता। हालांकि सीएफसी कानून को इस तरीके से बनाया जाना चाहिए, जिससे कि सरकार को तो फायदा हो ही, कंपनियों के लिए भी इसका सकारात्मक असर हो।

First Published - February 27, 2008 | 8:31 PM IST

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