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नहीं थम रहा जीवन बीमा कंपनियों के घाटे का दौर

Last Updated- December 11, 2022 | 10:30 AM IST

ऐसे समय में जबकि सरकारी जीवन बीमा निगम देश में अपना वर्चस्व खो चुकी है, ऐसी कंपनियां जिन्होंने जीवन बीमा कारोबार में कदम रखा है, उनके सामने मुनाफा कमाने के लिए जमीन तैयार करन की चुनौती है।
वर्ष 2008-09 में जीवन बीमा कारोबार में उतरी इन नई कंपनियों को नए कारोबार में नरमी का सामना करना पड रहा है, साथ ही इनके घाटे में भी बढ़ोतरी हुई है। जब जीवन बीमा क्षेत्र वर्ष 2000 में सार्वजनिक रूप से खोला गया तो नई कंपनियों ने कहा था कि अगले सात से आठ सालों में संतुलन की स्थिति में जा जाएंगी।
लेकिन कम से कम तीन कंपनियां जिनमें आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ और मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ शामिल हैं, पिछले नौ सालों से अपना कारोबार कर रही हैं पर इसके बावजूद मुनाफा अर्जित करना अब भी उनके लिए टेढ़ी खीर है।
पिछले साल बीमा कंपनियों की बिक्री में गिरावट आई और उन पर ज्यादा खर्चे का दबाव भी बना। उन्हें परंपरागत जीवन बीमा योजनाओं की बिक्री से इक्विटी हिस्सेदारी में होने वाले घाटे से भी पड़ा। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया लाइफ जिसे पिछले वित्तीय वर्ष में 34 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था, उसे 26 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।
कंपनी ने अपने इक्विटी पोर्टफोलियो पर लगभग 97 करोड़ का मार्क टू मार्केट (एमटीएम) प्रावधान किया था। एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ को पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान  परिचालन पर दोगुने से ज्यादा यानी 502 करोड़ रुपये तक का घाटा हुआ जबकि वर्ष 2007-08 में 243 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
वर्ष 2007-08 की 52 करोड़ रुपये की आय के मुकाबले कंपनी ने 1,820 करोड़ रुपये तक के एमटीएम का प्रावधान बनाया है। इसी तरह रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस का घाटा लगभग 14 फीसदी तक बढ़कर पिछले साल के 768 करोड़ रुपये के मुकाबले 875 करोड़ रुपये रह गया।
बिड़ला सन लाइफ इंश्योरेंस के घाटे में 57 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई और यह वर्ष 2007-08 के 437 करोड़ रुपये के मुकाबले वर्ष 2008-09 में 686 करोड़ रुपये हो गया। अब तक जो नतीजे सामने हैं, उनमें केवल दो ही अपवाद हैं, मसलन आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल और बजाज आलियांज लाइफ।
बजाज आलियांज ने पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान मुनाफा दर्ज किया है, हालांकि इसने आंकड़ें देने से इनकार कर दिया। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल ने इस साल मार्च को खत्म हुए वर्ष में अपने घाटे को 44 फीसदी कम करके 577 करोड़ रुपये कर दिया जो पिछले साल 1032 करोड़ रुपये था। इसने अपने ब्रांच और एजेंसी के विस्तार पर नियंत्रण किया जिस वजह से भी इसे खर्च में कटौती करने में मदद मिली।
हालांकि कई दूसरी कंपनियों ने अपने वितरण नेटवर्क का विस्तार किया। एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ के मुख्य कार्याधिकारी परेश परासनिस का कहना है ‘पिछले साल हमारे खर्च की लागत बढ़ गई क्योंकि हमने अपने वितरण व्यवस्था को और मजबूत किया।
इस साल हम पहले छह महीने में हम अपनी स्थित मजबूत करना चाहते हैं, उसके बाद दूसरी छमाही में हम स्थिति की समीक्षा करेंगे।’ कंपनी के खर्च में 55.75 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई और यह पिछले साल के 1,130 करोड़ रुपये के मुकाबले वर्ष 2008-09 में 1,760 करोड़ रुपये हो गया।
इसी तरह एसबीआई लाइफ के प्रबंध निदेश और सीईओ, यू. एस. राव का कहना है कि कंपनी ने मार्च के अंत में अपनी लगभग 180 शाखाओं में 250 सेल्स आउटलेट खोला है इसकी वजह से लागत में और ज्यादा इजाफा हो गया है।

First Published - May 7, 2009 | 9:08 PM IST

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