यदि किसी व्यक्ति की कुल आय छूट की मूल सीमा से अधिक है तो उसे आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत आयकर रिटर्न दाखिल करना होगा। उस व्यक्ति की मौत हो जाए तब भी यह काम करना ही होता है और इसकी जिम्मेदारी उसके कानूनी वारिस पर आ जाती है।
टैक्समैनेजर डॉट इन के मुख्य कार्य अधिकारी दीपक जैन कहते हैं, ‘कानूनी वारिस को मृत व्यक्ति के प्रतिनिधि के तौर पर उसकी ओर से रिटर्न दाखिल करना होगा। ऐसा करने के लिए वारिस को बतौर प्रतिनिधि अपना पंजीकरण ई-फाइलिंग पोर्टल पर कराना होगा।’
पंजीकरण और मंजूरी
आवेदन करते समय प्रतिनिधि के पास मृतक व्यक्ति के अहम दस्तावेज तो होने ही चाहिए, कुछ ब्योरा भी होना चाहिए। इसमें मृत व्यक्ति और कानूनी वारिस के पैन कार्ड, अदालत या स्थानीय कर निकाय से वारिस होने का प्रमाणपत्र और मृतक का पेंशन प्रमाणपत्र शामिल हैं। सारे कागजात जमा होने के बाद कानूनी वारिस के आवेदन की जांच की जाती है। उसके बाद ही ई-फाइलिंग प्रशासक उसे मंजूर करता है।
रिटर्न दाखिल नहीं किया तो
यदि मृत व्यक्ति की ओर से रिटर्न दाखिल नहीं किया जाता है या कर देनदारी नहीं चुराई जाती है तो दंड दिया जा सकता है। आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा कहते हैं, ‘अगर कानूनी वारिस आयकर अधिनियम की धारा 139 में दी गई तारीख तक या उससे पहले रिटर्न दाखिल नहीं करता है तो धारा 270ए के तहत जुर्माना लगाया जाएगा। करदाता ने जो कर नहीं चुकाया होता है, उसके 50 फीसदी के बराबर जुर्माना होता है। वारिस पर धारा 276सीसी के तहत मुकदमा भी चलाया जा सकता है।’ रिटर्न दाखिल नहीं हुआ को धारा 276सीसी के तहत जेल हो सकती है।
आईपी पसरीचा ऐंड कंपनी में पार्टनर मणीत पाल सिंह बताते हैं, ‘रिटर्न दाखिल नहीं किया गया तो धारा 234एफ के तहत विलंब शुल्क लगाया जाएगा और धारा 234ए के तहत उस पर ब्याज भी लगेगा। साथ ही ऐसा होने पर धारा 148 के तहत छिपाई गई आय का आकलन भी शुरू किया जा सकता है।’ अंतिम तारीख के बाद रिटर्न दाखिल करने पर आयकर अधिनियम की धारा 234एफ के तहत 1,000 रुपये (जिनकी आय 5 लाख रुपये तक है) या 5,000 रुपये (5 लाख रुपये से अधिक आय होने पर) जुर्माना लगाया जा सकता है। करदाताओं को नोटिस धारा 148 के तहत भेजा जाता है। टैक्समैन के उप प्रबंध निदेशक नवीन वाधवा कहते हैं, ‘कानूनी वारिस की जवाबदेही वहीं तक होती है, जहां तक एस्टेट बकाया चुकाने में सक्षम होता है। मगर कानूनी वारिस पर निजी रूप से एस्टेट की उस संपत्ति की कीमत के बराबर जवाबदेही बनती है, जिसे वह बेचता है या जिस पर वह कर्ज लेता है।’
दो रिटर्न भरने जरूरी
जिस साल मौत हुई हो, उस साल के लिए दो अलग-अलग रिटर्न दाखिल करने होते हैं। सुराणा समझाते हैं, ‘एक रिटर्न कानूनी वारिस को दाखिल करना होगा, जो वित्त वर्ष की शुरुआत से उस व्यक्ति की मौत तक हुई आय के लिए होगा।
दूसरा रिटर्न मृतक व्यक्ति के एस्टेट को हुई आय के लिए एक्जिक्यूटर को भरना होगा। उसमें मौत की तारीख से लेकर कानूनी वारिस को एस्टेट की संपत्तियां सौंपे जाने तक की तारीख की आय होगी।’ एस्टेट जब कानूनी वारिस को सौंप दी जाती है तब उससे होने वाली आय वारिस की आय ही मानी जाती है।
इन बातों का रखें ध्यान
रिटर्न दाखिल करना कई परिस्थितियों में बहुत फायदेमंद रहता है। जैन समझाते हैं, ‘यदि किसी व्यक्ति की मौत वित्त वर्ष के बीच में हो जाती है तो उसके कानूनी वारिस को रिटर्न दाखिल करना चाहिए क्योंकि बीमा के दावे के वक्त यही रिटर्न उसकी आय के प्रमाण का काम करता है।’
रिटर्न में किसी भी तरह की गलती होने पर जिम्मेदारी कानूनी वारिस की ही होती है। वाधवा बताते हैं, ‘कानूनी वारिस को रिटर्न दाखिल करने से पहले पूरी जानकारी जांच लेनी चाहिए। यदि असली रिटर्न में किसी तरह की गलती है या कुछ छूट गया है तो वह कर निर्धारण वर्ष खत्म होने से तीन महीने पहले या कर आकलन पूरा होने से पहले उसे ठीक किया जा सकता है। इन दोनों में से जो भी पहले आ जाए, उससे पहले ही यह करने का मौका मिलता है।’
देर से दाखिल किया गया रिटर्न भी संशोधित किया जा सकता है और जितनी बार जरूरत हो उतनी बार किया जा सकता है।
यदि मौत की तारीख तक मरने वाले की आय को मिलाकर कानूनी वारिस की कुल आय 50 लाख रुपये से अधिक बैठती है तो वारिस को वित्त वर्ष के अंत में अपने पास मौजूद सभी संपत्तियों और देनदारी का ब्यारा अनुसूची में देना चाहिए। साथ ही रिटर्न दाखिल करने के बाद मृतक का पैन कार्ड भी जमा कर दिया जाना चाहिए।