बीएस बातचीत
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के सह-संस्थापक एवं संयुक्त प्रबंध निदेशक रामदेव अग्रवाल ने पुनीत वाधवा के साथ साक्षात्कार में कहा कि मार्च 2020 के निचले स्तरों से प्रमुख सूचकांकों में करीब 50 प्रतिशत की तेजी के बाद बाजार में स्थिति नाजुक बनी हुई है। उनका कहना है कि जिस दिन बाजार यह अहसास कर लेगा कि आय की रफ्तार इतनी जल्द सामान्य नहीं होगी, तब उसमें एकतरफा रुझान दिखेगा या गिरावट भी आ सकती है। उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या मार्च 2020 के निचले स्तरों से आई तेजी ने आपको आश्चर्यचकित किया है?
हां, बाजार में सुधार एक आश्चर्य के तौर पर आया है। बाजार के लिए मुख्य समस्या कोविड-19 नहीं है, बल्कि इस महामारी से जुड़ी अनिश्चितता है। पिछले कुछ महीनों के दौरान इस अनिश्चितता में कमी आई है, लेकिन बाजार में सुधार की गति आश्चर्यजनक है। वैश्विक तौर पर, हमने तरलता का यह स्तर कभी नहीं देखा और ब्याज दरें करीब शून्य हैं। मौजूदा समय में किसी कंपनी के बिजनेस मॉडल के लिए कुछ चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन बाजार को सब कुछ जल्द सामान्य हो जाने की संभावना है।
क्या बाजार में बुनियादी आधार के मुकाबले ज्यादा तेजी दिखी है?
बाजार का बुनियादी आधार संक्षिप्त अवधि में ज्यादा आकर्षक नहीं दिख रहा है। गिरावट के बाद बाजार में जिस तेजी से सुधार दिखा है, उसने हमें चिंतित कर दिया है। निवेश के लिए भरोसा कुछ हद तक कमजोर हुआ है। हालांकि मैं अभी भी निवेश करूंगा, लेकिन यह निवेश अगले कुछ महीनों में रुक-रुक कर किए जाने की जरूरत होगी। अटकलों से जुड़ी तेजी के लिए बाजार में दांव लगाना मूर्खता होगी। अगले 6 महीने से लेकर एक साल की अवधि में आय वृद्घि की उम्मीद है, और यही वजह है कि बाजार को मदद मिल रही है। जिस दिन बाजार यह अहसास कर लेगा कि आय की रफ्तार इतनी जल्द सामान्य नहीं होगी, तब उसमें एकतरफा रुझान दिखेगा या गिरावट भी आ सकती है।
आप आय वृद्घि कब तक सामान्य हो जाने की संभावना जता रहे हैं?
पूरे कॉरपोरेट जगत की आय को एक नजरिये से देखना कठिन है। हालात कंपनी-केंद्रित और क्षेत्र-केंद्रित हैं। जब तक महामारी की वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक संपूर्ण आर्थिक सुधार नहीं दिखेगा। जहां तक आय वृद्घि का सवाल है तो वित्त वर्ष 2021 एक खराब वर्ष रहेगा।
क्या आप यह कहना चाहते हैं कि बाजार में रिकवरी नाजुक है?
हां, बाजार में रिकवरी का दौर नाजुक है। मार्च में गिरावट वास्तविक थी और हम अभी भी कोविड-19 पूर्व के स्तरों पर नहीं लौटे हैं। जून 2020 तिमाही कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण थी और माना जा रहा है कि 80-90 प्रतिशत व्यवसाय सितंबर 2020 की तिमाही में सामान्य स्थिति में लौट आएंगे। अर्थव्यवस्था के भी सितंबर 2020 तिमाही में करीब 75-80 प्रतिशत क्षमता पर परिचालन किए जाने की संभावना है, या शायद थोड़ी बेहतर स्थिति देखी जा सकती है।
मौजूदा समय में बाजार के लिए प्रमुख जोखिम क्या हैं?
बाजारों के लिए सबसे बड़ा जोखिम है आय नहीं आना, भले ही जो भी कारण हो, चाहे यह कंपनी की विफलता हो, अर्थव्यवस्था की विफलता हो, वैश्विक व्यवस्था की विफलता या भू-राजनीतिक चिंताएं हों। वित्त वर्ष 2022 में आय के सामान्य होने की उम्मीद है। इसका यह भी मतलब नहीं है कि अगली तीन तिमाहियां अच्छी होंगी और बाजार फिर से तेजी की राह पर दौडऩे लगेंगे। वित्त वर्ष 2022 में आय वित्त वर्ष 2020 में दर्ज किए गए स्तरों पर लौट सकती है। वित्त वर्ष 2023 ऐसी अवधि होगी जिसमें हम आय में वृद्घि दर्ज करेंगे।
लॉकडाउन में नरमी के बाद कई व्यवसाय खुले हैं। क्या मांग भी समान गति से सामान्य हो रही है?
मांग और रिकवरी के संदर्भ में स्थिति बेहद जटिल है। सभी व्यवसायों में मांग का समान स्तर नहीं दिखेगा। विमानन, होटल, पर्यटन और परिवहन जैसे व्यवसायों को अभी कुछ और समय तक इंतजार करना होगा। एफएमसीजी समेत कई अन्य उपभोक्ता-केंद्रित व्यवसाय पहले ही कोविड-पूर्व स्तरों पर आ चुके हैं, क्योंकि लोग घर पर उनके उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
क्यारिटेल फोलियो में तेजी के साथ अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। आपका अनुभव कैसा रहा है?
हां, हम में से कुछ भाग्यशाली रहे हैं। ब्रोकिंग उद्योग ऐतिहासिक तौर पर ऊंचे स्तरों पर है। यह स्थिति अप्रत्याशित है और भविष्य का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। जहां बाजारों में सुधार आ रहा है, वहीं म्युचुअल फंडों से निकासी भी हुई है। ऊंचे स्तर पर निवेश करने वाले अब बाहर निकलने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि उनकी पूंजी में इजाफा हुआ है।
आपके ओवरवेट और अंडरवेट शेयर/क्षेत्र कौन से हैं?
हम ऋणदाताओं पर अंडरवेट यानी नकारात्मक हैं, लेकिन हम बीमा क्षेत्र पर ओवरवेट हैं। मेरा रुझान बीमा की ओर बना हुआ है क्योंकि मैं नहीं जानता कि लंबी उधारी पर सुस्ती कब तक रहेगी। यह सभी काफी हद तक इस पर निर्भर करेगा कि सुधार की दिशा में सरकारी पहलें कैसी होंगी। यदि अगले 6-8 महीनों में आर्थिक सुधार दिखता है तो सभी बैंक सुरक्षित होंगे। लेकिन यदि सरकार इन प्रयासों में सफल नहीं रहती है तो लागत काफी बढ़ सकती है। मैं इन दोनों मोर्चों पर अपना दांव बरकरार रखना चाहता हूं।