facebookmetapixel
Power of ₹10,000 SIP: बाजार के पीक पर जिसने शुरू किया, वही बना ज्यादा अमीर!थाईलैंड में बढ़ा निवेशकों का भरोसा, इंडोनेशिया से तेजी से निकल रही पूंजी15 सितंबर को वक्फ एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट देगा अंतरिम आदेशAmazon Now बनाम Blinkit-Swiggy: कौन जीतेगा भारत में Quick Commerce की जंग?Adani Group की यह कंपनी बिहार में करेगी $3 अरब का निवेश, सोमवार को शेयरों पर रखें नजर!Stock Split: अगले हफ्ते तीन कंपनियां करेंगी स्टॉक स्प्लिट, निवेशकों को मिलेगा बड़ा फायदा; जानें रिकॉर्ड डेटCBIC ने कारोबारियों को दी राहत, बिक्री के बाद छूट पर नहीं करनी होगी ITC वापसी; जारी किया नया सर्कुलरNepal Crisis: नेपाल में अगला संसदीय चुनाव 5 मार्च 2026 को होगा, राष्ट्रपति ने संसद को किया भंगट्रंप का नया फरमान: नाटो देश रूस से तेल खरीदना बंद करें, चीन पर लगाए 100% टैरिफ, तभी जंग खत्म होगी1 शेयर बंट जाएगा 10 टुकड़ों में! ऑटो सेक्टर से जुड़ी इस कंपनी ने किया स्टॉक स्प्लिट का ऐलान, रिकॉर्ड डेट तय

थमेगी शेयर बाजार की गिरावट?

Last Updated- December 07, 2022 | 2:46 PM IST

अब से 20 माह पहले प्रकाशित इंडिया 2007 आउटलुक में एक शब्द लेट एक्सपेंशन का इस्तेमाल तकरीबन आठ बार किया गया था।


इसी तरह जनवरी 2008 में प्रकाशित आउटलुक इससे थोड़ा अलग था और इसने  टॉप शब्दका इस्तेमाल छ: बार किया गया था। आप यह कह सकते हैं कि हमें आपको सेल और रिडयुस का अर्थ आपको और शिद्दत से समझाने की कोशिश करनी चाहिए। हम वही प्रयास कर रहे हैं।

हमने यहां तक कि शब्द रिडयुस और सेल का इस्तेमाल किया और हमने इनको कुछ इस तरह से स्पष्ट करने की कोशिश की। रिडयुस को हमने कैपिटल गुड्स सेक्टर में कमी और और एफएमसीजी क्षेत्र की कंपनियों की तरफ नजर जबकि सेलिंग को शेयरों की एक ही बार में अधिक बिकवाली न करने केरूप में उल्लेख किया। इसी तरह के कई और संकेत अक्टूबर 2007 से पहले मिल रहे थे, जब हमने कहा था कि मंदी केपहले कैश के महत्व के बारे में कुछ कहना अतिशयोक्ति नहीं माना जा सकता।

लेकिन उसके बाद भी कुछ पूरी तरह से सही नहीं होता। शेयर बाजार के बारे में कुछ भी भविष्यवाणी करना असान नहीं होता और उसी तरह सेलिंग भी पूरे शबाब पर करना किसी मजाक से कम नहीं है। अभी तक हमने गलत-सही के बारे में मिली जुली प्रतिक्रि या मिली है। अब सवाल खडा होता है कि अभी तक हमने सही क्या पाया है? बैंकिंग और कैपिटल के बढ़िया प्रदर्शन के कारण बाजार की स्थिति में सुधार उनमें से एक है। इसी तरह कच्चे तेल की कीमत के125 डॉलर प्रति बैरल के आसपास आ गया।

दूसरी तरफ यूटिलिटीज, फार्मा और एफएमसीजी क्षेत्रों का प्रदर्शन दूसरों से बेहतर रहा। तो हमने क्या गलता पाया? सबसे पहले सेंसेक्स के  जितने ऊपर जाने का अनुमान हमने लगाया था, वह उस स्तर से 13 प्रतिशत कम रहा। सेंसेक्स के एकदम से ऊपर जाने की सुखद कल्पना भी अंधरे में तीर चलाने जैसा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्तर पर बहुत अनिश्चितताएं हैं, जैसे 13 जुलाई को तेल की कीमतों में 13 डॉलर का उछाल आना ही क्यों न हो। इसकी तुलना 1991-98 तक तेल की कीमतों में 12 डॉलर प्रति बैरल प्रतिवर्ष उछाल केइस बात को सिध्द करता है शिखर पर पहुंचने के बाद बाजार कितना अनिश्चितता भरा हो सकता है।

जैसा कि हमने पहले स्पष्ट किया है कि लेट इकनॉमिक साइकिल ने साफ-तौर पर प्रचलानों को परिभाषित कर दिया है। यूटिलिटी साइकिल में मेटेरियल्स, स्टेपल्स, एनर्जी, यूटिलिटीज और फार्मा शामिल है। इस स्तर पर सभी क्रे डिट संबंधी शुरुआत के आर्थिक या ईई (फाइनेंस, बैंकिंग) और मध्य आर्थिक या एमई (उद्योग और उनसे जुड़ी चीजें) विकास दोनों को धक्का लगता है। इसके पड़नेवाले असर के दायरे में बैंक, इंश्योरेंस, ब्रोकरेज और रियल सेक्टर आते हैं, जिनका प्रदर्शन बुरी तरह प्रभावित होता है। इसके अलावा आईटी, टेलीकॉम ओर  संबंधित दूसरे क्षेत्र भी इसकी जद में आ जाते हैं।

अगर हम इस साल अब तक के बंबई स्टॉक एक्सचेंज 500 के सबसे घटिया प्रदर्शन करनेवाली कंपनियों की और अपना रुख करें तो इसमें रियलिटी क्षेत्र से अंसल और यूनिटेक, वित्तीय सेवा प्रदान करेनवाली कंपनियों में मोतीलाल ओसवाल, एडलेवाइस कैपिटल, तकनीकी क्षेत्र से मोसर बीयर और सीएमसी जबकि मीडिया क्षेत्र से नेटवर्क 18 और एडलेब्स इसमे प्रमुख रूप से शामिल हैं। हालांकि ऑटो और उससे जुड़ी चीजें का प्रदर्शन भी दम तोड़नेवाला ही रहा फिर भी इसकी स्थिति उपर वर्णित कंपनियों से कुछ अच्छी रही।

टाटा मोटर्स 42 प्रतिशत की गिरवाट के साथ बीएसई-30 में के सबसे खराब प्रदर्शन करनेवाले शेयरों की सूची में दूसरे स्थान पर रहा। लेट इकोनॉमिक साइकिल के दौरान बाजार आपूर्ति क रने के दबाब से दम तोड़ रहा होता है। बाजार में शुरुआती आर्थिक और मध्यम आर्थिक क्षेत्र, फुड, बेवरेज, यूटिलिटीज और फर्मा सेक्टर बुरी स्थिति में होते हैं। ये सभी कंज्यूमर स्टॉक अच्छे और बुरे आर्थिक समय में अपेक्षाकृत स्थिर रहा करते हैं। उनके सही कीमतों का आकलन तभी हो पाता है जब बाजार नीचे की और खिसकना शुरू करता है।

इस साल शेयर बाजार में रैनबेक्सी और एचएलएल ही क्रमश: 17 प्रतिशत और 12 प्रतिशत की तेजी के  साथ उभरे। पिछले 12 महीनों पर नजर डालें तो पॉवर कंपनियां, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर, टाटा पॉवर और एनटीपीसी बेहतर प्रदर्शन कर पाने में सक्षम रहे। जैसे ही बाजार में मंदी छाती है वैसे ही यूटिलिटी कंपनियों द्वारा अर्जित अपेक्षाकृत कम मार्जिन बेहतर प्रतीत होने लगते हैं। शुरूआत के आर्थिक चक्र(ईई), मध्य आर्थिक चक्र और लेट इकोनॉमिक साईकिल (एलई) के बीच तीन स्तरों पर किया गया विभाजन एलई सेक्टर के लिए 12 सेंसेक्स स्टॉक का चयन करता है जिसमें से 9 स्टॉक पिछले 12 महीनों में बेहतर प्रदर्शन करनेवाले होते हैं।

टाटा पॉवर का प्रदर्शन शेयर बाजार में सबसे बेहतरीन रहा। उसके शेयरों ने सबसे बुरे सेंसेक्स कंपोनेंट एसीसी के मुकाबले तुलनात्मक शत-प्रतिशत का रिटर्न दिया। तेल और ऊर्जा के उत्पादन पर होनेवाले खर्चे के कारण लेट इकोनॉमिक साइकिल में एनर्जी में उतार देखने को मिला। अगर क्षेत्रवार नजरिए से देखें तो चार अन्य क्षेत्रों के साथ बीएसई ऑयल एंड गैस का प्रदर्शन पिछले 12 महीनों 20 प्रतिशत के साथ सकारात्मक रहा। अन्य तीन सेक्टर में हैल्थकेयर, मेटल्स और एफएमसीजी शामिल हैं। पिछले 8 महीनों के दौरान जो कुछ भी हुआ वह एक क्लासिक शिफ्ट था जिसके बारे में हमने जनवरी 2008 में स्पष्ट किया था।

यहां से हम किस दिशा की और जा रहें हैं इस बात को बाजार के आंतरिक पहलुओं से भी बताया जा सकता है। जो कुछ भी भारत में हो रहा है उसमें कुछ ऐसा नहीं है कि जिसकी कोई संभावना ही नहीं थी। इसी तरह के लेट इकनॉमिक साइकिल का बेहतरीन प्रदर्शन अमेरिकी बाजारों में भी हो रहा है, जहां फुड, बेवरेज और हेल्थकेयर का प्रदर्शन अपेक्षाकृ त बढ़िया रहा है। इक्विटी इकनॉमिक्स साइकिल विश्व में हर तरफ समानांतर ढंग से चलता रहता है। हां! यह बात अलग है कि उसकी सीमा अलग अलग होती है।

बाजार के शिखर पर पहुंचने के जहां अनिश्चितता बहुत ज्यादा होती है, उसकेठीक उलट रिकवरी या सुधार बहुत धीमी गति से और दुखदाई होता है। वैकल्पिक शोध और वैकल्पिक परिसंपत्ति पृष्ठभूमि से आते हुए  हम निश्चित तौर पर इक्विटी का आंशिक रूप से कृषि उत्पाद और वैकल्पिक एनर्जी परिसंपत्ति में विविधता भरे स्वरूप पर नजर डालेंगे।  लेकिन यहां तक कि गहरी आर्थिक मंदी के बावजूद सेक्टर रोटेशन काम करता है और बेहतर शेयरों का चयन कर निवेश करने से जबरदस्त फायदा हो सकता है।

क्षेत्रवार नजरिए से जिसमें ऑयल और गैस सेक्टर शामिल नहीं है, में भी हम लेट इकनॉमिक साइकिल केशेयरों से चिपके रहेंगे। इसका मतलब यह निकलता है कि हम अपने पोर्टफोलियो कंपोनेंट का पता लगाने केलिए दो बार माथापच्ची करेंगे। पहला इकनॉमिक साइकिल आधारित होगा और दूसरा सेक्टर के भीतर के विश्लेषण केआधार पर होगा। यद्यपि अधिकांश शुरूवाती ईई और एमई के स्टॉक आकर्षक होते हैं लेकिन इसके बावजूद भी हम संबंधित सेक्टरों में निवेश करने से परहेज करना पसंद करेंगे।

मौजूदा जबरदस्त बिकवाली से भरे बाजार से इस बात का संकेत मिलता है कि बाजार में अगले कुछ सप्ताहों में अपसाइड का दौर जारी रह सकता है संभवत: इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक यह जारी रह सकता है। कुछ सप्ताहों से महीनों तक तेल की कीमतों में गिरावट से इस लघु अवधि वाले राहत मिलने में मदद मिल सकती है। लेकिन वित्त वर्ष 2009 की पहली तिमाही तक स्थिति में किसी प्रकार का सुधार होगा, इस बात की संभावना कम ही दिखाई पड़ती है।

बाजार को लोग अनिश्चितता से भरा हुआ मानते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि अनिश्चितता हमलागों में भरी पडी है। यद्यपि बाजार में परिवर्तन का दौर चलता रहता है लेकिन मास साइकोलॉजी बाजार की मंदी को आसानी से नियंत्रित नहीं कर सकता।

First Published - August 4, 2008 | 12:18 AM IST

संबंधित पोस्ट