ज्यादातर लोग एस्टेट प्लानिंग (संपत्ति से संबध्द योजनाओं) को बहुत अधिक गंभीरता से नहीं लेते हैं। उनका मूल दृष्टिकोण केवल धन का प्रबंधन करना होता है।
इस श्रेणी के लोग केवल एक दिशा में ही सोचते हैं और उनका मुख्य उद्देश्य धन कमाना और उसे बढ़ते हुए देखना होता है। कई लोगों के लिए सबसे बड़ी खुशी की बात बढ़ते हुए धन को सिर्फ गिनना ही होता है।
ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो अपनी अगली पीढ़ी की बेहतरी को ध्यान में रखते हुए संचित किए हुए धन पर गंभीरता से सोच-विचार करते हैं। जाहिर सी बात है कि ये वे लोग होते हैं जिनका इरादा परिवार को किसी भी तरह की समस्याओं से घिरने नहीं देना होता है।
सच तो यह भी है कि अधिकांश लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि वे चाहते हैं कि वे इतनी खुशियां बटोर सकने में सक्षम हो सकें ताकि उनकी भावी पीढ़ी का भविष्य बेहतर हो। हालांकि यहां मूल समस्या यह है कि लोग धन के वितरण के मुद्दे पर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होते हैं।
उदाहरण के लिए आप राजन देसाई (बदला हुआ नाम) नामक एक व्यापारी हो ही ले लीजिए। उनका मुख्य उद्देश्य खुद के व्यवसाय को जल्दी से जल्दी आगे बढ़ना था। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर मेहनत की और समय के साथ एक मजबूत व्यापार बनाने में कामयाब हुए।
हालांकि कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने की ललक में उन्होंने अपने काम के समय को बहुत कठोर बना लिया था और एक दिन वे अचानक से हृदय संबंधी बीमारी की गिरफ्त में आ गए। इस हालत ने उनकी पत्नी और दो बच्चों को बहुत ही भयावह स्थिति में छोड़ दिया। उनका छोटा सा परिवार न केवल भावनात्मक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी काफी कमजोर हो गया।
देसाई की पत्नी के सामने मुसीबतों का पहाड़ (आर्थिक दृष्टिकोण से) इसलिए भी टूट पड़ा था क्योंकि खुद की संपत्ति के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। देसाई की पत्नी के लिए शुरुआत के कुछ महीने तो पति के व्यवसाय और अन्य वित्तीय दस्तावेज इकट्ठा करने में ही गुजर गए।
हालांकि देसाई की पत्नी को अपने पति के कुछ बैंक खातों, बीमा पॉलिसियों और निवेश के बारे में जानकारी थी लेकिन उन्हें अपने व्यवसाय के कार्यों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कुछ समय गुजर जाने के बाद उन्हें पता चला कि देसाई ने कुछ कारोबारियों को बिना किसी दस्तावेज के बहुत बड़ी रकम बतौर ऋण दे रखी है।
अब परिस्थिति ऐसी थी कि उनमें से अधिकांश लोग ऋण चुकाने के पक्ष में नहीं थे। हालांकि सच्चाई तो यह भी थी कि कुछ लोगों ने तो इस बात को मानने से ही इनकार कर दिया कि उन्होंने कोई ऋण लिया था। मामूल हो कि ऋण लेने वाले लोग वास्तव में देसाई के बिजनेस पार्टनर थे जिन्हें देसाई ने विश्वास पर ऋण दिया था।
लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि दस्तावेजों के अभाव में उनकी पत्नी के पास कोई सबूत नहीं था, जिसकी मदद से वह पैसों पर नजर रख सकतीं। देसाई की पत्नी को उस वक्त दोहरा झटका लगा जब उन्हें पता चला कि उन्हें कुछ विक्रेताओं को भी भुगतान करना है। सिर्फ यही नहीं, बहुत सारी जीवन और कारोबारी बीमा पॉलिसी ऐसी भी थीं जिनके बारे में देसाई की पत्नी पता नहीं लगा सकीं।
खुद को गंभीर वित्तीय दबाव में घिरते देख, देसाई की पत्नी ने फैमिली लॉयर की मदद ली और अपने व्यवसाय को बेच दिया। एक बार जब सभी विक्रेताओं के बिलों का निपटारा हो गया तब देसाई की पत्नी अपने बच्चों को लेकर अपने परिवार के पास रहने चली गईं।
कुल मिला कर कहें तो तथ्य यह है कि उस परिवार के पास धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन देसाई की गलत योजनाओं की वजह से ही ऐसी परिस्थितियां उभरीं। देसाई और उनके परिवार के साथ जो हुआ वह अकेला उदाहरण नहीं है बल्कि यह काफी आम है। आमतौर पर लोग तेजी से पैसे कमाने की ललक में आवश्यक पहलुओं को भूल जाते हैं।
भले ही ये बातें वेतनभोगियों के लिए कोई खास महत्व नहीं रखती हों लेकिन खास तौर से कर बचाने के लिए उद्यमी अक्सर साथी व्यापारियों के साथ नकद सौदे मिलकर चलाते हैं। अब देसाई को ही ले लीजिए, उनके पास धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन जब उनके परिवार को उस धन की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस वक्त तक सब खत्म हो चुका था।
यह याद रखना बहुत जरूरी है कि भले ही किसी के लिए भी धन कमाना और संरक्षण करना महत्वपूर्ण उद्देश्य हो लेकिन उसके वितरण के लिए उचित योजना का कार्यान्वयन किया जाना चाहिए। आपकी समग्र वित्तीय योजना का मुख्य उद्देश्य यही होना चाहिए कि धन का वितरण आसानी से हो सके। निस्संदेह इससे विवादों को दूर करने में काफी मदद मिलेगी और आपके परिवार को वित्तीय समस्याओं का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।
ये कुछ सवाल हैं, जो आपको अपने आप से पूछने चाहिए:
हमें अपने धन का वितरण किस तरह करना चाहिए?
अगर मैं आज मर जाता हूं तो किस तरह की परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं?
मेरे द्वारा सृजित-संचित धन का क्या होगा?
क्या मेरी परिसंपत्तियों के लिए बहुत सारे दावेदार होंगे?
अगर मैं खुद के वित्तीय फैसले लेने में अक्षम होता हूं तो ऐसे में मेरी जगह फैसला लेने वाला कौन होगा?
क्या मेरी पत्नी मेरे सभी बीमों, निवेशों, देनदारों और लेनदारों के बारे में जानती है?
किसी भी इंसान को खुद के दिमाग में एक बात की गहरे तक पैठ बना लेनी चाहिए कि धन कमाने और धन के उचित वितरण को सुनिश्चित करने के लिए एक स्पष्ट अंतर होना चाहिए।
एसेट प्लानिंग वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से आप अपनी सारी परिसंपत्तियों को अपनी इच्छा अनुसार अपने लाभार्थियों को स्थानांतरित करते हैं। मान लीजिए कि अगर आप खुद के लिए फैसले लेने में अक्षम हैं तो आप अपनी इच्छा के अनुसार चिकित्सा देखभाल को भी शामिल कर सकते हैं।
ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां आप एस्टेट प्लानिंग (संपत्ति योजना) कर सकते हैं:
वसीयत
पावर ऑफ अटर्नी
ट्रस्ट
जीवन बीमा
ऐसा भी नहीं कि एस्टेट प्लानिंग बहुत आसान है। इसके लिए किसी व्यक्ति या फिर किसी भी जोड़े द्वारा ढेरों आत्मपरीक्षण की जरूरत होती है।
यह उस वक्त और भी जटिल हो जाता है जब इसमें किसी छोटे बच्चे को शामिल किया जाता है। मेरा तो स्पष्ट मानना है कि किसी को भी बिना समय गंवाए एटेट प्लानिंग के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए।
(लेखक माईफाइनैंशियल एडवाइजर के निदेशक हैं।)
