रिलायंस इंडस्ट्रीज
सिफारिश : 1,124 रुपये
मौजूदा भाव:1,137.20 रुपये
लक्ष्य: 1,449 रुपये
बढ़त: 31.88 फीसदी
ब्रोकर: आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज
मांग में जबरदस्त गिरावट के कारण रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल)के शेयरों में पिछले तीन महीनों में 53 फीसदी की गिरावट देखी गई है।
इस गिरावट का कारण आरआईएल और रिलायंस नैचुरल गैस रिसोर्सेज लिमिटेड(आरएनआरएल)के बीच अदालत में चल रही कानूनी लडाई है
जिससे रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड (आरपीएल) की रिफाइनरी में उत्पादन भी लटक रहा है।
तेल की कीमतों में आई गिरावट के कारण भारतीय कंपनियों के रिफाइनिंग मार्जिन में वित्त वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही में खासी गिरावट आई और यह 0.1 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया जबकि वित्त वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में यह 6.5 डॉलर प्रति बैरल पर था।
ब्रोकरेज फर्म ने भी कंपनी के शेयरों का सिफारिश भाव कम कर दिया है। लेकिन अगर अदालती फैसला आरआईएल के खिलाफ आता है, तो कंपनी को तगड़ा नुकसान होगा।
यह स्थिति आरआईएल के शेयरधारकों के लिए बहुत मुश्किल होगी क्योंकि उस स्थिति में इसके शेयरों की कीमत में 7.6 फीसदी की गिरावट आ जाएगी।
डाबर इंडिया
सिफारिश : 75 रुपये
मौजूदा भाव: 78.45 रुपये
लक्ष्य : 110 रुपये
बढ़त : 40.2 फीसदी
ब्रोकर: रेलिगेयर हिचेंस, हैरिसन एंड कंपनी
डाबर इंडिया ने 203 करोड़ रुपये देकर फेम केयर फार्मा (फेम)में 72.15 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली है।
हालांकि फेम के पिछले वित्त वर्ष के कारोबारी आंकड़ों (कुल बिक्री 93.8 करोड रुपये और शुध्द मुनाफा 10.9 करोड़ रुपये)को देखते हुए यह अधिग्रहण महंगा सौदा लग रहा है।
इसके बावजूद डाबर को इस अधिग्रहण से कई फायदे होने की उम्मीद है। सबसे पहले तो यह कि विशिष्ट उत्पादों में फेम की अच्छी खासी पहुंच है, मसलन ब्लीचिंग उत्पादों का 60 फीसदी बाजार उसका ही है।
माना जा रहा है कि फेम डाबर की तरह ही वित्त वर्ष 2010 में 120 करोड़ रुपये का मुनाफा दर्ज करेगी साथ ही इसका ऑपरेटिंग मार्जिन 17 फीसदी तक पहुंच जाने की संभावना है।
डाबर के शेयरों का कारोबार वित्त वर्ष 2009 के अर्निंग्स के 16.7 गुणा तथा वित्त वर्ष 2010 के अर्निंग्स के14.8 गुणा के स्तर पर हो रहा है।
एचडीएफसी
सिफारिश :1,348 रुपये
मौजूदा भाव : 1,416.60 रुपये
लक्ष्य :2,062 रुपये
बढ़त : 45.6 फीसदी
ब्रोकरेज: कोटक सिक्योरिटीज
एचडीएफसी ने जो कर्ज दिया है, वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में उसमें 31 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बाजार में जारी खस्ता कारोबारी हालत के बावजूद प्रबंधन कर्ज बांटने में 20 फीसदी से ज्यादा का इजाफा ध्यान में रखकर चल रही है।
हाल में ही भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकिंग प्रणाली में नकदी का प्रवाह बढाने केलिए जो कदम उठाए हैं, उनसे कर्ज देने में बैंकों को सहूलियत हो रही है।
एचडीएफसी ने अपने बॉन्ड की बिक्री के जरिये 8,000 करोड रुपये जुटाए हैं। एचडीएफसी का शुध्द मुनाफा वित्त वर्ष 2009 और 2010 में क्रमश: 3.1 और 15.6 फीसदी रहने की संभावना जताई जा रही है।
फिलहाल 1,369 रुपये पर इसके शेयरों का कारोबार वित्त वर्ष 2009 की अर्निंग्स के 15.4 और वित्त वर्ष 2010 की अर्निंग्स के 13.4 गुना पर हो रहा है। कंपनी के प्रमुख कारोबार यानी बैंकिंग के शेयरों की कीमत 1,369 रुपये चल रही है और उसकी दूसरी सहायक कंपनियों के शेयरों का कारोबार 694 रुपये पर हो रहा है।
इसलिए शेयरों को 2,062 रुपये पर बेचने की सलाह के साथ खरीदारी जारी रखी जा सकती है।
जीवीके पावर ऐंड इंफ्रास्ट्रक्चर
सिफारिश : 15 रुपये
मौजूदा भाव : 16.77 रुपये
लक्ष्य : 22 रुपये
बढ़त : 31.6 रुपये
ब्रोकरेज: इंडिया इन्फोलाइन
जीवीके के गैस आधारित बिजली संयंत्रों में गैस की किल्लत का मसला सामने आ रहा है। इन संयंत्रों की क्षमता 900 मेगावाट बिजली उत्पादन की है, लेकिन इसमें से 684 मेगावाट बिजली तैयार नहीं हो पा रही है क्योंकि कंपनी को जरूरत के मुताबिक गैस ही नहीं मिल पा रही है।
केजी बेसिन से गैस की आपूर्ति अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही से शुरू होने की संभावना है। इसके बाद जेगरूपाडू बिजली परियोजना के दूसरे चरण और गौतमी बिजली परियोजना से उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है, जिसके बाद कंपनी के राजस्व में भी इजाफा हो जाएगा।
शेयरों की बिकवाली के लिए 22 रुपये का लक्ष्य ध्यान में रखते हुए खरीदारी जारी रखने की सलाह दी जाती है।
विप्रो
सिफारिश : 228 रुपये
मौजूदा भाव : 241 रुपये
लक्ष्य : 200 रुपये
गिरावट : 17 फीसदी
ब्रोकरेज: बीएनपी पारिबा सिक्योरिटीज (एशिया)
विप्रो ने पिछले 12 महीने के राजस्व का 55 फसदी हिस्सा लगभग 50 प्रमुख खातों से हासिल किया है और अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों की तरह यह भी कारोबार में इजाफे के लिए दिग्गज आईटी उपभोक्ताओं पर ही निर्भर करती है।
विप्रो जनरल मोटर्स को अपना रणनीतिक साझेदार मानती है, लेकिन वहां से मिल रही खबरों के मुताबिक वाहनों की बिक्री में कमी के संकेत हैं।
इसके अलावा कंपनी की वित्तीय स्थिति कमजोर होने की बात भी सामने आ रही है। विप्रो ने वित्त वर्ष 2009 की पहली छमाही में लागत पर काबू रखने का अच्छा खासा प्रयास किया था और इसी वजह से उसकी सेवाओं की कीमतें भी नहीं बढ़ी थीं।
लेकिन अब सौदे कम हो रहे हैं, ऐसे में कीमत पर काबू रखना मुश्किल होगा। कंपनी को विदेशी मुद्रा में नुकसान भी हुआ था।
इन कारणों से उसकी डॉलर आधारित आईटी सेवा के राजस्व में वित्त वर्ष 2010 में चालू वित्त वर्ष के मुकाबले 3.4 फीसदी के रफ्तार से विक ास करने की संभावना है। शेयर की कीमतें पहले जैसी नहीं रही और यह पहले के 320 रुपये के मुकाबले 200 रुपये रह गई है।