नकदी संकट, बढ़ती चूक और कर्ज देने की धीमी रफ्तार वाली तिमाहियों के बाद माइक्रोफाइनैंस (एमएफआई) उद्योग में सुधार के संकेत मिलने लगे हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट में सूक्ष्म उधारी क्षेत्र पर एक चर्चा के दौरान इस क्षेत्र के दिग्गजों और विश्लेषकों ने यह कहा।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के मनोजित साहा के साथ बातचीत में उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि माइक्रोफाइनैंस संस्थानों (एमएफआई) के लिए सबसे बुरा समय शायद अब पीछे छूट गया है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में पूर्ण सुधार बैंकों और सरकार की ओर से नकदी मुहैया कराए जाने पर निर्भर है। माइक्रोफाइनैंस इंडस्ट्री नेटवर्क (एमएफआईएन) के सीईओ आलोक मिश्रा ने कहा, ‘अब स्थिति बेहतर है। हमने सरकार से 20,000 करोड़ रुपये का एक बड़ा गारंटी फंड स्थापित करने का अनुरोध किया है। इसे फंडिंग का चक्र सुरू होगा औ्र बैंकों को आत्मविश्वास हो सकेगा।’ उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस काम में तेजी आएगी और अगर ऐसा होता है तो चीजें बेहतर होंगी।
मुथूट माइक्रोफिन की सीईओ सदफ सईद ने कहा कि धन जारी किए जाने की स्थिति में सुधार हुआ है, ग्रामीण परिवारों की सामर्थ्य बढ़ी है और संग्रह में भी सुधार हुआ है। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि महंगाई दर कम हो गई है और बारिश अच्छी होने से फसल अच्छी रही है। इसकी वजह से सब्जियों या फसलों की कीमत में भी गिरावट आई है। व्यक्तिगत रूप से हम बेहतर संग्रह और धन जारी करने की बेहतर स्थिति देख रहे हैं। इसलिए रुझान सकारात्मक है।’
सैटिन क्रेडिटकेयर के सीएमडी एचपी सिंह ने कहा कि वह 400 शाखाएं खोलेंगे। इससे पता चलता है कि सूक्ष्म वित्त के क्षेत्र में दबाव कम हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘जब हम इस मोड़ पर 400 शाखाएं खोलने की बात करते हैं, जो इसका मतलब है कि चीजें सामान्य हो गई हैं। वृद्धि वापस आ रही है। हमें उम्मीद है कि क्रेडिट गारंटी योजना मिल सकेगी, जिसके बारे में पैनल में चर्चा हो रही है। 120-180 दिनों के जोखिम वाले पोर्टफोलियो में काफी गिरावट आई है।’
इस उद्योग के दिग्गजों ने कहा कि नकदी की कमी एनबीएफसी-एमएफआई के लिए सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। सिंह ने कहा, ‘हमारे लिए कच्चा माल पैसा है। हमारे पास बैंकों की तरह जमा कराने की स्वतंत्रता नहीं है। जैसे ही नकदी की तंगी होती है, हमारी वृद्धि रुक जाती है।’
खासकर जोखिम की चिंता के कारण कई बैंकों ने एमएफआई को ऋण देने की रफ्तार धीमी कर दी है। सईद ने यह भी उल्लेख किया कि कई छोटे एमएफआई धन जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इससे एक दुष्चक्र बन गया है। कर्ज देने की क्षमता प्रभावित हो रही है, वहीं इसकी वजह से चूक भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर कारोबारी अब आक्रामक विस्तार करने के बजाय पोर्टफोलियो में सुधार करने पर बल दे रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कुछ साल पहले उधारी पर ब्याज दर की सीमा खत्म किए जाने के मसले पर मिश्र ने कहा कि इसे हटाए जाने से मूल्य निर्धारण या अनुशासन से संबंधित समस्या नहीं हुई है। उन्होंने कहा, ‘जब 2022 में नियमन हटाया गया तो एनबीएफसी एमएफआई की औसत भारित उधारी दर करीब 24 प्रतिशत थी, जबकि अभी 23.62 प्रतिशत है।’
उन्होंने कहा कि माइक्रोफाइनैंस बाजार में एनबीएफसी-एमएफआई की हिस्सेदारी सिर्फ 35 प्रतिशत है, जबकि बैंकों और लघु वित्त बैंकों की शेष हिस्सेदारी है, जो बगैर ब्याज दर की सीमा के कामकाज कर रहे हैं।
