बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) द्वारा बीमा कंपनियों पर मौजूदा और नई बीमा पॉलिसियों को डिमटीरियलाइज करने की वकालत के बार सरकारी बीमाकर्ता भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने कहा है कि वह अंतिम फैसला लेने के पहले अपनी रिपॉजिटरी बनाने सहित सभी विकल्पों पर विचार कर रही है।
एलआईसी के चेयरपर्सन एमआर कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘फैसला करने के पहले हम सभी उपलब्ध विकल्पों पर विचार करेंगे।’इस समय 4 बीमा रिपॉजिटरीज- एनएसडीएल नैशनल इंश्योरेंस रिपॉजिटरी, सीडीएसएल इंश्योरेंस रिपॉजिटरी, कर्वी इंश्योरेंस रिपॉजिटरी और सीएएमएस इंश्योरेंस रिपॉजिटरी सर्विसेज हैं। बीमा रिपॉजिटरीज ऐसी कंपनियां होती हैं, जो बीमा करने वाली कंपनी की तरफ से बीमा पॉलिसियों के आंकड़ों को इलेकट्रॉनिक प्रारूप में रखती हैं। बीमा पॉलिसी को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में रखने को लेकर नियामक ने एक चर्चा पत्र जारी किया है और इस पर उद्योग से फीडबैक मांगा है।
इस महीने की शुरुआत में आईआरडीएआई के चेयरमैन देवाशीष पांडा ने कुछ बीमा कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारियों के साथ बैठक कर इस मसले पर चर्चा की थी। बीमा कंपनियों को बीमा पॉलिसी डीमैट स्वरूप में लाने पर होने वाले खर्च का बोझ उठाना पड़ेगा। एलआईसी एक साल में 2 करोड़ से ज्यादा पॉलिसियां जारी करती है और उसके पास बड़ी संख्या में पहले से पॉलिसियां हैं। उद्योग के जानकारों ने कहा कि ऐसे में अगर वह खुद की रिपॉजिटरी बनाने का फैसला करती है तो इससे इस कवायद में आने वाले खर्च में बचत होगी। उनका कहना है कि जिस पैमाने पर एलआईसी की पॉलिसियां हैं, अपनी रिपॉजिटरी बनाने का विचार बेहतर है।
एलआईसी ने नियामक के पास अपनी रिपॉजिटरी बनाने का अनुरोध नहीं किया है। इस सिलसिले में एलआईसी को भेजे गए ई-मेल का उचित जवाब नहीं मिला। डिमटीरियलाइजेशन भौतिक दस्तावेजों को बदलकर ऑनलाइन बनाने की प्रक्रिया है। बीमा नियामक ने बीमा कंपनियों के साथ परामर्श किया है और कहा है कि इस मसले पर वे अपनी राय दें।