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दूरसंचार बाजार में संभावनाएं अपार

Last Updated- December 07, 2022 | 9:41 AM IST

आइडिया-स्पाइस कम्युनिकेशंस के बीच हुए विलय के सौदे से भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में विलय की गतिविधियों के लिए रास्ता और साफ हुआ है।

दूरसंचार के बाजार में छोटी कंपनियों की बात की जाए, तो एचएफसीएल इन्फोटेल, श्याम टेलीलिंक और एयरसेल जैसे कुछ ही नाम बचे हैं और भीड़भाड़ भरे इस मैदान में कई नई कंपनियां कदम रखने के लिए तैयार बैठी हैं।

नई कंपनियां तेजी से बढ़ रहे भारतीय दूरसंचार बाजार के एक हिस्से पर कब्जा करने का सपना संजोए बैठी हैं, लेकिन जबरदस्त प्रतिस्पद्र्धा वाले इस बाजार में उनका टिकना इसी बात पर निर्भर करेगा कि वे कितना सस्ता कारोबारी मॉडल लाने और चलाने में कामयाब रहती हैं।

इसका मतलब है कि अगले 24 से 36 महीनों में विलय-अधिग्रहण के और सौदे भी देखने को मिल सकते हैं। लेकिन आइडिया-स्पाइस के बीच हुआ सौदा कुछ महंगा था और इसका मतलब है कि कंपनियों की खरीदफरोख्त सस्ती नहीं होगी।

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैठ बनाने की बड़ी दूरसंचार कंपनियों की योजना में भी खासा दम नजर आता है।
 
आइडिया ने स्पाइस के अधिग्रहण के लिए 3,200 करोड़ रुपये चुकाए। इससे पता चलता है कि किफायती कॉल दर, सस्ते हैंडसेट और नेटवर्कमें विस्तार की वजह से दुनिया के इस तीसरे सबसे बड़े दूरसंचार बाजार का बड़ा हिस्सा अपनी झोली में डालने के लिए ऑपरेटर कोई भी कीमत देने को तैयार हैं।

 आइडिया ने स्पाइस को 77.30 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से कीमत दी। इसके हिसाब से स्पाइस की ईवीईबीआईडीटीए वैल्यू 15 थी और ईवीसब्सक्राइबर लगभग 14,000 रुपये था।

(ईवी का अर्थ है इंटरप्राइज वैल्यू होता है, जबकि ईबीआईडीटीए यानी इंट्रेस्ट, डेप्रिसिएशन, टैक्स और अमॉर्टाइजेशन से पहले की आय होता है)। दोनों आंकड़े काफी ज्यादा हैं क्योंकि देश की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी भारती का ईवीईबीआईडीटीए महज 10 है और उसका ईवीईवीसब्सक्राइबर तकरीबन 20,000 रुपये है।

इतने महंगे सौदे के बाद भी विश्लेषक मानते हैं कि आइडिया घाटे में नहीं रही। क्योंकि उसे पंजाब और कर्नाटक के उन दो सर्किलों में तैयार नेटवर्क, स्पेक्ट्रम और ग्राहक मिल जाएंगे, जहां उसका कोई नामोनिशान ही नहीं था।

किसी एक सर्किल में नेटवर्क तैयार करने पर ही 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च आता है और आइडिया चालू वित्त वर्ष में मुंबई, उड़ीसा, तमिलनाडु और बिहार में अपनी सेवाएं शुरू करने की योजना बना रही है।

 ऐसे में इन दोनों सर्किलों के मिल जाने से लगभग समूचे भारत में उसका कारोबार हो जाएगा।?इसके बाद उसे महज जम्मू कश्मीर, पूर्वोत्तर  और कोलकाता में नेटवर्क स्थापित करना होगा।



विदेश पर भी निगाहें

आइडिया को तो घरेलू अधिग्रहण से रफ्तार मिल रही है, लेकिन देश की दो बड़ी दूरसंचार ऑपरेटर कंपनियां  विदेशों में भी अधिग्रहण की संभावनाएं तलाश रही हैं।
रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) अफ्रीका की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी एमटीएन में आधे से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदने के लिए बातचीत कर रही है।

भारती भी अफ्रीका और पश्चिम एशिया में अधिग्रहण के लिए जोर शोर से प्रयास कर रही है।
लेकिन जब भारतीय दूरसंचार  बाजार  में हर  साल 86 लाख नए उपभोक्ता जुड़ रहे हैं, तो यहां की कंपनियां विदेशों में निगाह क्यों दौड़ा रही हैं?

इस पर  अर्न्स्ट ऐंड यंग के प्रशांत सिंघल कहते हैं, ‘देश के अग्रणी दूरसंचार ऑपरेटर अपने सस्ते कारोबारी मॉडल को वहां भी वहां भी दोहराना चाहते है क्योंकि विदेश में एक कॉल पर खर्र्च भारत के मुकाबले तीन गुना है।

भारतीय कंपनियों का यह सस्ता मॉडल फिलहाल 45 फीसदी ईबीआईडीटीए मार्जिन और कर अदायगी से पहले 23 फीसदी का मुनाफा मार्जिन दे रहा है। ग्राहकों की संख्या तो जल्द ही दोगुनी हो जाएगी, लेकिन राजस्व उस अनुपात में नहीं बढ़ेगा।’

 विश्लेषकों का मानना है कि देशी टेलीकाम क्षेत्र के विस्तार की कहानी दो साल में हकीकत बन जाएगी और  इसके बाद कंपनियों को ज्यादा रकम इसमें लगानी पड़ेगी। 

ग्रोथ स्टोरी अगले दो सालों में परिपक्व हो जाएगी। इसके बाद उन्हें अधिक धन की जरूरत पड़ेगी।
एक विशेषज्ञ कहते हैं कि ऑपरेटर अधिग्रहण करने के बाद उस देश में में नेटवर्क चलाने, ग्राहकों से तालमेल बिठाने और बुनियादी ढांचा तैयार करने में भारतीय अनुभव का इस्तेमाल कर सकते हैं।

इसकी वजह से भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में विलय और अधिग्रहण की गतिविधियां बढ़ सकती हैं। लेकिन सबसे अहम बात ग्राहकों की संख्या बढ़ाने का अवसर है, जिसकी वजह से मौजूदा कंपनियां अपना दायरा और  नेटवर्क बुनियादी ढांचा फैलाएंगी।

 इसके बिना उनके पास ग्राहकों को जोड़ने और आने वाले समय में बढ़ रहे बाजार का बड़ा हिस्सा हासिल करने का कोई और तरीका भी नहीं है।



विकास

1999 में भारत में दूरसंचार ग्राहकों की संख्या महज 10 लाख थी, लेकिन मई 2008 तक वायरलेस यानी मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या बढ़करर 32 करोड़ हो गई यानी सालाना विस्तार की दर  लगभग 83 फीसदी है।

 देश में 32 करोड़ मोबाइल फोन उपभोक्ता 90 पैसे प्रति मिनट से कम की दर पर बात कर सकते हैं और हैंडसेट्स भी 1,500 रुपये से कम कीमत पर मिल रहे हैं, लेकिन इन कंपनियों की पहुंच महज 25 फीसद आबादी तक ही है।

उपभोक्ताओं की संख्या 2010 तक 50 करोड़ हो जाने की उम्मीद है और ऐसे में 45 फीसद आबादी तक उसकी पहुंच होगी यानी ग्राहकों की संख्या के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर आ जाएगा। केवल ग्राहकों की संख्या ही ही नहीं, बल्कि टॉकटाइम वॉल्यूम यानी मोबाइल फोन पर बातचीत का समय भी बढ़ रहा है।

ऑपरेटर अब महज ग्राहकों की संख्या बढ़ाना नहीं, बल्कि प्रति ग्राहक औसत राजस्व में भी इजाफा चाहते हैं। महानगरों में राजस्व कम हो रहा है, इसलिए उन्होंने छोटे शहरों और गांवों की ओर कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है।



बनी रहेंगी कम दरें

मौजूदा दूरसंचार कंपनियां अपना दायरा बढ़ा रही हैं और नई कंपनियां ग्राहक और बाजार का बड़ा हिस्सा कब्जाने के लिए कुछ समय तक ही सही सस्ती दरों पर मोबाइल सेवा देने का खेल कर रही हैं, ऐसे में बाजार का जबरदस्त विकास तय है।

वायरलेस दूरसंचार के बाजार में 75 फीसद तक हिस्सेदारी वाली पुरानी कंपनियों के बनिस्बत नई कंपनियों को यहां बुनियादी ढांचा और नेटवर्क स्थापित करना बेहद आसान होगा क्योंकि उन्हें टॉवर जैसी सुविधाओं का साझा करने का मौका मिल रहा है।

विस्तार में आ रही लागत कम होने के कारण ही कंपनियों की कॉल दरें भी काफी कम हैं। अर्न्स्ट ऐंड यंग के सिंघल कहते हैं, ‘कॉल दरें पहले ही कम हैं। लेकिन कुछ समय के लिए उनमें और भी कमी आ सकती है, जिससे बड़ी कंपनियों का मार्जिन कम हो सकता है।’

विशेषज्ञ मानते हैं कि ज्यादातर ग्राहक प्रीपेड सेवा पसंद करते हैं क्योंकि वहां उनके पास कीमतों के मामले में ज्यादा आजादी होती है और वे कम पैसे में ज्यादा सुविधाओं वाला पैकेज लेकर फायदा उठा सकते हैं।

जानकारों की मानें, तो इस तरह ग्राहकों के एक प्लान से दूसरे प्लान की ओर मुड़ने और अधिग्रहण की लागत बढ़ने से प्रति ग्राहक औसत राजस्व यानी एआरपीयू और घट जाने की आशंका है।

पहले ही यह आंकड़ा 400 रुपये से घटकर 260 पर टिक गया है यानी पिछले 3 साल में करबीन 35 फीसद की गिरावट आई है। पिछले साल ही बाजार की दिग्गज भारती के एआरपीयू में 12 फीसद की गिरावट आई थी।

कुल राजस्व में से तकरीबन 26 से 30 फीसद तो लाइसेंस शुल्क और सेवा शुल्क वगैरह की वजह से सरकार को देना पड़ता है, किराया यानी रेंटल कम हो रहा है और रोमिंग, आईएसडी और दूसरी कॉलों की दर भी घटती जा रही है, ऐसे में ऑपरेटरों को अपना राजस्व बढ़ाने के लिए दूसरे तरीके अपनाने पड़ेंगे।



गुणवत्ता आधारित सेवा

देशी दूरसंचार कंपनियों को मिलने वाले राजस्व में फिलहाल वॉयस सेवाओं के जरिये होने वाली कमाई का हिस्सा ज्यादा है।

विश्लेषकों के मुताबिक इसके पीछे सबसे बड़ी वजह वॉयस एवं डाटा सेवाओं के लिए मांगे जाने वाले शुल्क में बहुत मामूली अंतर है।?दूसरे दूरसंचार बाजारों में ऐसा नहं है।?ब्लैकबेरी जैसे हैंडसेट्स भी भारत में बहुत कम इस्तेमाल होते हैं।

उनमें कई तरह के डाटा ऐप्लिकेशंस का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी तरह विकसित बाजारों में स्मार्ट फोन का भी बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है, जबकि भारत में ऐसा नहीं है। भारत में ऐसे महज 4 फीसदी हैंडसेट इस्तेमाल किए जाते हैं।

इसके अलावा जानकारी का अभाव और ऐसे ऐप्लिकेशंस को इस्तेमाल करने की समझ नहीं होने की वजह से भी भारत में मूल्यवर्द्धित सेवाओं की हिस्सेदारी और इस्तेमाल दोहरे अंकों तक भी नहीं पहुंच पाया है।

 फ्रॉस्ट ऐंड सुलिवन में आईसीटी प्रैक्टिस के उप निदेशक गिरीश त्रिवेदी ने बताया कि डाटा ऐप्लिकेशंस की हिस्सेदारी राजस्व में कम होने के लिए भी कंपनियां ही जिम्मेदार हैं।

उनके मुताबिक कंपनियां इन मूल्य वर्द्धित सेवाओं और उनके कम किराये के बारे में लोगों को बताती ही नहीं हैं।यही वजह है वॉयस सेवाओं के मुकाबले इन सेवाओं का दायरा बहुत कम है।

विशेषज्ञों को भरोसा है कि 3 जी नेटवर्कआने के साथ ही मोबाइल एंटरटेनमेंट और कॉमर्स का इस्तेमाल बढ़ेगा और डाटा सेवाओं की राजस्व में हिस्सेदारी 4 साल में 20 फीसद तक पहुंच जाएगी।

ये सेवाएं प्रदान कराने वाली भारती टेलीसॉफ्ट के निदेशक रमेश कृष्णन ने बताया कि मोबाइल ऑडियो और वीडियो एप्लिकेशन न सिर्फ विकल्प उपलब्ध कराएंगे, बल्कि वे मार्जिन बढ़ाने में भी मददगार साबित होंगे।

 आने वाले समय में वीएएस एमवीएनओ (मोबाइल वर्चुअल नेटवर्क ऑपरेटर) के रूप में आएगा। वर्तमान में एक भी एमवीएनओ नही है।

बाजार के परिपक्व हो जाने के बाद ये एक अहम भूमिका निभाएंगे और बाजार में इनकी हिस्सेदारी भी बढ़ेगी। हालांकि भारत में अभी यह स्थिति आने में समय लगेगा।



भविष्य

वर्तमान दूरसंचार कंपनियां दूरसंचार टावर जैसे बुनियादी ढांचे को साझा करने लगी हैं। इससे पूंजी व्यय कम हो जाने की उम्मीद है, जिससे परिचालन खर्च बढ़ जाएगा।

भारती और आरकॉम जैसी बड़ी कंपनियों के भारी भरकम पूंजी खर्च और उसकी वजह से होने वाले बड़े डेप्रिसिएशन की वजह से ही उनका ईबीआईडीटीए मार्जिन भी 40 से ज्यादा के स्तर पर है।

लेकिन पूंजी खर्च का एक बड़ा हिस्सा परिचालन खर्र्च के मद में जाने लगा है, इसकी वजह से ईबीआईडीटीए मार्जिन कम होता दिख सकता है, लेकिन बुनियादी प्रॉफिट मार्जिन में खास कमी नहीं आएगी।

हालांकि नई सेवाओं के जरिए ऑपरेटर कंपनियां कितनी कमाई कर पाती हैं, यह तो 3 जी सेवाओं के चालू होने और उनकी कीमत पर निर्भर करेगा।

स्पेक्ट्रम का मसला सुलझ जाने पर 3 जी सेवाओं की कीमत नए सिरे से तय की जा सकती है क्योंकि इसके बाद ऑपरेटर ज्यादा मूल्य वर्द्धित सेवाएं दे पाएंगे।


शेयर बाजार में सूचीबध्द दूरसंचार कंपनियों में भारती का बाजार में 26 फीसद हिस्सा है(ग्राहक संख्या 6.7 करोड़)।

यह कंपनी कीमत के हिसाब से ईवीसेल्स (4), ईवीईबीआईडीटीए (10) और ईवीसब्सक्राइबर (20,000 रुपये) में सबसे सस्ती है, जबकि यह एआरपीयू में आरकॉम से थोड़ी ही अधिक (424) है। (देखें: रिंगिंग लाउड) आरकॉम के शेयरों की स्थिति अधिग्रहण की खबरों और कंपनी की अपना जीएसएम नेटवर्क फैलाने की क्षमता पर निर्भर करेगी।


दूरसंचार ऑपरेटर कुछ भी कहें, सचाई तो यही है कि भारतीय बाजार का आकार बड़ा होने से ही इन कंपनियों को अधिग्रहण, नेटवर्कविस्तार और 3 जी तकनीक में हाथ आजमाने के लिए रकम मिल रही है।



 

First Published - July 7, 2008 | 12:38 AM IST

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