भारतीय ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड (आईबीबीआई) ने एक चर्चा पत्र में आईबीसी नियमनों में संशोधनों के लिए कहा है। इनमें दिवालियापन के तहत समूची कंपनी और उसके विशिष्ट कारोबारों या परिसंपत्तियों दोनों ही स्थितियों के लिए एक साथ समाधान योजनाओं को आमंत्रित करने की अनुमति देना शामिल है।
नियामक ने कहा, ‘इस प्रस्ताव से यह जररूत खत्म हो जाएगी कि समाधान पेशेवर किसी परिसंपत्ति से जुड़ी योजनाओं की मांग केवल तभी कर सकते हैं, जब समूचे कॉरपोरेट देनदार के लिए समाधान योजनाओं को आमंत्रित करने के प्रयास विफल हो गए हों।’
आईबीबीआई ने कहा है कि मौजूदा आईबीसी प्रक्रिया हरेक इकाई को स्वतंत्र इकाई के रूप में मानती है और आधुनिक कारोबारी तंत्र में आम तौर पर मौजूद परस्पर निर्भरता के जटिल जाल को नजरअंदाज कर देती है। उसने कहा कि रियल एस्टेट, बिजली उत्पादन आदि जैसे क्षेत्रों में परस्पर जुड़े संचालन और वित्त के साथ जटिल कॉरपोरेट संरचनाओं के बढ़ते प्रचलन ने दिवालिया समाधान के लिए और बारीकी से विभिन्न पहलुओं की जररूत जताई है।
किंग स्टब ऐंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नीज में पार्टनर सुकृत कपूर ने कहा, ‘आपस में जुड़ी इकाइयों के सीआईआरपी के समन्वय के लिए विनियमित तंत्र की शुरूआत समूह दिवालियापन ढांचे की ओर बहुप्रतीक्षित लेकिन देर से उठाया गया कदम है। इस संशोधन के, अगर आगे बढ़ता है, बाद समूह की ऐसी इकाइयों के लिए एकल समाधान पेशेवर ही होगा और भारतीय संकटग्रस्त परिसंपत्ति बाजार में परिसंपत्तियों के संयुक्त अधिग्रहण को सक्षम करेगा।’
वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड और श्रेय इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस लिमिटेड जैसे हाल के दिवालिया मामलों ने आपस में जुड़ी इकाइयों के मामले में अधिक परिष्कृत दृष्टिकोण की आवश्यकता बताई है। आईबीबीआई ने कहा कि मौजूदा ढांचा कॉरपोरेट समूहों के भीतर तालमेल और पारस्परिक निर्भरता का लाभ उठाने का महत्त्वपूर्ण अवसर है।
साल 2019 में भारतीय स्टेट बैंक की अगुआई में बैंकों के एक समूह ने एनसीएलटी के मुंबई पीठ से वीडियोकॉन समूह की 15 कंपनियों को काफी हद तक संयुक्त करने की अनुमति मांगी थी। एनसीएलटी ने माना कि हालांकि ऐसा कोई एकल पैमाना नहीं है जिसके आधार पर संयुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी या नहीं दी जा सकती है, लेकिन कुछ ऐसे नियंत्रण और मापदंड हैं जिन्हें लागू किया जा सकता है।