किसी भी धोखाधड़ी से बचने का सबसे बेहतर तरीका है कि हम उसे जानें।
क्रेडिट कार्ड में धोखाधड़ी तब शुरू होती है जब कार्ड चोरी हो जाता है या कार्ड से जुड़ी कोई गंभीर जानकारी चुरा ली जाती है।
इस जानकारी में कार्ड धारक का नाम, उसका अकाउंट नंबर, कार्ड की वैधता समाप्त होने की तारीख या कार्ड वैरिफिकेशन वैल्यू (सीवीवी) कोड में से कुछ भी हो सकता है।
सबसे पहली चीज- आपको जब भी पता चले कि आपका कार्ड चोरी हो गया है, तुरंत इसकी जानकारी जनसंपर्क विभाग को देनी चाहिए। कोई भी और कदम उठाने से पहले कार्ड को ब्लॉक कराना चाहिए।
यह जानते हुए कि चोरी हुए कार्ड या उसकी जानकारी का पता लगा पाना काफी मुश्किल है, वास्तव में कार्ड चोरी होने पर धारक को कितना नुकसान हुआ है, इसका सही-सही पता तो बिल विवरण जारी होने पर ही पता चलता है। और अगर ऐसे में कोई बड़ा अंतर दिखाई दे तो आपको तुरंत बैंक पहुंचना चाहिए।
हालांकि आज सिर्फ कार्ड चुरा लेना काफी पुरानी बात हो गई है। आज एक नया चलन देखने को मिल रहा है, जिसमें पहचान को चुराया जाता है। इसके दो तरीके हैं- आवेदन धोखेबाजी और अकाउंट चुराना। आवेदन धोखेबाजी से मतलब उस धोखाधड़ी से है, जिसमें अपराधी अकाउंट खुलवाने के लिए आपके दस्तावेज चोरी करता है।
अपना खाता शुरू करने के लिए हो सकता है कि वह आपके महत्वपूर्ण बिल या बैंक विवरण सरीखे अहम दस्तावेज चोरी कर ले। इन कागजों से उसे आपकी निजी जानकारी हासिल हो जाएगी, जो खाता खुलाने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। इसके अलावा कुछ लोग अकाउंट चुराने का लंबा रास्ता अख्तियार करते हैं। इसमें अपराधी व्यक्ति के बैंक खाते से जानकारी इकट्ठा करता है।
इसके लिए अपराधी कुछ ऐसे ई-मेल का इस्तेमाल करते हैं, जिसके जवाब में आप उन्हें अपनी कुछ जानकारी देते हैं। एक बार जब अपराधी के पास आपकी जानकारी पहुंच गई, तब वह असली कार्डधारक के रूप में बैंक को फोन कर अपना नया पता बताता है।
उसके बाद जल्द ही वह क्रेडिट कार्ड के खोने की जानकारी बैंक को पहुंचाता है और उसके बाद उसे एक नया कार्ड मिल जाता है, जिसे वह आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे अपराधी लंबा-चौड़ा बिल बनाकर गायब हो जाते हैं। और फिर जब बैंक नए पते पर उनकी पूछताछ करते हैं तो वहां उन्हें कोई नहीं मिलता। जांच-पड़ताल के इस चक्कर में बैंक एक बार फिर आपके पास पुराने फोन नंबर या घर के पते के सहारे पहुंचते हैं।
हालांकि इन दोनों तरीकों की धोखाधड़ी के लिए आपको बहुत ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। बिना कार्ड धारक की जानकारी के अगर कोई अकारण कार्ड जारी किया जाता है तो भारतीय रिजर्व बैंक ने यह कह रखा है कि जारीकर्ता बैंक को कार्डधारक के कार्ड पर लगाए गए शुल्क को वापस लेना होगा।
इसके अलावा जारीकर्ता बैंकों को एक जुर्माना भी देना होगा, जो वापसी शुल्क की राशि का दोगुना होगा। इसके लिए आपको जारीकर्ता बैंक को एक शिकायत याचिका देनी होगी। अगर आपको कोई संतोषजनक जवाब दो से तीन सप्ताह के भीतर नहीं मिलता तब आप बैंकिंग लोकपाल तक अपनी शिकायत पहुंचा सकते हैं। क्रेडिट कार्ड की धोखाधड़ी का एक और तरीका है स्किमिंग।
इसमें जहां से आपने खरीदारी की हो, वहीं का कोई बेईमान कर्मचारी शामिल होता है। स्किमिंग के मामले में अपराधी एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस्तेमाल करता है, जिसे स्किमर कहते हैं। यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण कार्ड पर लगी चुंबकीय पट्टी के डैटा को खुद में सुरक्षित कर लेता है और बाद में डुप्लीकेट कार्ड बनाने के लिए इस जानकारी का इस्तेमाल होता है।
डुप्लीकेट कार्ड का इसतेमाल बाद में धाखाधड़ी के लिए किया जाता है। बैंकों के लिए इस तरह के मामलों को पकड़ना काफी आसान होता है। बैंक सभी कार्ड धारकों की एक फेहरिस्त बना सकते हैं, जिन्होंने धोखाधड़ी के साथ लेन-देन करने की शिकायतें की हों।
फिर उसके बाद वे खरीद-फरोख्त का पूरा विवरण खंगाल सकते हैं, जिससे वे कार्ड धारक और जिस-जिस विक्रेता से सामान या सेवाएं ली हों, उनके बीच के संपर्क की जांच-पड़ताल कर सकते हैं।
मिसाल के तौर पर अगर इस तरह के किसी क्रेडिट कार्ड धारक ने किसी खास विक्रेता से लंबा-चौड़ा लेन-देन किया हो तो उस विक्रेता के टर्मिनल या कार्ड स्वाइप करने के उपकरण की सीधे-सीधे जांच की जा सकती है।
