शेयर बाजार के लिए वर्ष 2008 अच्छा नहीं रहा, इस दौरान बाजार में करीब 52.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
यही नहीं, वर्ष 2009 के शुरुआती तीन महीनों-1 जनवरी से 9 मार्च के बीच बाजार में करीब 15.4 फीसदी की गिरावट आई। 9 मार्च को बीएसई सेंसेक्स वर्ष 2009 के अब तक के सबसे निम्न स्तर तक पहुंच गया था।
हालांकि हाल के दिनों में बाजार में जिस तरह की तेजी देखी जा रही है, उससे निवेशकों को थोड़ा सुकून मिला है। 9 मार्च 2009 के निचले स्तर से बीएसई सेंसेक्स अब तक 38.83 फीसदी का उछाल ले चुका है। खास बात यह कि पिछले हफ्ते सेंसेक्स लगातार सातवें हफ्ते तेजी के साथ बंद हुआ।
जानकारों का कहना है कि भारतीय बाजार में हाल में आई तेजी के कई कारण हैं। इसे संस्थागत विदेशी निवेशकों का धन प्रवाह और विदेशी बाजारों में तेजी का भी साथ मिला। हालांकि इस तेजी के बीच भी कई सवाल उठ रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि बाजार के फंडामेंटल्स में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है, जिससे जोखिम अब भी बना हुआ है। दलाल स्ट्रीट भी बाजार के भविष्य को लेकर चिंतित है और देश की अर्थव्यवस्था के बारे में अब भी संशय बना हुआ है।
इस तेजी के बीच सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह रैली बाजार में तेजी के नए दौर की शुरुआत है या फिर यह मंदी के बाजार में खबी-कबार आने वाली तेजी का झोंका है। सच ऐसी स्थिति में निवेशकों को क्या रणनीति अपनानी चाहिए, इसे लेकर भी तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं।
स्मार्ट इन्वेस्टर ने इस मसले पर देशी और विदेशी, दोनों बाजारों के विशेषज्ञों की राय जाननी चाही। मौजूदा तेजी को विशेषज्ञ किस नजरिए से देखते हैं, आइए जानते हैं :
दुनियाभर में आई तेजी
बाजार में आई मौजूदा तेजी आनन-फानन में देखी गई। 30 शेयरों पर आधारित सेंसेक्स केवल छह हफ्तों (9 मार्च से 21 अप्रैल तक) में 33.5 फीसदी का उछाल भर चुका है, जबकि 2.84 फीसदी का उछाल सातवें हफ्ते में दर्ज किया गया।
कुल मिलाकर पिछले 7 हफ्तों में सेंसेक्स अब तक 39 फीसदी का उछाल ले चुका है। भारतीय बाजार में आई यह तेजी दुनिया के प्रमुख बाजारों की तेजी में दूसरे नंबर पर है। खास बात यह कि दुनिया के प्रमुख 15 बाजारों में इस दौरान तेजी दर्ज की गई। पिछले 6 हफ्तों के दौरान 15 में से 8 बाजारों में तो 20 से 30 फीसदी का उछाल आया है।
जानकारों का कहना है कि घरेलू बाजार में वैश्विक बाजारों की तेजी का असर हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें, तो भारतीय अर्थव्यवस्था घरेलू खपत पर मुख्य तौर पर निर्भर है। ऐसे में वित्तीय बाजारों का रुख वैश्विक बाजारों की भावनाओं से प्रभावित होता है।
विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से भारतीय बाजार में 1 अप्रैल तक करीब 1.08 अरब डॉलर का निवेश किया गया। 9 मार्च तक एफआईआई निवेश 1.4 अरब डॉलर का था, जबकि अप्रैल 21 तक घरेलू संस्थागत निवेशकों ने बाजार में करीब 750 करोड़ रुपये का निवेश किया।
दुनिया के अन्य बाजारों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। वैश्विक बाजारों की भावनाओं में आए बदलाव के पीछे अमेरिका में नए गार्टनर प्लान, जी-20 बैठक, बराक ओबामा की ओर से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कवायद, विभिन्न देशों की सरकारों और केंद्रीय बैंकों की ओर से राहत पैकेजों की घोषणा का भी योगदान रहा है।
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक रामदेव अग्रवाल का कहना है कि सिटी बैंक और कुछ अन्य कंपनियों के पहली तिमाही के नतीजों से लगता है कि अमेरिका अब मंदी से धीरे-धीरे उबर रहा है। सच तो यह है कि मंदी से निपटने के लिए विभिन्न सरकारों की योजनाएं और विदेशी संस्थागत निवेशकों की खरीदारी से बाजार की भावना में बदलाव आया है।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्युचुअल फंड के सीआईओे नीलेश शाह का कहना है कि कुछ समय पहले भारतीय बाजार में जबरदस्त गिरावट देखी गई थी, लेकिन अब हम तेजी से विकास कर रहे हैं। भारत में वाहन, सीमेंट और स्टील उद्योग, जो पिछले कुछ समय से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे, उनमें भी सुधार होता दिख रहा है।
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि बाजार में आई मौजूदा तेजी के पीछे कुछ तकनीकी और अन्य कारण हैं। एम्बिट कैपिटल के सीईओ (इक्विटी) एंड्रयू हॉलैंड का मानना है कि यह तेजी शॉर्ट कवरिंग के चलते आई है।
बाजारों में जोखिम अब भी बना हुआ है और खुदरा निवेशक अब भी बाजार में खरीदारी में जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं। उनका कहना है कि म्युचुअल फंडों के पास इस समय काफी नकदी है और वे उसमें से कुछ बाजार में निवेश कर रहे हैं।
तेजी की वजह क्या है?
बाजार में आई हालिया तेजी से निवेशकों को थोड़ी राहत तो जरूर मिली है, लेकिन यह तेजी कितने समय तक रहेगी, इसे लेकर लोगों की अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का मानना है कि यह तेजी नए बुल मार्केट की शुरुआत है, वहीं कुछ का कहना है कि बाजार में अभी और गिरावट आएगी।
कुछ अन्य का मानना है कि बाजार अभी दबाव के दौर से गुजर रहा है। फेडेलिटी इंटरनैशनल के अध्यक्ष (इन्वेस्टमेंट) एंथनी बोलटॉन का कहना है कि यह नए बुल मार्केट की शुरुआत है और ऐसी तेजी अगले सात साल तक रह सकती है। हालांकि अभी इसके बारे में सटीक-सटीक बता पाना कठिन होगा।
बाजार से बाहर बहुत नकदी है। एक बार जब लोगों को यह लगेगा कि बुरा दौर खत्म हो चुका है और वे निवेश करने लगेंगे, तो बाजार में अच्छी तेजी आ सकती है। वैसे, कुछ का मानना है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत नजर आ रहे हैं, लेकिन तेज सुधार की उम्मीद अभी नहीं की जा सकती है।
बाजार के कुछ जानकारों का कहना है कि हम अभी भी मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। एंड्रयू हॉलैंड का कहना है कि हमारे लिए बुल मार्केट जैसी कोई बात नहीं है। इसकी वजह बताते हुए हॉलैंड का कहना है कि अब भी बाजार में मांग की कमी है और इसमें सुधार आने में अभी वक्त लगेगा। हॉलैंड का कहना है कि उपभोक्ता अब बचत पर जोर दे रहे हैं।
अमेरिका में पहले यह बचत दर जहां नकारात्मक 2 फीसदी थी, वह बढ़कर 4 फीसदी पर पहुंच चुकी है। जबकि अमेरिका का 70 फीसदी जीडीपी उपभोक्ता खपत पर निर्भर है। ऐसे में जब उपभोक्ता खर्च करने के बजाए बचत करने लगेंगे, तो अर्थव्यवस्था में सुधार आने में वक्त लगना स्वाभाविक है। आप यह जानकर थोड़ा चकित हो सकते हैं कि हॉलैंड मानते हैं कि शेयर बाजारों में अभी और गिरावट आ सकती है।
आईडीएफसी म्युचुअल फंड के सीआईओ नवल बीर का कहना है कि बाजार बुल और बीयर मार्केट के बीच कारोबार कर रहा है। इस स्तर पर बाजार में थोड़ा सुधार आ सकता है, लेकिन यह कितने समय तक रहेगा, यह कहना कठिन है।
आगे क्या होगा?
बाजार की मौजूदा तेजी के पीछे विशेषज्ञों की राय भले ही अलग-अलग हो, लेकिन इस बात पर सभी सहमत नजर आते हैं कि पिछले 4-6 महीनों की तुलना में निवेशक फिलहाल थोड़ा सुकून महसूस कर रहे हैं। कुछ का मानना है कि यह अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं।
अरांका के सीईओ हेमेंद्र अरान का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के भरोसे से बाजार विकास की ओर से अग्रसर है। मार्च 2009 में बेरोजगारी दर में कमी आई है। पिछले महीने करीब 59,800 लोगों के बेरोजगार होने की खबर आई, वहीं मार्च में केवल 14,800 लोगों को ही नौकरियों से हाथ धोना पड़ा।
अमेरिकी कंज्यूमर एक्सपेक्टेशन इंडेक्स मार्च में 53.5 रहा, जो फरवरी में 50.5 था। इससे स्पष्ट है कि देश की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे ही सही, लेकिन पटरी पर आ रही है। इसी का असर बाजार पर भी पड़ता दिख रहा है।
अगर वैश्विक और भारतीय बाजार में अच्छी तेजी देखी जाती है, तो अर्थव्यवस्था में विकास और कंपनियों की कमाई में भी इजाफा होगा। भारतीय कंपनियों की बात करें, तो वित्त वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही में इनके मुनाफे पर असर पड़ा था। खासकर, सेंसेक्स की कंपनियों के मुनाफे में तो करीब 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
चौथी तिमाही में भी इनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहने के आसार हैं। जानकारों का कहना है कि इन कंपनियों के मुनाफे में सालाना आधार पर 9 से 15 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। वैसे, जानकारों का कहना है कि वित्त वर्ष 2010 की पहली तिमाही में इन कंपनियों के मुनाफे में सुधार आ सकता है।
बिड़ला सन लाइफ म्युचुअल फंड के सीआईओ बाला सुब्रमण्यन का कहना है कि कंपनियों के मुनाफे में स्थिरता आ रही है। मार्च 2008 में विश्लेषकों ने अनुमान लगाया था कि वर्ष 2010 में बीएसई सेंसेक्स की आय 1,200 रुपये रहेगी, जिसे बाद में घटाकर 800-850 रुपये कर दिया गया। इसके पीछे अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट को वजह बताया गया।
अब ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि सेंसेक्स कंपनियों से रिटर्न 850-870 रुपये के बीच रह सकता है। वैसे यहां भी दोनों पक्ष को मानने वाले लोग हैं। एंड्रयू हॉलैंड का कहना है कि मुनाफे में गिरावट आ सकती है और वर्ष 2010 में सेंसेक्स का ईपीएस 750 रुपये रह सकता है।
वैसे, अच्छी खबर यह है कि मानसून सामान्य रहने के आसार हैं, वहीं निकट भविष्य की चिंता आम चुनाव भी जल्द ही संपन्न हो जाएगा। विदेशी निवेशक भी इस ओर ध्यान दे रहे हैं कि नई सरकार किस तरह की नीति बनाती है। उसके बाद ही उनकी ओर से निवेश का कोई फैसला लिया जाएगा। ऐसी आम धारणा है कि चुनाव के एक माह पहले और बाद में बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर चलता है।
निवेशकों को क्या करना चाहिए?
एक स्तर के बीच मार्केट में उतार-चढ़ाव को देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समय में निवेशक को लॉन्ग टर्म पोर्टफोलियो बनाना चाहिए। सच तो यह है कि निवेशक को बेहतर रिटर्न के लिए किसी एक कंपनी के शेयर पर भरोसा करना होगा।
मार्क फेबर का कहना है कि बुल या बीयर मार्केट का सवाल किताबी बातें हैं। अगर सेंसेक्स 16,000 के स्तर पर पहुंच कर 7500 के स्तर तक गिरता है, तो यह बीयर रैली है। उनका कहना है कि अप्रैल में तेजी के बाद बाजार में सुधार आ सकता है। वैसे जुलाई तक बाजार में तेजी का दौर रह सकता है, लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट आने की संभावना है।
ऐसे में बाजार में अगर तेजी आती है, तो निवेशक को अच्छा रिटर्न मिल सकता है। सच तो यह है कि चीन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में ही सबसे ज्यादा विकास दर देखी जा रही है। जानकारों का कहना है कि निर्यात से संबंधित क्षेत्रों पर कम निर्भर रहें, तो बेहतर होगा, क्योंकि आईटी और अन्य क्षेत्रों में गिरावट देखी जा रही है। बाजार में तेजी आने पर निवेशक को प्रॉफिट बुक करना चाहिए।
इसके बाद जैसे ही बाजार में गिरावट आए, शेयरों की खरीदारी करनी चाहिए। निवेशकों को पैसे लगाने से पहले उन कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिनकी विकास दर अच्छी हो और जिन पर मंदी का कम से कम असर पड़ा हो।
ऐसी कंपनियों में एफएमसीजी, दूरसंचार, फार्मा सेक्टर प्रमुख हैं। वैसे लंबे समय के लिए बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कंपनियों में भी निवेश किया जा सकता है, लेकिन रियल एस्टेट कंपनियों में निवेश से फिलहाल बचना चाहिए।
वैश्विक तेजी का है यह असर
रशेल नेपियर
ग्लोबल मैक्रो स्ट्रेटजिस्ट
सीएलएसए एशिया-पैसिफिक मार्केट
बाजार में आई तेजी वैश्विक स्तर पर है और इसमें 18 से 24 माह तक तेजी रहने के आसार हैं। दुनियाभर की सरकारों ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तमाम तरह के उपाय किए हैं। इसकी वजह से भी बाजार को बल मिला है। वैसे बाजार को पूरी तरह से उबरने के लिए अर्थव्यवस्था में तेजी आने का इंतजार करना चाहिए।
मांग बढ़ाने पर पूरा जोर देना होगा, क्योंकि इससे जहां कंपनियों की आय में इजाफा होगा, वहीं बाजार को भी तेजी का साथ मिलेगा। जहां तक बाजार में नकदी के प्रवाह की बात है, सरकार और केंद्रीय बैंक इस दिशा में हर संभव उपाय कर रहे हैं।
इसके बावजूद सभी जानते हैं कि बाजार में तरलता तभी आएगी, जब उधार लेने वालों की संख्या बढ़ेगी। बीमा, दवा, एफएमसीजी और अन्य कंपनियों की बिक्री में इजाफा को देखते हुए कहा जा सकता है कि बाजार में तरलता बढ़ी है, जिससे अर्थव्यवस्था के साथ-साथ बाजार में भी सुधार आने की संभावना है।
