भारतीय बैंकिंग तंत्र में अभी और सुधार की गुंजाइश है और स्वस्थ प्रोफाइल बरकरार रखने की जरूरत है ताकि मौजूदा आशावादी दौर अत्यधिक उत्साह में फीका न पड़ जाए। यह कहना है भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व डिप्टी गवर्नर और कॉलेज ऑफ सुपरवाइजर्स के चेयरपर्सन एन एस विश्वनाथन का।
बिज़नेस स्टैंडर्ड की ओर से जोखिम एवं बैंकिंग सुदृढ़ता पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विश्वनाथन ने कहा कि नियामकीय पहल के समर्थन से भारत में बैंकिंग पारिस्थितिकी तंत्र ने ‘बहुत खराब से सामान्य’ की ओर कदम बढ़ाया है।
विश्वनाथन ने कहा, ‘यह अच्छी बात है कि बैंकिंग प्रणाली बेहतर स्थिति में है। हालांकि इसे बहुत अच्छी स्थिति में कहना अभी थोड़ी जल्दबाजी होगी क्योंकि मेरा मानना है कि बीते समय में यह बहुत खराब स्थिति में था। मैं जो देख रहा हूं वह यह है कि हम बहुत खराब से सामान्य की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन यह रातोरात नहीं हुआ है।’
उन्होंने कहा कि परिसंपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा (एक्यूआर), ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता तथा गैर-निष्पादित अस्तिायों (एनपीए) के लिए प्रावधान जैसी पहल ने भारतीय बैंकों को ज्यादा कुशल और सुदृढ़ बनाया है।
हालांकि बैंकों को इसका जश्न मानाने में जल्दबाजी दिखाने के प्रति आगाह करते हुए केंद्रीय बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर ने कहा कि मौजूदा सुदृढ़ ढांचे को बरकरार रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आंतरिक और बाह्य स्तर पर काफी कुछ हो रहा है, ऐसे में निरंतरता बनाए रखना बेहतद महत्त्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि बीते कई वर्षों में बैंकों के कवरेज अनुपात का प्रावधान 70 से 80 फीसदी के दायरे में बढ़ा है।
विश्वनाथन का मानना है कि आरबीआई किसी भी संकट की स्थिति में सक्रियता से कार्रवाई करता है। उन्होंने कहा कि संकट के समय में हस्तक्षेप किया जाता है संकट के बाद नहीं। उन्होंने कहा कि येस
बैंक जैसे संकट के मामले में आरबीआई ने पहले ही अनुमान लगा लिया था। केंद्रीय बैंक पहले की तुलना में अब बेहतर तकनीक और प्रतिभा से लैस है।
सुपरवाइजरों को तैयार करने पर जोर देते हुए विश्वनाथन ने कहा, ‘यह ध्यान में रखना जरूरी है कि वित्तीय क्षेत्र में जोखिम की प्रकृति बदल रही है। उनका काम इन अज्ञात जोखिमों को उजागर करना और संभावित जोखिमों की पहचान करना है।’
सिद्धांत-आधारित और नियम-आधारित कदमों के बीच चल रही बहस पर, विश्वनाथन ने इस बात पर जोर दिया कि ‘नियम-आधारित होना मौजूदा चलन से बाहर होना नहीं है’। उन्होंने कहा कि जब पत्र द्वारा व्याख्या की जाती है तब नियामक प्रणाली सिद्धांत-आधारित नहीं हो सकती है और साथ ही उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र की तैयारियों पर भी सवाल उठाया।
विश्वनाथन की बातचीत के बाद ‘मेल्टाडाउन सैंस लिक्विडिटी: दि लेसंस फ्रॉम यूएस बैंकिंग क्राइसिस’ विषय पर हुई एक पैनल चर्चा में बैंकरों ने कहा कि भारत में नकदी जमा अब कोविड-पूर्व के स्तर पर वापस आ गई है।
नकदी कवरेज मानदंड भारत में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर लागू होता है। हालांकि, सिलिकन वैली बैंक, 16 वां सबसे बड़ा अमेरिकी बैंक होने के बावजूद, एक छोटा संस्थान माना जाता था और उसे नकदी कवरेज मानदंडों से छूट दी गई थी जिसके कारण यह दिवालिया हुआ। भारत में, छोटे से छोटे बैंकों को भी लगातार मानदंडों का पालन करना पड़ता है और वे निगरानी के दायरे में रहते हैं।
नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट (एनएबीएफआईडी) के उप प्रबंध निदेशक बीएस वेंकटेश ने कहा, ‘महंगाई के कारण ब्याज दर में वृद्धि का खतरा बड़े असंतुलन की स्थिति बना रहा था और इसकी वजह से बॉन्ड प्रतिफल बढ़ गया जो बैंकरों के लिए संसाधन जुटाने की राह में एक बाधा थी। लेकिन अब स्थिति वास्तव में अनुकूल है और बॉन्ड जारी होना शुरू हो गया है।‘