भारत के बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस (BFSI) सेक्टर ने पिछले दो दशक में जबरदस्त ग्रोथ हासिल की है। बजाज फिनसर्व एएमसी की एक स्टडी के अनुसार, भारत का बीएफएसआई सेक्टर 20 साल में 50 गुना बढ़ा है और इसका मार्केट कैप (MCap) 91 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। साल 2005 में इस सेक्टर की बाजार हैसियत 1.8 लाख करोड़ रुपये थी। आंकड़े बताते हैं कि देश का बीएफएसआई सेक्टर सालाना आधार पर 22% की दर से बढ़ा है।
अब बीएफएसआई सेक्टर भारत की जीडीपी में 27% का योगदान देता है, जबकि 20 साल पहले यह केवल 6% था। यह ग्रोथ मजबूत वित्तीयकरण (robust financialization), नियामकीय सुधारों और भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त (demographic dividend) के कारण संभव हुई है।
स्टडी में कहा गया है कि यह विविधीकरण (diversification) और औपचारिककरण (formalisation) इस बात को मजबूत करता है कि बीएफएसआई सिर्फ एक सेक्टोरल ग्रोथ की कहानी नहीं, बल्कि भारत के आर्थिक परिवर्तन का एक मजबूत स्तंभ है — जो ‘विकसित भारत’ के विजन और 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य का अभिन्न हिस्सा है।
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स्टडी में यह भी बताया गया है कि पिछले दो दशकों में बीएफएसआई सेक्टर ने लगातार व्यापक बाजार (broader market) से बेहतर प्रदर्शन किया है, जिसका उदाहरण निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज (NFS) इंडेक्स और निफ्टी 50 के बीच तुलना में देखा जा सकता है। 2008 की आर्थिक मंदी के बाद 2009 में रिकवरी के दौरान, NFS इंडेक्स में सिर्फ छह महीनों में 80% की बढ़ोतरी हुई, जबकि निफ्टी 50 में यह वृद्धि 64% रही।
इसी तरह, 2014 के आम चुनाव परिणामों के बाद NFS ने छह महीनों में 37% रिटर्न दिया, जबकि निफ्टी 50 ने 23% का रिटर्न दर्ज किया। कोविड-19 महामारी के बाद 2021 में रिकवरी के दौरान भी यह मजबूती देखने को मिली, जब NFS इंडेक्स एक साल में 66% बढ़ा, जबकि निफ्टी 50 में 55% की बढ़ोतरी हुई।
यहां तक कि 2024 में जब बाजार अपने शिखर (market peak) पर था, तब भी NFS इंडेक्स ने व्यापक बाजार से बेहतर प्रदर्शन किया, जहां उसने 21% की बढ़त दर्ज की, जबकि निफ्टी 50 में यह बढ़त 19% रही।
स्रोत: आईसीआरए एमएफआई एक्सप्लोरर। डेटा: 30 सितंबर 2025 तक।
यह लगातार बेहतर प्रदर्शन यह दर्शाता है कि बीएफएसआई (BFSI) भारत के कैपिटल मार्केट्स का प्रमुख चालक बन चुका है। इस मजबूती के पीछे बढ़ती फाइनेंशियलाइजेशन, मजबूत फंडामेंटल्स और खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी जैसे कारक हैं — जो इसे एक मेगाट्रेंड (megatrend) के रूप में स्थापित करते हैं।
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पिछले एक दशक में भारतीय बैंकिंग सेक्टर ने मजबूत गति से वृद्धि हासिल की है। बैंक क्रेडिट ने 10.71 फीसदी की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) दर्ज की है, जबकि डिपॉजिट्स में 10.25 फीसदी की एनुअल ग्रोथ देखी गई है।
बैंकों के फंडामेंटल भी लगातार बेहतर हुए हैं — ग्रॉस एनपीए (Gross NPAs) FY22 से FY25 के बीच 5.8 फीसदी से घटकर 2.2 फीसदी पर आ गए हैं, जबकि क्रेडिट कॉस्ट 1.3 फीसदी से घटकर 0.4 फीसदी रह गई है।
FY25 तक बैंकों की हिस्सेदारी बीएफएसआई (BFSI) सेक्टर के कुल बाजार पूंजीकरण में घटकर 57 फीसदी रह गई है, जो 2005 में 85 फीसदी थी। यह बदलाव एनबीएफसी, फिनटेक, एएमसी और बीमा कंपनियों की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है, जो अब इस सेक्टर में प्रमुख वैल्यू ड्राइवर बनकर उभरे हैं।
वहीं दूसरी ओर, नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियां (NBFCs) एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी हैं। उन्होंने वित्तीय समावेशन (financial inclusion) को बढ़ावा देने और उपेक्षित वर्गों (underserved segments) की लोन आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई है। FY24 में NBFCs का कुल BFSI सेक्टर की कमाई में हिस्सा 18% रहा, जो खुदरा लोन (retail lending) में उनकी बढ़ती अहमियत को दर्शाता है।
FY10 से अब तक NBFCs की नेटवर्थ लगभग 15 फीसदी की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) से बढ़ी है। वहीं, पिछले दो दशकों में उनका नेट प्रॉफिट सालाना आधार पर करीब 31.69 फीसदी की दर से बढ़ा है।
इस सेक्टर की एसेट क्वालिटी में भी सुधार हुआ है — ग्रॉस एनपीए (GNPA) FY22 में 4.5 फीसदी से घटकर FY25 में 2.6 फीसदी पर आ गया है।
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बीमा उद्योग एक और शानदार प्रदर्शन करने वाला सेक्टर रहा है। इंश्योरेंस सेक्टर का बाजार पूंजीकरण बढ़कर ₹10.6 लाख करोड़ हो गया है। यह वृद्धि बचत के बढ़ते वित्तीयकरण (financialization of savings) और खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी से प्रेरित है।
वित्त वर्ष 2007 से अब तक जीवन बीमा उद्योग (Life Insurance Industry) की एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) लगभग 10 गुना बढ़कर ₹61.6 लाख करोड़ हो गई है। वहीं, सामान्य बीमा उद्योग (General Insurance Industry) ने पिछले 15 वर्षों में करीब 10 गुना वृद्धि दर्ज की है।
इस बीच, म्युचुअल फंड उद्योग ने और भी तेजी से प्रगति की है — पिछले दो दशकों में इसका एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) 45 गुना बढ़ गया है। मार्च 2025 तक म्युचुअल फंड उद्योग का AUM ₹75 लाख करोड़ पर पहुंच गया, जबकि AUM-से-GDP अनुपात 2015 के 7% से बढ़कर 19.9% हो गया है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के विस्तार और टियर-2 व टियर-3 शहरों के निवेशकों की बढ़ती भागीदारी ने वित्तीय समावेशन (financial inclusion) को मजबूत किया है और निवेश को अधिक लोकतांत्रिक बनाया है।