अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा बॉन्ड खरीद में 15 अरब डॉलर मासिक कटौती से भारतीय बॉन्ड एवं मुद्रा बाजार पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत सहित वैश्विक बाजार हर महीने 20 अरब डॉलर की कटौती के लिए तैयार था।
फिलिप कैपिटल के सलाहकार (निर्धारित आय) जयदीप सेन ने कहा, ‘बॉन्ड खरीद में कटौती का अधिकर प्रभाव दिख चुका है और अब उसका केवल मामूली प्रभाव दिखेगा। इस समय कोई झुंझलाहट नहीं है बल्कि सबकुछ सामान्य तौर पर चल रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘वास्तव में इसके घटित होने पर हो सकता है कि कुछ मामूली वृद्धिशील प्रभाव दिखे लेकिन एक गतिशील बाजार में ऐसे तमाम कारक होते हैं।’ अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने कहा कि वह इस महीने के आखिर में बॉन्ड खरीद में कटौती शुरू करेगा। वह खजाने में 10 अरब डॉलर कम की खरीदारी करेगा और गिरवी वाली प्रतिभूतियों में 5 अरब डॉलर कम खरीदारी की जाएगी। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने यह भी कहा है कि मुद्रास्फीतिक दबाव अगले साल तक बरकरार रहेगा।
बुधवार को 10 साल वाले बॉन्ड प्रतिफल 6.34 फीसदी पर बंद हुआ था। गुरुवार और शुक्रवार को बाजार बंद रहा। बॉन्ड डीलरों का मानना है कि यदि आरबीआई सख्त रुख न अपनाए तो बॉन्ड प्रतिफल मार्च तक 6.50 फीसदी तक पहुंच सकता है। बाजार नकदी निकासी को धीरे-धीरे समायोजित कर रहा है और उम्मीद कर रहा है कि अगले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही से रीपो दर में तेजी शुरू हो जाएगी। रीवर्स रीपो में तेजी उससे कहीं अधिक पहले यानी संभवत: फरवरी में मौद्रिक नीति की समीक्षा में दिख सकती है। हालांकि अमेरिकी फेडरल का कटौती कार्यक्रम 2022 के मध्य तक पूरा हो जाएगा। इससे अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में सख्ती दिखेगी और ऐसे में स्थानीय बाजारों में बॉन्ड प्रतिफल में तेजी आएगी। लेकिन बॉन्ड डीलरों का कहना है कि उसमें अभी वक्त लगेगा और कोरोनावायरस संबंधी अनिश्चितता अभी खत्म नहीं हुई है जिससे सुधार की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है।
फेडरल रिजर्व का कदम रुपये को कहीं अधिक प्रभावित कर सकता है क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की हरेक प्रतिक्रिया के साथ अमेरिकी डॉलर सूचकांक में तेजी आती है। रुपया कमजोर हो सकता है क्योंकि अन्य प्रतिस्पर्धी मुद्राएं दबाव में हैं लेकिन संभावित आईपीओ की लंबी सूची से विनिमय दर को सहारा मिल सकता है। वास्तविक प्रभावी विनिमय दर के आधार पर रुपया तकनीकी तौर पर 77 से 78 रुपये प्रति डॉलर के स्तर तक लुढक सकता है। हालांकि आरबीआई रुपये में उस स्तर की गिरावट को देना नहीं चाहेगा क्योंकि उससे आयातित कच्चे तेल के कारण मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
इक्विटी एमएफ में 40 हजार करोड़ रुपये निवेश
इक्विटी म्युचुअल फंड में सितंबर में समाप्त तिमाही के दौरान शुद्ध रूप से करीब 40,000 करोड़ रुपये का निवेश आया है। नए एनएफओ में मजबूत प्रवाह तथा सिस्टैमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) में स्थिरता के बीच इक्विटी कोषों को तिमाही के दौरान अच्छा निवेश मिला है। एम्फी के अनुसार, इस प्रवाह के साथ इक्विटी म्युचुअल फंड के तहत परिसंपत्तियां सितंबर के अंत तक बढ़कर 12.8 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गईं। भाषा