समाजवादी पार्टी यूपीए सरकार को समर्थन दे रही है, पर इसके बदले वह अपने निजी हितों को साधने से नहीं चूकेगी। मौजूदा माहौल में कुछ कंपनियों को लाभ पहुंच सकता है।
एक अच्छा निवेशक चाहे तो सोच समझकर ऐसी कंपनियों में निवेश कर मौके का फायदा उठा सकता है। वर्तमान में जो राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं, वे स्थायी नजर नहीं आते हैं। दावे के साथ कहा जा सकता है कि आने वाले एक साल के अंदर देश को चुनाव का मुंह देखना पड़ेगा। पर यूपीए सरकार कुछ मोर्चों पर विफल रही है और हो सकता है कि आगामी चुनावों में उन्हें मुंह की खानी पड़े।
ऐसे हालात में लंबे समय को ध्यान में रखते हुए निवेश की योजना तैयार करना थोड़ा जोखिम भरा हो सकता है। समाजवादी पार्टी कभी भी विचार धारा के मामले में बहुत अडिग नहीं रही है। उसका सारा ध्यान इस ओर रहता है कि अगर वह किसी का समर्थन कर रही है तो उसे इसका रिटर्न भी मिले। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के सरकार में शामिल होने से आर्थिक नीतियों को एक नई दिशा मिलनी तय है।
इस लिहाज से कहना गलत नहीं होगा कि समाजवादी पार्टी ने यूपीए को समर्थन देकर एक तरह का निवेश किया है और उसके बदले में वह अपना फायदा जरूर देखेगी। यानी जो एसपी के दोस्तों में हैं उन्हें इसका फायदा मिलेगा और जिनकी उससे दुश्मनी है उन्हें खामियाजा भुगतने के लिए भी तैयार हो जाना चाहिए। हो सकता है कि हम आने वाले दिनों में कुछ नीतिगत बदवाल देखें क्योंकि साफ है कि समाजवादी पार्टी ने भले ही यूपीए को समर्थन दिया हो, पर उसके बाद भी इस सरकार की स्थिरता की कोई गारंटी नहीं है।
भारत मंदी के दौर से गुजर रहा है और ऐसे में एसपी या किसी भी दूसरी पार्टी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह हालात में परिवर्तन कर सकेगी। देश में आई मंदी के पीछे विदेशी घटनाक्रमों का भी हाथ है, इस वजह से सरकार के बस में बहुत कुछ हो ऐसा नहीं है। अगर एसपी कुछ ऐसी नीतियों को अपनाने पर जोर देती है जो कारोबार के लिए अनुकूल हों या फिर उन्हें बढ़ावा देती हो तो भी उनका असर इतनी जल्दी हो पाएगा मुमकिन नहीं है। ऐसी नीतियां भी अगले चुनाव के बाद भी रंग दिखा सकेंगी।
निरंतरता नहीं होने की वजह से जीडीपी विकास पर असर पड़ेगा और चाहें भी तो इससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता है। देश में काम ही कुछ इसी तरीके से होता है। एसपी के आने से आर्थिक उन्नति की एक हल्की सी किरण तो हालांकि नजर आती है। खासतौर पर रिटेल निवेशकों के लिए एसपी और यूपीए का यह गठबंधन ज्यादा संभावनाओं वाला साबित हो सकता है। पर पहले वामपंथी पार्टियां जब सरकार को समर्थन दे रही थीं तो हालात कुछ और थे।
उनका ध्यान खासतौर पर निचले तबके के लोगों की ओर था और वामपंथी नीतियों के बीच रिटेल निवेशकों के लिए मुमकिन नहीं था कि बाजार से पैसा बना पाते। सभी जानते हैं कि कारोबारी जगत में कुछ ऐसे महारथी हैं जिनसे एसपी के अच्छे ताल्लुकात हैं या फिर यूं कह सकते हैं कि ये एसपी के दोस्त हैं। ऐसी संभावना है कि एसपी के सहारे के साथ कई सूचीबद्ध कंपनियां हो सकता है कि बाजार में बेहतर प्रदर्शन करने लगें। ऐसे में एक समझदार निवेशक उन्हीं कंपनियों में पैसा लगाना चाहेगा जिसके कंधे पर एसपी का हाथ होगा।
इन कंपनियों से अच्छा निवेश मिलने की संभावना के मद्देनजर यह एक समझदारी वाला कदम हो सकता है। पर पैसा बनाने के लिहाज से यह अल्पकालिक नजरिया हो सकता है, अगर लंबे समय के लिए निवेश किया जाना है तो हो सकता है इस गणित का हिसाब सही न बैठे। अगर दूरगामी नजरिये की बात करें तो ऐसी संभावना है कि 2009 के आखिर तक कुछ सुधार या बदलाव देखने को मिले। हां अगर अगली सरकार में भी एसपी की भागीदारी होती है तो आज के बाजार में जो समीकरण है थोड़े बहुत उन्हीं के जारी रहने की गुंजाइश हो सकती है। नहीं तो अगले चुनाव के बाद परिस्थितियां बदलेंगी और यह तय है।
पर इन हालात के बीच भी मुनाफा कमाने में कुछ अड़चनें हैं। यानी जिन मामलों में एसपी दखल देने पर विचार कर सकती है, उनके साथ कुछ कानूनी पचड़े भी जुड़े हो सकते हैं और हो सकता है कि इन्हें अदालतों में चुनौती दी जाए। उदाहरण के लिए मान लें कि अगर टेलीकॉम पॉलिसी सीडीएसए सेवा प्रदाताओं के पक्ष में कोई फैसला सुनाती है तो निश्चित तौर पर जीएसएम सेवा प्रदाता इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।
वहीं ऊर्जा मामले में भी 2003 के विद्युत एक्ट के तहत कुछ ऐसे नियम कानून हैं जिनमें बदलाव करना आसान नहीं है। अगर मान भी लें कि प्रसारण और टेलीकॉम नीतियों में कुछ बदलाव होता भी है तो इससे कीमतें बढ़ेंगी और चूंकि चुनाव काफी नजदीक है तो ऐसे में सरकार बचाव की मुद्रा में आ जाएगी। अगर एसपी के उस सुझावों को मान लिया जाए जिसमें घरेलू निजी रिफाइनर्स पर कर लगाने और पेट्रो उत्पाद के निर्यात पर रोक लगाने की बात कही गई है तो हो सकता है कि निजी रिफाइनरी कंपनियां हाथ खड़े कर दें और वह यह कारोबार ही रोक दें। ऐसे में भारत का कारोबारी संतुलन बिगड़ सकता है।
दूसरी बड़ी समस्या है कि ऐसे कारोबार जिन्हें एसपी रियायतें दिलाने की पैरवी कर सकता है जो उसके खास दोस्तों की सूची में शुमार हैं, उनका फायदा भी तुरंत देखने को मिलेगा ऐसी उम्मीद नहीं है। किसी पावर परियोजना या फिर टेलीकॉम के कारोबार में मुनाफा दिखलाने में सालों लग जाते हैं। काफी साल तब ऐसे कारोबार में मुनाफा नहीं हो पाता।
फिलहाल इस सरकार के पास इतना समय नहीं है कि वह ऐसी छूट दे जिनका परिणाम काफी समय बाद निकल कर आए। फिर भी ऐसे निवेशक जो मौजूदा राजनीतिक समीकरणों और संभावनाओं को बेहतर तरीके से पढ़ पाएंगे, उनके लिए मुनाफा कमाना आसान रहेगा। बहुत से ऐसे उद्योग हैं जिनसे इस दौरान बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है।