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e-Rupee: जानिए कैसी होगी RBI की डिजिटल करेंसी, कैसे करेगी काम

Last Updated- December 11, 2022 | 1:48 PM IST

आरबीआई (RBI) की ओर से सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (Central Bank Digital Currency या CBDC) को लेकर पिछले शुक्रवार, अक्टूबर 7, को एक कॉन्सेप्ट नोट (Concept Note) जारी किया गया। इस concept note में सेंट्रल बैंक ने बताया है कि वह कुछ खास इस्तेमालों के लिए जल्दी ही डिजिटल करेंसी (e-Rupee) पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लॉन्च करेगा।

इस concept note में टेक्नोलॉजी और डिजाइन के साथ e-Rupee के उपयोग एवं इसे जारी करने के सिस्टम पर चर्चा की गई है। e-Rupee के अंतिम रूप पर फैसला पायलट प्रोजेक्ट से मिले फीडबैक के आधार पर ही RBI की ओर से लिया जाएगा। 

आज हम इसी CBDC यानी e-Rupee को विस्तार से समझते हैं:

 डिजिटल करेंसी क्या है?

यह देश की फिएट मुद्रा (जैसे रुपया, डॉलर या यूरो) का एक डिजिटल संस्करण है। इसे केंद्रीय बैंक जारी करता है। साथ ही इसकी गारंटी भी देता है। यह फिएट मुद्रा के साथ वन टू वन विनिमय योग्य है। प्राइवेट मनी के मौजूदा रूपों जैसे ई-मनी (प्रीपेड वॉलेट में संग्रहीत मनी) या बैंक डिपॉजिट/जमा, जिसे कार्ड या मोबाइल पेमेंट सिस्टम का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसफर किया जा सकता है, से यह अलग होगा।

 डिजिटल करेंसी (CBDC) की डिजाइनिंग

 RBI की ओर से जारी concept note के मुताबिक अब यह जानते हैं कि CBDC के क्या क्या फॉर्म हो सकते हैं:
* जनरल/रिटेल CBDC या थोक/होलसेल CBDC): जनरल या रिटेल CBDC मुख्य रूप से आम लोगों और व्यवसायों (हाउसहोल्ड व बिजनेस) के लिए होगा और इसे व्यापक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा। जबकि होलसेल/थोक CBDC का उपयोग केवल अंतर-बैंक भुगतान, सिक्योरिटी सेटलमेंट या अन्य थोक लेनदेन के लिए किया जाएगा। 
* खाता (अकाउंट) आधारित या टोकन आधारित: टोकन आधारित CBDC भी दो तरह के हो सकते हैं — या तो जनरल/रिटेल या होलसेल। जबकि खाता आधारित CBDC जनरल उपयोग के लिए हो सकता है। 
कुल मिलाकर कहें तो तीन फॉर्म हुए: टोकन आधारित रिटेल CBDC, टोकन आधारित होलसेल CBDC और खाता आधारित रिटेल CBDC। 
कैसे करेंगे काम? 
खाता आधारित और टोकन आधारित CBDC में अंतर: 
मोटे तौर पर, खाता-आधारित प्रणाली को पहचान के सत्यापन के माध्यम से टोकन-आधारित प्रणाली से अलग किया जाता है। खाता-आधारित प्रणालियाँ खाताधारक की पहचान सत्यापित करने के लिए वित्तीय संस्थाओं की क्षमता पर निर्भर करती हैं। इसके विपरीत टोकन-आधारित या स्टोर ऑफ वैल्यू सिस्टम पेअर और पेई के बीच पेंमेंट ट्रांसफर (बैंकनोट, ई-मनी/प्रीपेड वॉलेट) के लिए है। जो पेई यानी प्राप्तकर्ता की ट्रांसफर की जा रही टोकन की वैधता को सत्यापित करने की क्षमता पर निर्भर करता है। 
डिजाइन के दृष्टिकोण से खाता आधारित और टोकन आधारित CBDC केंद्रीय बैंक के पास उपलब्ध दो प्रकार की मौजूदा धनराशि यानी कमर्शियल बैंकों (commercial banks) द्वारा केंद्रीय बैंक में रखे गए जमा खाते और बैंकनोट की तरह हैं। दोनों सिस्टम के बीच अंतर regulatory framework के हिसाब से काफी मायने रखता है। अलग अलग डिजाइन बैंकों और प्राइवेट प्लेयर्स की CBDC की पहुंच को सुगम बनाने के रोल को भी प्रभावित कर सकता है। 
सरल शब्दों में कहें तो खाता आधारित CBDC ग्राहकों के वाणिज्यिक बैंकों के साथ मौजूदा जमा खातों के समान हो सकता है। फर्क इतना ही होगा कि CBDC के मामले में ऐसे खाते वाणिज्यिक बैंकों के बजाय सीधे केंद्रीय बैंक के साथ होंगे। इसके अलावा, वाणिज्यिक बैंकों के पास उपलब्ध डिपॉजिट के विपरीत इस तरह की धनराशि पर केंद्रीय बैंक की देनदारी होगी। 
ट्रांजैक्शन/लेनदेन में CBDC बैलेंस को एक खाते से दूसरे खाते में ट्रांसफर करना शामिल होगा और इस बात को सत्यापित करने की क्षमता पर निर्भर करेगा कि भुगतानकर्ता के पास खाते का उपयोग करने का अधिकार है और उसके खाते में पर्याप्त धनराशि है। इसके विपरीत, टोकन-आधारित या मूल्य-आधारित CBDC सिस्टम के तहत केंद्रीय बैंक अपनी देनदारी के साथ डिजिटल टोकन जारी कर सकता है। बैंकनोटों की तरह, जो कोई भी किसी निश्चित समय पर टोकन को होल्ड करेगा, वह टोकन का स्वामी यानी टोकन होल्डर माना जाएगा। 
टोकन-आधारित CBDC में ट्रांजैक्शन/लेनदेन, खाताधारक की पहचान स्थापित करने के बजाय, टोकन की प्रामाणिकता (नकली से बचने के लिए) को सत्यापित करने की क्षमता पर निर्भर कर सकता है। टोकन आधारित CBDC का उपयोग करके लेनदेन को निपटाने के लिए टोकन के बाह्य सत्यापन की भी आवश्यकता होगी। इसलिए लेनदेन कैश की तरह पूरी तरह से गोपनीय नहीं हो सकता है। 
RBI और प्राइवेट प्लेयर्स की भूमिका 
पब्लिक-प्राइवेट सहभागिता के आधार पर CBDC के दो मॉडल हो सकते हैं:
* डायरेक्ट/प्रत्यक्ष: इस मॉडल के तहत, केंद्रीय बैंक CBDC जारी करने से लेकर एंड यूजर्स (अंतिम उपयोगकर्ताओं) तक इसकी पहुंच सुनिश्चित करने से संबंधित सभी पहलुओं के लिए व्यापक रूप से जिम्मेदार होगा। 
* इनडायरेक्ट/दो-स्तरीय सीबीडीसी मॉडल: जहां केंद्रीय बैंक एक कोर सिस्टम विकसित करता है और प्राइवेट प्लेयर्स को यूजर्स तक CBDC प्रणाली और अन्य मूल्य वर्धित सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है। दोनो हीं मॉडलों के तहत, CBDC केंद्रीय बैंक की देनदारी होगी। 
इस बात की संभावना ज्यादा है कि RBI देश में आम जनता के लिए रिटेल CBDC की शुरुआत कर सकता है। यह RBI के अपने मौजूदा ऑपरेशनल सिस्टम में एक तरह से ऐतिहासिक बदलाव/प्रस्थान होगा। क्योंकि मौजूदा सिस्टम में RBI का अंतिम उपभोक्ताओं के साथ कोई सीधा संबंध नहीं है। डायरेक्ट/प्रत्यक्ष मॉडल के मामले में, RBI सारी नई गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होगा, जिसके लिए बैंक के भीतर नई दक्षताओं की आवश्यकता होगी। वैकल्पिक रूप से, RBI दो-स्तरीय मॉडल पर विचार कर सकता है, जहां परिचालन/ऑपरेशन को लेकर RBI की भूमिका कम होगी। जिसमें अधिकांश उपभोक्ता सेवाओं को मध्यस्थों को आउटसोर्स किया जा सकता है। हालांकि, इस मॉडल के तहत भी, RBI को निगरानी और जोखिम प्रबंधन जैसे कार्यों को विकसित करने और संभावित CBDC व्यवधानों से निपटने के लिए दक्ष और सशक्त सिस्टम स्थापित करने की आवश्यकता होगी। 

सीबीडीसी वर्चुअल/क्रिप्टो करेंसी से कैसे अलग? 

CBDC निजी संस्थाओं द्वारा जारी क्रिप्टोकरेंसी से अलग है। क्रिप्टोकरेंसी किसी की देनदारी नहीं है। जबकि इसके ठीक विपरीत CBDC केंद्रीय बैंक की देनदारी होगी। क्रिप्टोकरेंसी का वैल्यू इस उम्मीद पर निर्भर करता है कि दूसरे इसका कितना वैल्यू देते हैं और इसका कितना उपयोग करते हैं। सीमित उपयोग और कीमतों में भारी अस्थिरता की वजह से ऐसी प्राइवेट वर्चुअल मुद्राएं अक्सर मनी के कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में विफल हो जाती हैं। क्रिप्टोकरेंसी की कीमत में बहुत उतार-चढ़ाव होता है। क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग होती है। इसके लिए ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है। इसको कोई सरकार या कोई विनियामक (regulatory) अथॉरिटी जारी नहीं करती है। इसके उलट डिजिटल करेंसी को केंद्रीय बैंक जारी करता है। 
इस तरह की प्राइवेट मुद्राएं मनी की ऐतिहासिक अवधारणा में भी कहीं फिट नहीं बैठती। क्योंकि इनका कोई इंट्रिन्सिक वैल्यू/आंतरिक मूल्य नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि ये सोने की तरह हैं, जो भी एकदम सही नहीं है। क्योंकि गोल्ड की तरह न तो ये कमोडिटी हैं और न इनका कोई एस्थेटिक वैल्यू है। 
डिजिटल करेंसी को लाने के पीछे भारत समेत विश्व के और भी केंद्रीय बैंकों का एक मकसद प्राइवेट वर्चुअल करेंसी पर लगाम लगाना भी है। हालांकि जानकार इस बात से सहमत नहीं हैं कि CBDC का असर इन प्राइवेट वर्चुअल करेंसी पर होगा। क्योंकि इन मुद्राओं में निवेश करने वाले लोग इसे एसेट क्लास की तरह ट्रीट करते हैं और मुनाफा कमाने के मकसद से इसमें निवेश भी करते हैं। जबकि कुछ लोग अवैध गतिविधियों के लिए इस करेंसी का इस्तेमाल करते हैं। 
CBDC को लेकर चुनौतियां 
केंद्रीय बैंक के लिए सबसे बड़ी चुनौती मौद्रिक स्थिरता और वित्तीय प्रणाली पर CBDC जारी करने के असर को लेकर है। यदि CBDC की मांग ज्यादा होगी तो बैंक डिपॉजिट तेजी से CBDC की ओर शिफ्ट हो सकता है और बैंकों को फंडिंग आकर्षित करने के लिए जमा दर में वृद्धि करने के लिए प्रेरित कर सकता है। परिणामस्वरूप बैंकों की प्रॉफिटेबिलिटी प्रभावित होगी और कॉस्ट ऑफ क्रेडिट में वृद्धि हो सकती है। हालांकि CBDC के इकोनॉमिक डिजाइन पर यह निर्भर करेगा कि यह बैंक डिपॉजिट से कैसे कम्पीट करता है। मसलन CBDC पर ब्याज देय होगा या नहीं। चूंकि केंद्रीय बैंक निजी वित्तीय संस्थानों (प्राइवेट बैंक) को ऋण प्रदान नहीं कर सकते, इसलिए CBDC की बैंक ऋण की भूमिका पर पड़ने वाले प्रभाव को अच्छी तरह से समझने की आवश्यकता है। 
CBDC का एक और जोखिम है। इसकी उपलब्धता होने पर इस बात की आशंका भी रहेगी कि अगर किसी बैंक पर दबाव/संकट आएगा तो जमाकर्ताओं के लिए अपनी बैलेंस धनराशि को CBDC में शिफ्ट करना बहुत आसान हो जाएगा और नकद निकासी की तुलना में बैंकों के पास से डिपॉजिट बहुत तेजी से निकल सकती है। अन्य चुनौतियों में CBDC जारी करने के लिए केंद्रीय बैंक की संस्थागत क्षमता पर दबाव व सुरक्षा जोखिम हो सकते हैं। 
CBDC का मकसद
नकद के पूरक के तौर पर: नकद (कैश) के विकल्प के तौर पर नहीं बल्कि पूरक के तौर पर देश में CBDC की शुरुआत की जा सकती है। डिजिटल करेंसी शुरू होने से कैश पर निर्भरता घटेगी और करेंसी छापने में होने वाले खर्च पर भी लगाम लगेगा। यूके और स्वीडन जैसे देशों के विपरीत, भारत में अभी भी नकदी का चलन ज्यादा है। भारत के 12 फीसदी की तुलना में स्वीडन और यूके में कैश इन सर्कुलेशन (नकदी का चलन) to GDP ratio क्रमशः 2.3 फीसदी और 3.4 फीसदी है। हालांकि, मकसद में कामयाबी के लिए CBDC की शुरुआत के बाद भारत को लगातार नकद के उपयोग और नागरिकों की भुगतान आदतों का मूल्यांकन करना होगा। 
वित्तीय समावेशन (financial inclusion) को बढ़ावा: विशाल जनसंख्या के कारण भारत में अभी भी 19 करोड ऐसे लोग हैं जिनके पास बैंक अकाउंट नहीं हैं (2017 तक के आंकड़े)। एक हद तक CBDC फाइनेंशियल इन्क्लूजन को बढ़ावा देने का एक विकल्प हो सकता है। 
अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण को बढ़ावा: CBDC की शुरुआत के बाद भुगतान प्रणाली की दक्षता में सुधार के साथ साथ इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में digital payments को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, जिसमें यूजर्स/उपयोगकर्ताओं को रियल-टाइम और चौबीसों घंटे भुगतान विकल्पों की उपलब्धता प्रदान करना, NPCI के माध्यम से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, खुदरा भुगतान के लिए नया ढांचा विकसित करना और कम से कम कॉस्ट पर पेमेंट की सुविधा प्रदान करना शामिल है। यहां, इस बात का आकलन करना महत्वपूर्ण होगा कि क्या रिटेल CBDC अर्थव्यवस्था के digitisation में कोई अतिरिक्त लाभ प्रदान कर सकता है और यदि हां, तो यह मौजूदा पेमेंट सिस्टम में कैसे फिट हो सकता है। 
प्राइवेट डिजिटल करेंसी पर लगाम: अगर देश के लोग प्राइवेट डिजिटल करेंसी को अपनाते हैं तो केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थिरता से संबंधित अपने कार्यों को निष्पादित करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। जो अंतत: देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक होगा। केंद्रीय बैंक का मानना है कि CBDC प्राइवेट डिजिटल करेंसी पर लगाम लगाने में मददगार हो सकता है। 
वित्तीय अपराध की रोकथाम: CBDC वित्तीय अपराध (financial crime) मसलन मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी से निपटने के लिए देश की क्षमता में सुधार कर सकता है। क्योंकि CBDC सिस्टम लेनदेन को ट्रैक करने और पहचानने में सक्षम हो सकता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए CBDC का डिजाइन महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ट्रेसेब्लिटी की अनुमति देगा। 
सीमा-पार भुगतान प्रणाली में सुधार: सीमा-पार भुगतान प्रणाली की दक्षता बढ़ाने में भी CBDC बड़ी भूमिका निभा सकता है। इस सिस्टम में विदेशी मुद्रा के लेन-देन के मामले में टाइम जोन अलग होने के बावजूद सेटलमेंट में कोई देरी नहीं होगी। 

कानूनी बदलाव की जरूरत 

रिटेल टोकन-आधारित CBDC के लिए, RBI अधिनियम, 1934, में संशोधन की जरूरत पड़ेगी, ताकि केंद्रीय बैंक को डिजिटल रूप में मुद्रा जारी करने में स्पष्ट रूप से सक्षम बनाया जा सके। दो-स्तरीय CBDC मॉडल में प्राइवेट प्लेयर्स की भागीदारी शामिल होगी। जो पर्यवेक्षण और विनियमन के लिए एक कानूनी ढांचा तैयार करने की मांग करता है। इसके अलावा फेमा, आईटी, क्वायनेज एक्ट जैसे कानूनों में भी जरूरी बदलाव करने होंगे।

First Published - October 12, 2022 | 3:34 PM IST

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