भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) धीरे-धीरे सिद्धांत और परिणाम आधारित नियामकीय ढांचे को अपनाने की ओर बढ़ रहा है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव ने सोमवार को भारतीय प्रबंध संस्थान, कोझीकोड में वित्तीय बाजार विनियमों से जुड़ी चर्चा में यह बात कही। उनका यह भाषण बुधवार को आरबीआई की वेबसाइट पर जारी किया गया।
उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण विनियमित संस्थाओं के परिचालन में अधिक लचीलेपन की गुंजाइश देता है जिससे वे नियामकीय अपेक्षाओं का पालन करते हुए अपनी गतिविधियों को अपने विशेष कारोबारी मॉडल के साथ जोड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य परिचालन पर अधिक सख्ती बरते बिना, मनमुताबिक नियामकीय नतीजे हासिल करना सुनिश्चित हो सके।
उन्होंने कहा, ‘कोई भी नियामकीय दृष्टिकोण पूरी तरह से सही नहीं होता है हालांकि, सिद्धांत और परिणाम आधारित विनियमन आमतौर पर परिपक्व बाजारों के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है। विकसित अर्थव्यवस्थाएं भी उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए नियम-आधारित ढांचे का इस्तेमाल करती हैं। हम, आरबीआई में धीरे-धीरे सिद्धांत और परिणाम आधारित नियमन की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि यह विनियमित संस्थाओं के परिचालन में लचीलेपन की गुंजाइश देता है और उनसे अपेक्षित नतीजों के लिए नियामकीय ढांचे का पालन करते हुए अपनी गतिविधियों को उनकी विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की अनुमति देता है।’
उन्होंने आगे कहा कि आज नियामकों को जटिल और तेजी से बदल रही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए दूरदर्शी और अनुकूल दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। वित्तीय प्रणाली को हर तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए, नवाचार और डेटा एवं तकनीक के रणनीतिक इस्तेमाल पर आधारित सक्रिय नियमन की आवश्यकता है। इसके अलावा पर्यवेक्षण की दक्षता बढ़ाना, भविष्य का अनुमान लगाने और विशेषज्ञों के साथ सहयोग करना, वास्तव में नियामकों के लिए उभरते जोखिमों और तकनीकी बदलावों के हिसाब से तैयार रहने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नियामकीय प्रावधानों और रिपोर्टिंग तंत्र की समय पर समीक्षा करना एक और अहम क्षेत्र है ताकि उन्हें सुव्यवस्थित, तर्कसंगत बनाया जा सके और उनकी प्रभावशीलता बढ़ाई जा सके। उन्होंने कहा कि इस तरह की समीक्षाएं न केवल अनुपालन दबाव को कम करने में मदद करती हैं बल्कि नियामकों को बाजार में हो रहे बदलावों के हिसाब से नियमन की प्रासंगिकता का आकलन करने की गुंजाइश भी देती हैं। नियामकीय स्तर पर बेहतर तरीके को अपनाना, संभावित प्रभावों का अनुमान लगाने और अनपेक्षित नतीजों से बचने के लिए पूर्वानुमान, वास्तविक परिणामों का मूल्यांकन करने और सुधार करने में सक्षम होना बाद की स्थितियों के लिए भी आवश्यक हैं। इस तरह के कदमों से यह सुनिश्चित करना आसान होता है कि नियमन पहली ही बार में सही हों और समय के साथ सही बने रहें।