पिछले दशक में कई भारतीय कंपनियों ने विदेशों से नकदी जुटाई है। इक्विटी, ऋण, बॉन्ड, परिवर्तनीय बॉन्ड, प्राइवेट इक्विटी, वेंचर कैपिटल सहित सभी उपलब्ध रास्ते अपनाए गए।
परिणामस्वरूप, भारतीय विश्लेषक भी लेखा के विभिन्न तौर तरीकों में निपुण हो गए हैं। कई कंपनियां अपनी वित्तीय रिपोर्ट अलग-अलग लेखा सिध्दांतों (जीएएपी) के अनुसार उपलब्ध कराते हैं। भिन्नताएं बड़ी हो सकती हैं।
कई बार तो शुध्द लाभ में दहाई अंकों का फर्क होता है और ये दोनों दिशाओं में जा सकता है। नेट वर्थ की गणना के फर्क में भी आने वाले वर्षों में काफी भिन्नताएं हो सकती हैं। डेरिवेटिव्स के साथ दूसरा तरह की जटिलताएं हो सकती हैं क्योंकि इन्हें अलग फॉर्मेट के आधार पर भिन्न तरीके से देखा जाता है।
ये सारी भिन्नताएं हतप्रभ करने वाली नहीं हैं। खास तौर से लाभ परिवर्तनशील होते हैं और आय पहचान के नियमों में काफी भिन्नताएं होती हैं। लेकिन, चूंकि बाजार मूल्यांकन लाभोत्पादकता के अनुपात में किया जाता है इसलिए मूल्यांकनों में भी भारी भिन्नता देखी जाती है।
हालांकि, जीएएपी में जो भी भिन्नता हो लेकिन नकदी-प्रवाह विवरणी एक जैसे परिणाम प्रदर्शित करते हैं। नकदी का आना जाना इतना मूलभूत विचार है कि इसके परिणामों पर आसानी से फैसला किया जाता है। दुख की बात यह है कि सीएफ विश्लेषण पर काफी कम जोर दिया जाता है। सीएफ विवरणी में बैलेंस शीट और पी ऐंड एल दोनों के आइटम शामिल किए जाते हैं।
यह लेखा अवधि की शुरुआत और अंत में नकदी और नकदी-सदृश (सी ऐंड सीई) चीजों को मापता है। अगर सी ऐंड सीई बढ़ता है तो कारोबार नकदी से भरा-पूरा है। अगर इसमें गिरावट होती है तो कारोबार नकदी-ऋणात्मक है।
विवरणी तीनों खाते से नकदी के आने जाने को अलग रखता है। एक है मुख्य कारोबार। दूसरा है निवेश जिसमें पूंजीगत खर्चे, परिसंपत्तियों की बिक्री, ट्रेजरी से होने वाली आय और पूंजीगत अभिलाभ शामिल होते हैं। तीसरा है वित्तीय खाता जहां चुकाए और प्राप्त किए गए ब्याज का लेखा जोखा रखा जाता है।
ऋण चुकाने की क्षमता जानने का सबसे अच्छा तरीका है नकदी प्रवाह विश्लेषण। यह लाभ और हानि खाते को देखने से कहीं बेहतर है। अगर कहीं कोई दुविधा है तो यह उसे प्रदर्शित करता है। आदर्श तौर पर बफेट का एक अनुयायी वैसे कारोबार से दूर ही रहेगा जिसका झुकाव ऋण की तरफ अधिक है। लेकिन, बहुत कम भारतीय व्यवसाय ऐसे हैं जो शून्य-ऋण की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
इनमें से अधिकांश आईटी क्षेत्र से हैं जहां फिलहाल कुछ अन्य समस्याएं चल रही हैं। अगर किसी कारोबार में ऋण की मात्रा अधिक है तो वित्तीय खाता नकदी-ऋणात्क होगा। ऋण चुकाने के लिए मुख्य व्यवसाय और निवेश दोनों को सम्मिलित रूप से पर्याप्त नकदी अर्जित करना चाहिए ताकि वित्तीय घाटे को कम किया जा सके।
वैकल्पिक तौर पर, कंपनी को नकदी का बहिर्प्रवाह कम करने के लिए दोबारा सस्ता फाइनैंस करवाने के मामले में सक्षम होना चाहिए। अधिक लाभ कमाने वाली एक कंपनी के लिए ऐसा संभव है कि उसकी नकदी कुल मिला कर ऋणात्मक हो जाए।
उदाहरण के लिए, एक तेजी से विस्तार करने वाली कंपनी जिसके नकदी का बहिर्प्रवाह निवेश खाते में होता है, उसके लाभ भी बढ़े-चढे मालूम हो सकते हैं बशर्ते बार-बार न होने वाले पूंजीगत लाभ या ट्रेजरी लाभ इसमें शामिल हों।
पिछले 15 महीने में रुपये कां 33 प्रतिशत का अवमूल्यन हुआ है और शेयर की कीमतें 50 फीसदी से अधिक घटी हैं। ग्रोथ बाधित हुआ है। मुद्रा और ऋण जोखिमों को मिलाकर देखें तो कई कंपनियां, जिनमें ब्लू चिप भी शामिल हैं, दिवालियापन के कगार पर पहुंच सकती हैं अगर साल 2009-10 में मंदी का यही आलम बना रहा।
अगले एक साल के दौरान, शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव और नकदी प्रवाह कीमत और शुध्द लाभ के सहसंबंधों की तुलना में अधिक मजबूत होने की संभावना है। सकारात्मक नकदी प्रवाह वाली कंपनियों के शेयरों की कीमतें बढ़ती देखी जा सकती हैं जबकि लाभ कमाने वाली सीएफ-ऋणात्मक कंपनियों की कीमतों में गिरावट आ सकती है।
