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कर बचत के साथ बेहतर रिटर्न भी

Last Updated- December 07, 2022 | 6:40 PM IST

अक्सर कभी कोई आयकर बचाने के बारे में पूछता है तो लोग उसे अमूमन डाकघरों की बचत योजनाओं यानी एनएससी और पब्लिक प्रोविडेंट फंड का नाम बता देते हैं।

पर इनके अलावा भी कई ऐसे निवेश विकल्प मौजूद हैं जिनमें निवेश करके आप न केवल कर बया सकते हैं बल्कि अच्छी-खासी संपत्ति का सृजन भी कर सकते हैं। ऐसा ही एक विकल्प है म्युचुअल फंडों की इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम।

इन्हें ईएलएसएस भी कहा जाता है और ये योजनाएं कर बचाने का बेहतरीन उपाय मानी जाती हैं।

हालांकि इनके साथ जोखिम जुड़ा हुआ है लेकिन अगर लंबी अवधि के लिए एसआईपी के जरिए निवेश किया जाए तो न सिर्फ करों में छूट हासिल की जा सकती है बल्कि अच्छा रिटर्न भी पाया जा सकता है।

इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम

एक इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम निवेश का बेहतर विकल्प है। इससे आप कर की बचत और कैपिटल गेन दोनों हासिल कर सकते हैं। पहले निवेशक अपना निवेश विभिन्न योजनाओं जैसे पीपीएफ, एनएससी में किया करते थे।

पर ये योजनाएं आने के बाद इनके प्रति झुकाव बढ़ा है। अब तो इनमें आप चाहें तो पूरे एक लाख रुपए निवेश करके आयकर की धारा 80 के तहत कर छूट का लाभ भी उठा सकते हैं।

नए आयकर प्रावधानों के अनुसार इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में किए गए एक लाख रुपए के निवेश पर कोई कर नहीं लगेगा।

इन स्कीम का लॉक-इन पीरियड तीन साल का होने से इन पर बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव का भी कम असर पड़ता है।

ये फंड एनएससी और पीपीएफ से इन मायने में अच्छे हैं कि जहां डाकघर की इन दोनों योजनाओं में मेच्योरिटी अवधि क्रमश: छह साल और 15 साल है वहीं ईएलएसएस में यह महज तीन साल है।

इसके अलावा फंड मैनेजर के पास भी यह विकल्प होता है कि वह समय समय पर ऐसे शेयरों का चुनाव करे जो बाजार से भी ज्यादा अच्छा रिटर्न दे।
एसआईपी-एक बढ़िया रास्ता

एसआईपी के जरिए इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में निवेश करने का फायदा यह मिलता है कि कॉस्ट एवरेजिंग की वजह से आप बाजार के उतार-चढ़ावों से बचे रहते हैं।

कॉस्ट एवरेजिंग को इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि यदि निवेशक 20 रुपए प्रति यूनिट पर 1,000 रुपए का निवेश हर महीने करता है तो वह 50 यूनिट खरीदेगा।

यदि बाजार में गिरावट आ जाती है और प्रति यूनिट का मूल्य 10 रुपए हो जाता है तो निवेशक के पास 100 यूनिट हो जाएंगे।

नियमित तौर पर एक निश्चित धनराशि के निवेश का मतलब है कि कॉस्ट एवरेजिंग का फायदा मिलना। जब एनएवी ज्यादा होगी तो निवेशक को कम यूनिट मिलेंगे और एनएवी गिरने पर निवेशक को ज्यादा यूनिट मिलेंगे।

एसआईपी से निवेशक को यह मौका मिलता है कि वह बाजार में गिरावट के दौरान ज्यादा खरीद करे और जब बाजार अपने उच्चतम स्तर पर हो तो कम खरीदारी करे।

लेकिन जब आप सीधे इक्विटी में निवेश करते हैं तो आप को यह फायदा नहीं मिलता है क्योंकि मंदी के समय निवेशक खरीदारी करने से कतराता है जिससे उसे कॉस्ट एवरेजिंग का फायदा नहीं मिल पाता है। यही एसआईपी के जरिए इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में निवेश करने का फायदा है।

जब बाजार गिर रहा होता है तो निवेशक के लिए बाजार में प्रवेश करना मनौवैज्ञानिक रूप से मुश्किल होता है दूसरी ओर जब बाजार ऊंचाइयों पर होता है तो भारी संख्या में निवेशक बाजार में प्रवेश करते हैं।
इसका यह परिणाम निकलता है कि वे ऊंची
कीमतों पर शेयर खरीदते हैं और उन्हें कम कीमतों पर बेचना पड़ता है। इसलिए गिरते बाजार में एसआईपी जारी रखना बहुत जरूरी है।

क्यों करे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में निवेश

तीन साल का लॉक-इन पीरियड होने की वजह से
लंबे समय तक निवेश करने का फायदा
लंबी अवधि में इक्विटी में किए गए निवेश से मिलने वाला बेहतर रिटर्न
आयकर में मिलने वाली छूट
आसान हस्तांतरण
कुछ ईएलएसएस स्कीमों में पसर्नल ऐक्सीडेंट डेथ कवर इंश्योरेंस भी है।
एसआईपी के जरिए आप हर महीने 500 रुपए का निवेश करके इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम शुरु कर सकते हैं



 

First Published - August 24, 2008 | 10:40 PM IST

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