डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) नियमों के मसौदे के तहत बैंकों को मूल इकाई से परे डेटा साझा करने के लिए ग्राहकों से स्पष्ट तौर पर पूर्व अनुमति हासिल करने की जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार नियमों के लागू होने की स्थिति में बैंकों को तीसरे पक्ष की इकाइयों के साथ डेटा साझा करने का स्पष्ट समझौता करने की आवश्यकता है। इन नियमों का सही ढंगे से लागू होने की स्थिति में नियामक की मध्यस्थता का कोई स्थान नहीं रहेगा।
विशेषज्ञों ने आगे कहा कि इस मसौदे के कारोबार पर प्रभाव का इस स्तर पर आकलन करना मुश्किल है। बैंक अपनी आनुषांगिक और तीसरे पक्ष से अपने ग्राहकों को एक दूसरे के उत्पाद बेचने में संलग्न हैं। बेहतर शासन के अंतर्गत एक दूसरे के उत्पाद बेचने से पूर्व पारंपरिक रूप से सहमति प्राप्त की जाती है लेकिन कई मामले इन मानदंडों का पालन नहीं करने के मिले हैं।
ग्रांट थॉर्नटन भारत एलएलपी के वित्तीय सेवा जोखिम के सलाहकार साझेदार विवेक अय्यर ने बताया, ‘बैंक और एनबीएफसी ग्राहकों की सहमति के बिना अपनी आनुषांगिक इकाइयों को डेटा साझा कर रही थीं। औपचारिक विनियम में सहमति प्राप्त करने के लिए स्पष्ट रूप से कहा गया है और ऐसे में विनियामक की मध्यस्थता के लिए कोई स्थान नहीं बचता है। हमें इस विनियमन से कारोबार पर कोई प्रभाव नजर नहीं आता है। हम इसे वित्तीय सेवा पारिस्थितिकीतंत्र में विश्वास बहाली के बेहद मजबूत अवसर के रूप में देखते हैं।’
विशेषज्ञों का सुझाव है कि मसौदे के नियम ग्राहकों के लिए सकारात्मक हैं। ये बदलाव डेटा संरक्षण के अनुरूप है। यह वैश्विक मानदंडों पर खरे उतरते हैं। कॉरपोरेट सलाहकार श्रीनाथ श्रीधरन ने कहा कि यदि बैंक सभी संचालन चुनौतियों का सामना करने को तैयार हैं तो उन्हें मूल इकाई से परे डेटा साझा करने के लिए स्पष्ट रूप से सहमति हासिल करने की आवश्यकता है।