पिछले छह से नौ महीनों में म्यूल अकाउंट की बढ़ती संख्या को देखते हुए वाणिज्यिक बैंक चौकन्ने हो गए हैं। अब नए चालू और बचत खाता ग्राहकों पर काबू रखने के उपाय बढ़ाए गए हैं और पुराने ग्राहकों के खातों पर नजर बढ़ा दी गई है। म्यूल अकाउंट में खाताधारक के बजाय कोई और व्यक्ति रकम मंगाता है और निकाल लेता है। इस तरह गैर-कानूनी रकम का लेनदेन उस खाते के जरिये हो जाता है।
इस महीने की शुरुआत में सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों के प्रबंध निदेशक और सीईओ के साथ बातचीत करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गर्वनर शक्तिकांत दास ने बैंकों से ‘म्यूल अकाउंट’ के खिलाफ अपने प्रयास तेज करने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने ग्राहकों को जागरूक करने और उन्हें शिक्षित करने की पहल के साथ ही अन्य उपाय करने में भी तेजी लाने का निर्देश दिया ताकि डिजिटल फर्जीवाड़े पर लगाम कसी जा सके।
देनदारियों के कारोबार से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक 0.5 से 1 प्रतिशत नए खोले गए खाते म्यूल अकाउंट हैं जिसके कारण वे उन्हें नियंत्रण तंत्र को मजबूत बनाने और नए ग्राहकों को जोड़ने का जिम्मा वरिष्ठ शाखा कर्मचारियों को सौंपने पर मजबूर हो रहे हैं।
ऐसा पहली बार हो रहा है जब बैंकरों को जमा खातों में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का सामना करना पड़ रहा है। आम तौर पर बैंकों में फर्जीवाड़ा क्रेडिट कार्ड आदि पर किया जाता है।
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में जमा खातों से जुड़े 551 फर्जीवाड़े हुए थे मगर 2023-24 की पहली छमाही में ही ऐसे 606 मामले सामने आ गए। निजी क्षेत्र के एक बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘वित्त वर्ष 2023-24 के शुरुआत में ही म्यूल अकाउंट का मामला सामने आया था लेकिन इनकी तादाद इतनी चिंताजनक नहीं थी।’
ऐसे खाते किसी और के खाते से अवैध पूंजी के लेनदेन में इस्तेमाल होते हैं। अधिकारी ने बताया, ‘तीसरी और चौथी तिमाही तक पूरे उद्योग में म्यूल अकाउंट दिखने लगे। इसमें अधिकांश लेनदेन डिजिटल माध्यम से किए गए थे।’
बैंकरों ने कहा कि इस तरह के खातों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई जो नए खोले गए खाते का 0.5 प्रतिशत थी और कुछ बैंकों में यह 1 प्रतिशत या उससे अधिक था। इसके चलते ही बैंकों ने निगरानी बढ़ाने और खाता खोलने के लिए मानक संचालन नियमों में संशोधन करने जैसी रणनीतियों पर काम करने के लिए सक्रियता दिखानी शुरू कर दी।
एक अन्य बैंकर ने बताया, ‘ज्यादातर म्यूल अकाउंट चालू बैंक खाते थे जो किसी एक व्यक्ति के नाम पर थे। करीब 80-85 फीसदी खाते एक ही व्यक्ति के नाम पर थे। ये खाते ज्यादातर ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों से जुड़े थे।’इस तरह के खातों का संज्ञान लेते हुए बैंकों ने इससे जुड़े डेटा को 1997 के बाद से देखना शुरू किया तब पता चला कि इनमें से ज्यादातर खाते वित्त वर्ष 2024 में खोले गए हैं। इनमें से ज्यादातर लेन-देन यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) के माध्यम से किया गया।