भारतीय रिजर्व बैंक के नव नियुक्त डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने आज कहा कि बड़ी गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंकों की तर्ज पर ही कठोर नियमन के दायरे में लाया जाना चाहिए ताकि वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित रखा जा सके। इसके साथ ही बाकी एनबीएफसी पर आंशिक नियमन की व्यवस्था को बरकरार रखना चाहिए।
इस क्षेत्र में एनबीएफसी के लिए श्रेणीबद्घ नियामकीय ढांचा लाया जा सकता है जो व्यवस्थागत महत्व में उनके योगादन के मुताबिक होगा। इसके तहत सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के नियमन पर पुनर्विचार करना और कुछ ऐसी एनबीएफसी जो न तो इतनी बड़ी हैं कि प्रणालीगत अस्थिरता पैदा कर सकती हैं और न इतनी छोटी ही हैं कि उन्हें नजरअंदाज किया जा सके, नियामकीय आर्बिट्रेज का लाभ उठा रही हैं उसमें कटौती की जानी चाहिए। राव ने एसोचैम की ओर से आयोजित एक शिखर बैठक में कहा, ‘अच्छी खासी आकार वाली ऐसी एनबीएफसी जो प्रणालीगत जोखिम में बड़ा योगदान करती हैं, उनकी पहचान की जानी चाहिए और उन्हें अधिक कठोर नियमन के दायरे में लाया जाना चाहिए। एक तर्क यह भी दिया जा सकता है कि ऐसी एनबीएफसी के लिए विवेकपूर्ण नियामकीय ढांचे का प्रारूप बैंकों के नियमन की तर्ज पर हो सकता है ताकि नाजुक से प्रणालीगत जोखिम बिंदु से परे, इन एनबीएफसी को या तो वाणिज्यिक बैंक में बदला जा सके या फिर उसके नेटवर्क को घटाकर वित्तीय प्रणाली के भीतर ही रखा जाए।’ डिप्टी गवर्नर ने कहा कि इस व्यवस्था से वित्तीय क्षेत्र को दुरुस्त और लचीला रखा जा सकेगा साथ ही अधिकांश एनबीएफसी को पहले की तरह आंशिक नियमन ढांचे के अंदर रखा जा सकता है।
राव ने कुछ एनबीएफसी द्वारा आर्बिट्रेज का लाभ लेने की सुविधा को भी समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है क्योंकि ये ऐसा करते हुए धीरे धीरे प्रणालीगत जोखिम की स्थिति तैयार कर रही हैं। ये एनबीएफसी प्रणालीगत जोखिम के संदर्भ में न तो नाजुक स्थिति में हैं और न ही ये बहुत छोटे और कम जटिल हैं। डिप्टी गवर्नर ने कहा, ‘ये एनबीएफसी फिलहाल बैंकों की तुलना में काफी अधिक नियामकीय आर्बिट्रेज का लाभ ले रही हैं। एक समूह के तौर पर ये प्रणालीगत जोखिम की स्थिति उत्पन्न करने में योगदान दे सकती हैं क्योंकि ये नियामकीय आर्बिट्रेज का लाभ ले रही हैं। अत:, नियमनों को फिर से तैयार करने की जरूरत है।’
डिप्टी गवर्नर सूक्ष्म वित्त क्षेत्र पर कठोर नियमन लाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां कई बड़े एमएफआई को लघु वित्त बैंकों में बदला गया है, समग्र सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में एनबीएफसी-एमएफआई की हिस्सेदारी घटकर 30 फीसदी से थोड़ा अधिक रह गई है। राव ने अपने वक्तव्य में कहा, ‘आज हम ऐसी परिस्थिति में हैं जहां नियामकीय कड़ाई सूक्ष्म वित्त क्षेत्र के एक छोटे से हिस्से पर लागू है। सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में दोबारा से नियामकीय कदमों को प्रमुखता देने की आवश्यकता है ताकि हमारा नियमन गतिविधि आधारित हो न कि संस्था के आधार पर। अंतत: नियमन का मुख्य मकसद ग्राहक/ उपभोक्ता की सुरक्षा है।’ राव ने कहा कि फिनटेक क्षेत्र की गतिशील प्रवृत्ति से लगातार नियामकीय चुनौती उत्पन्न हो रही है। राव ने कहा, ‘फिनटेक क्षेत्र में भविष्य के लिए नियमन को आकार देते समय रिजर्व बैंक के लिए व्यवस्थित वृद्घि और ग्राहक की सुरक्षा और डेटा का संरक्षण दिशानिर्देश देने वाले सिद्घांत बने रहेंगे।’
